इस वर्ष मार्च में,मेलबन के वैज्ञानिकों ने पाया कि अल्जाइमर मस्तिष्क के हिस्सों को सिकोड़ देता है और इस कारण संदेश ठीक से नहीं पहुंच पाते। वैज्ञानिकों का कहना था कि अल्जाइमर रोग में मस्तिष्क के अंदर एम्बलाइड बीटा प्लेक्स का निर्माण होता है और न्यूरोन्स का नुकसान होता है। इस संबंध में न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित आलेख में डॉक्टर कासंद्रा स्जोएक का कहना था कि यह अब तक एक पहेली थी कि नयूरोन की कमी की वजह से मस्तिष्क सिकुड़ने वाले हिस्से वैसे नहीं हैं जैसा कि एम्बलाइड बीटा के अधिक मात्रा में जमा होने से दिखते हैं।
खैर,इधर अपने बरकतउल्ला विश्वविद्यालय का फार्मेसी विभाग भी इन दिनों भूलने की बीमारी यानी अल्जाइमर पर शोध कर रहा है। यह कोशिश की जा रही है कि मानव शरीर में मौजूद प्रीसलीन जीन को कैसे निष्प्रभावी किया जाए। अल्जाइमर मानव शरीर में मौजूद प्रीसलीन जींस में खराबी आने के कारण पैदा होती है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम तक भूल जाता है। एल्जाइमर पर काबू पाने के लिए कोई ठोस दवा उपलब्ध नहीं है। इस कारण यह विभाग कंप्यूटर बेस्ड शोध कर रहा है। प्रीसलीन जींस मानव मस्तिष्क में बड़े प्रोटीन को छोटे प्रोटीन में तोड़ना है। ये छोटे-छोटे प्रोटीन ही हमारे दिमाग को ऊर्जा देते हैं। तनाव, प्रदूषण आदि के कारण यह जीन प्रभावित होता है, जिसके चलते छोटे-छोटे प्रोटीन आपस में जुड़ने लगते हैं जिससे न्यूरो फिब्रिलिटी टेंगल (एनएफटी) बन जाता है। यह स्मरण-शक्ति को कम करता है और धीरे-धीरे व्यक्ति एल्जाइमर का शिकार हो जाता है। दैनिक जागरण के भोपाल संस्करण में 4 मई को प्रकाशित खबर के मुताबिक,विश्वविद्यालय का फार्मेसी विभाग प्रीसलीन जींस को गामा सीक्रेटस एन्जाइम से बंद करने का प्रयास कर रहा है, जिससे छोटे-छोटे प्रोटीन का आपस में जुड़ना रुकेगा।
बात धन,वैभव और यश की हो या सहज जीवन-शैली की,स्मरण-शक्ति के बगैर गुजारा नहीं है। इस बात पर कम ही ध्यान दिया गया है कि हमारे हाथ-पैर की उंगलियों के अनुचित संचालन का हमारी स्मरण-शक्ति से सीधा संबंध है। स्मरण शक्ति के कमजोर होने के लिए तनाव अथवा मनोरोग को जिम्मेदार ठहराया जाता है और इसे तेज़ करने के लिए त्राटक समेत कई प्रकार के आसन-प्राणायाम आदि करने,ज्ञान मुद्रा में बैठने,शंखपुष्पी के सेवन आदि की सलाह दी जाती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि याद्दाश्त का संबंध केवल भौतिक जीवन-शैली से है और चंद आदतों को सुधार लेने से याद्दाश्त सामान्य हो जा सकती है।
इसमें शक नहीं कि स्मरण-शक्ति,बुद्धि,मन और मस्तिष्क के लिए ज्ञानमुद्रा से बढकर कोई दूसरी क्रिया नहीं है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह पूरी तरह हानिरहित है और इसका जितना चाहें,जिस अवस्था में चाहें, प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन आज हम स्मरण-शक्ति के कुछ अन्य उपायों पर विचार करेंगे जिनकी ओर ध्यान कम दिया गया है। इनमें से एक है-ताली बजाना। किसी बच्चे को देखिए,खुश होते ही ताली बजाने लगता है। इसी तरह,ताली बजाने से भी खुशी मिलती है। वस्तुतः,ताली बजाने से मन,मस्तिष्क,बुद्धि और समस्त स्नायुमंडल में प्रसन्नता व्याप्त हो जाती है। हमारी हथेलियों में सैकड़ों मर्मस्थल हैं और उन्हें दबाने से बौद्धिक शक्ति और चैतन्य का विकास होता है। दूसरा है तलवों की मालिश। यह केवल नेत्र-ज्योति के लिए उपयोगी नहीं है बल्कि इससे 100 से ज्यादा रोग दूर होते हैं। सैनिकों की निर्णय-क्षमता के सब कायल हैं। उन्हें परेड,ड्रिल आदि भले शारीरिक रूप से चुस्त रखने के लिए कराया जाता हो,मगर इसका उनकी बुद्धि पर भी परोक्ष प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार वज्रासन को, भोजन पचाने वाले आसन के रूप में ही प्रचारित किया जाता है। कपालभाति प्रक्रिया में शरीर में अधिक ऑक्सीजन जाने के कारण स्नायुमंडल