सरकारी अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में गरीब रोगियों व बीपीएल परिवारों को छोड़कर आम लोगों से सेवा शुल्क लिया जाता है। राष्ट्रीय कार्यक्रमों से संबंधित सेवाओं पर भी यूजर्स चार्जेज नहीं है। अस्पतालों में यूजर्स चार्जेज की दरों को पिछले कई सालों से वृद्धि नहीं की गई है। बाजार के मुकाबले सरकारी अस्पतालों में एक्सरे, ईसीजी, अल्ट्रासाउंड, रक्त की जांच जैसी अन्य सेवाओं की दरों में काफी अंतर है।
इसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने शासन को यूजर्स चार्जेज की दरों में 20 से लेकर 50 फीसदी तक वृद्धि का प्रस्ताव भेजा गया था। नियोजन विभाग के संसाधन बढ़ाने के निर्देश के फलस्वरूप ही यह प्रस्ताव तैयार किया गया था। इसे वित्त की मंजूरी भी मिल गई थी। उसके बाद यह फाइल अंतिम स्वीकृति के लिए मुख्यमंत्री के पास भेजी गई थी।
सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने यूजर्स चार्जेज में बढ़ोत्तरी के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। वे नहीं चाहते थे कि यूजर्स चार्जेज की दरों में बढ़ोत्तरी कर आम लोगों की जेब हल्की की जाए। सरकार को राजनीतिक रूप से भी यह कदम भारी पड़ सकता था। इसलिए फिलहाल इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है। वर्तमान में राज्य के 33 बड़े अस्पतालों व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सा प्रबंधन समितियां गठित हैं।
समिति को इन अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर व मजबूत बनाने के लिए यूजर्स चार्जेज से मिलने वाली धनराशि को शत प्रतिशत प्रयोग करने का अधिकार है। जिन अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में समिति का गठन नहीं है वहां यूजर्स चार्जेज से होने वाली आय का 50 प्रतिशत राजकोष में जमा किया जाता है। शेष राशि को संबंधित अस्पताल वहां सुविधाओं को बेहतर बनाने पर खर्च करती है।
(हिंदुस्तान,देहरादून संस्करण,4.5.2010 में दर्शन सिंह रावत की रिपोर्ट)
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