देश के ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकीय सेवाएं बेहतर करने के सरकारी प्रयासों (लोभ और दंड) के बावजूद चिकित्सक वहां जाने को तैयार नहीं। इस अघोषित रवायत के बीच हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के दो प्रतिभाशाली और युवा चिकित्सकों ने अपने राज्य की साधनहीन जनता की सेवा का व्रत लिया है। मेडिकल परीक्षा के इन टॉपरों को ग्रामीणों की सेवा के बदले ऊंची तनख्वाह हासिल नहीं होगी। काम को सराहने वाला भी शायद ही कोई हो, लेकिन दोनों का नाम मानवीय संवेदनाओं का लेखा-जोखा रखने वाली बही में सबसे ऊपर होगा। पीजीआई चंडीगढ़ से पीडियाट्रिक्स और रेडियोलॉजी में एमडी (परास्नातक) कर रहे डॉ. सुरजीत भारद्वाज और अरुण शर्मा निजी क्षेत्र के बड़े नाम वाले अस्पतालों में नौकरी करने के बजाए अपने राज्य हिमाचल प्रदेश के सुदूरवर्ती गांवों में लोगों की सेवा करना चाहते हैं। चंडीगढ़ की पीजी प्रवेश परीक्षा में देश में क्रमश: प्रथम व दूसरे स्थान पाने वाले इन चिकित्सकों का कहना है कि वे पैसे और प्रसिद्धि के बजाए राज्य के साधनहीनों ग्रामीणों का सहारा बनना चाहते हैं। उनका कहना है कि इस गरीबों की सेवा करने की प्रेरणा अपने वरिष्ठ साथी डॉ. रमेश से मिली है। पूत के पांव पालने में दिखे बिलासपुर जिले के साधनहीन गांवों डंगार और बल्ह-सतोह के निवासी सुरजीत और अरुण ने गांव में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की। इसके बाद प्री मेडिकल टेस्ट पास करके 1999 में शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की। 2005 में डिग्री हासिल करने के बाद सुरजीत ने तीन साल तक चंबा जिले के दूरस्थ स्वास्थ्य संस्थान मैहला में ग्रामीणों की जी-जान से सेवा की। वहीं, और अरुण ने टौणी देवी ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र में अपनी सेवाएं दी। इसके बाद एमडी की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ पीजीआई की जनवरी 2009 में हुए प्रवेश परीक्षा में बैठे। परीक्षा में अव्वल रहे सुरजीत को बाल रोग विभाग में दाखिला मिला तो नंबर दो रहे अरुण को रेडियोलॉजी विभाग में सीट मिली(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,21.6.2010)।
ये हैं सही मैं डॉक्टर रुपी भगवान।
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