शांत हो जाता है। अगर कपालभाति के बाद ज्ञानमुद्रा में वज्रासन लगाया जाए अथवा पराध्यान साधना की जाए,तो स्मरण-शक्ति का अद्भुत विकास होता है। और तो और,गंध का भी याद्दाश्त से गहरा ताल्लुक है। ध्यान दीजिए कि पारंपरिक रूप से शरीर के जिन 12 स्थलों पर चंदन लगाने की परंपरा थी,उनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण ललाट के मध्य चंदन के लेप का रहा है। पराविद्या रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक आचार्य केशवदेव जी महाराज कहते हैं कि इसके वैज्ञानिक रहस्य को जाने बिना भी,श्रद्धा और भक्ति के कारण ही सही,सर्वसाधारण अनजाने में ही इससे लाभान्वित होते रहे हैं। उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर बताया है कि मिट्टी के टुकड़े को पानी में भिगोकर सूंघने से मस्तिष्क की शक्ति विकसित होती है। इत्र भी मस्तिष्क को शांत करने और याद्दाश्त बढाने में सहायक है। केसर,मेहँदी और इलायची की गंध को इस लिहाज से खास उपयोगी माना गया है।
कुछ वर्ष पूर्व,प्रतियोगिता परीक्षाओं से जुड़ी पत्रिकाओं में ऐसे कैसेट के विज्ञापन की बड़ी धूम मची थी जो छात्रों की एकाग्रता बढाने के लिए तैयार किये गए थे। इस कैसेट में और कुछ नहीं था-सिवाए प्राकृतिक संगीत के। महानगरों में अब यह भले सुलभ न हो मगर अन्य इलाकों में पक्षियों का कलरव,रिमझिम बारिश से उपजता संगीत,बादलों की गर्जना सहज हैं। इन्हें सुनने का प्रयास करना मस्तिष्क के लिए स्वास्थ्यकर है।
स्मरण शक्ति का ऑक्सीजन से सीधा संबंध है। केवल पीपल का वृक्ष ऐसा है जिससे 24 घंटे ऑक्सीजन निकलता है।संभवतः,यही कारण है कि शास्त्रों में भी पीपल की सात परिक्रमा करने का निर्धारण किया गया है। ध्यान दें कि पीपल की लकड़ी का हवन में विशेष महत्व है। आर्य समाजी संस्थाओं में पीपल की लकड़ी के साथ चन्दन,गुग्गुल,अष्टगन्ध आदि से तैयार सामग्री का हवन के लिए उपयोग होता है जिससे वातावरण तो शुद्ध होता ही है,स्नायुमंडल पर भी सकारात्मक असर पड़ता है। आचार्य केशवदेव जी के अनुसार,पीपल के पके फल से बने चूर्ण का दूध,चाय,पानी आदि के साथ नियमित रूप से सेवन करने से बुद्धि का विकास होता है। इस फल को खाया भी जा सकता है। सर्वत्र प्राप्य शंखपुष्पी की चटनी को शहदयुक्त पानी के साथ पीने पर चमत्कारिक लाभ मिलता है। इसका एक चम्मच पाउडर पानी या दूध के साथ लेने से भी शीघ्र प्रभाव देखा जा सकता है।
नेचुरोपैथी के विशेषज्ञ कहते हैं कि गर्दन के नीचे लगभग आधे घंटे तक यदि नियमित रूप से हल्की मालिश की जाए,तो स्मरण-शक्ति बहुत बढ़ जाती है। नहाते समय भी सबसे ज्यादा पानी ऊपर से नीचे की ओर मेरूदण्ड पर डालना भी इस लिहाज से बहुत उपयोगी है।
कुछ अन्य ज़रूरी बातें। मानें न मानें, गर्म सीट अथवा स्थान पर बैठना दिमाग के लिए ठीक नहीं है। गर्मियों में,रबड़ की तली वाला जूता बिल्कुल नहीं पहनना चाहिए। और सबसे बड़ा मंत्र यह है कि उन्मुक्त होकर हंसिए। बालसुलभ हंसी। प्रसन्नता अनेक रोगों का समाधान है। यह स्नायु-तंत्र में स्फूर्ति का संचार करता है जिसका स्मरण-शक्ति से सीधा ताल्लुक है। केशव देवजी महाराज ने महासरस्वती के बीजमंत्र ऊँ क्लीं नमः को पद्मासन अथवा किसी भी आसन में,ज्ञानमुद्रा में अपनी कमर को सीधा रखते हुए,हृदय के मध्य सूर्य की उपस्थिति मानकर ध्यान का अभ्यास करने की भी सलाह दी है।
ऐसा कोई प्रमाण नहीं है की शारीरिक क्रियाओं से स्मरण शक्ति का विकास होता है. इसके विकास में केवल मानसिक कर्म ही सहायक होते हैं. मस्तिष्क की कोशिकाओं को लचीला बना रहना स्मरण शक्ति के लिए लाभकारी होता है जिसके लिए चिकनाई युक्त खाद्य उपयोगी सिद्ध होते हैं. विचारषून्यता उत्पन्न करने वाली ध्यान प्रक्रियाएँ स्मृति के लिए हानिकार होती हैं, ऐसा मेरा अनुभव है.
जवाब देंहटाएंचिकनैयुक्त खाद्य पदार्थ!!!! Wat bkwaaas mr. Ramkumae
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