कहीं तो हम पुरुषों की नशामुक्ति के लिए महिलाओं को संगठित होकर आंदोलनरत देखते हैं,तो कहीं स्वयं महिलाएं कश लगाती दिखती हैं। हाल के वर्षों में महिलाओं में धूम्रपान की लत बढी है। खासकर कामकाजी महिलाएं तनाव में हैं इससे मुक्ति के लिए धूम्रपान का शिकार हो रही हैं। कई बार शौकिया तौर पर की गई शुरूआत भी लत बन जाती है। महिलाएं महिलाओं में धूम्रपान के कारण परिवार पर पड़ने वाले असर की चर्चा डॉक्टर शरद थोरा और डाक्टर संदीप जैन ने नई दुनिया के मई द्वितीय अंक में की है जिसे आज इंटरनेशनल डे ऑफ एक्शन फॉर वीमन्स हेल्थ पर आप पाठकों के लिए प्रस्तुत किया जा रहा हैः
अरे जनाब कहीं और जाकर शौक फरमाइए और अपना धुआँ भी साथ लेते जाइए। आप तो मजबूर हैं, अपने आपसे लाचार हैं, हम पर तो रहम खाइए। खुदा के लिए खुद के बच्चों का न सही, हमारा तो ख्याल कीजिए। ऐसी बातें अक्सर बसों व ट्रेनों में सुनाई पडती हैं। आज देश में कई लोगों को यह पता चल चुका है कि तंबाकू का दूसरों पर कितना बुरा असर होता है। किसी बंद जगह जैसे कि बस, ट्रेन, कार, एयरपोर्ट, हॉटेल, कार्यालय, कारखाना या कहीं भी कोई भी धूम्रपान कर रहा हो तो वातावरण में जो धुआँ छोड़ा जाता है वह लोगों के फेफड़ों तक पहुँच जाता है। इसे पैसिव स्मोकिंग या परोक्ष धूम्रपान कहते हैं। बच्चों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ता है। धूम्रपान करने वाला भले ही फिल्टर से छानते हुए धुआँ अंदर ले रहा हो, लेकिन जो लोग उसके आसपास होते हैं, वे बिना छने धुएँ को फेफड़ों में खींचने के लिए विवश हैं। सिगरेट से निकले धुएं में ३ गुना निकोटिन, ३ गुना टार व पचास गुना अधिक अमोनिया होता है, जो अधिक नुकसानदेह होता है। सार्वजनिक स्थलों पर पैसिव स्मोकिंग की वजह से हर साल दो लाख से अधिक लोग तंबाकू जनित बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं, जिन्होंने जीवन में कभी धूम्रपान नहीं किया हो। प्रदूषण की वजह से बच्चों में अस्थमा की बीमारी बढ़ रही है। जिन घरों में कोई सदस्य धूम्रपान करता है, उनमें रहने वाले बच्चों को दूसरों के मुकाबले फेफड़े के रोग होने की आशंका अधिक होती है। ऐसे बच्चे सर्दी, खांसी व साँस की तकलीफों से ग्रसित रहते हैं।
जिन घरों में धूम्रपान आम होता है, उन घरों के बच्चे न चाहते हुए भी जन्म से ही 'धूम्रपान' की ज्यादतियों के शिकार हो जाते हैं। पेसिव स्मोकिंग या सेकंड हैंड स्मोकिंग भी उतनी ही समस्याएँ पैदा करती हैं जितनी किसी धूम्रपान करने वाले को हो सकती है। बच्चों में यह समस्या और गंभीर इसलिए हो जाती है, क्योंकि उनका विकास हो रहा होता है। साथ ही उनकी साँस लेने की गति भी वयस्कों से अधिक होती है।
विकसित देशों में हर छठी मौत सिगरेट के कारण होती है। महिलाओं में सिगरेट पीने के बढ़ते चलन के कारण यह आँकड़ा और बढ़ सकता है। कोई वयस्क एक मिनट में लगभग १६ बार सांस लेता है, जबकि बच्चों में इसकी गति अधिक होती है। पाँच साल का एक सामान्य बच्चा एक मिनट में २० बार साँस लेता है। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में यह गति बढ़कर ६० बार प्रति मिनट तक हो सकती है। जाहिर है कि जिन घरों में सिगरेट या बीड़ी का धुआँ रह-रहकर उठता है उन घरों के बच्चे तंबाकू के धुएँ में ही साँस लेते हुए बड़े होते हैं।
चूँकि वे वयस्कों से अधिक तेज गति से साँस लेते हैं इसलिए उनके फेफड़ों में भी वयस्कों के मुकाबले अधिक धुआँ जाता है। धुएँ के साथ जहरीले पदार्थ भी उसी मात्रा में दाखिल होते हैं। देश के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं में बीड़ी पीना बहुत सामान्य है। इसी तरह शहरी भद्र समाज की आधुनिक महिलाओं में यहाँ तक कि लड़कियों में सिगरेट पीना फैशन बनता जा रहा है। गर्भधारण की अवधि में सिगरेट या बीड़ी पीने वाली महिलाओं को कम वजन के बच्चे पैदा होते हैं। ऐसे बच्चों की रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होती है तथा वे जल्दी किसी बीमारी से घिर जाते हैं। ऐसे बच्चों को दिमागी लकवे की शिकायत हो सकती है साथ ही सीखने में असमर्थता की भी समस्या होती है।
सिगरेट या बीड़ी के धुएं का बच्चे की श्वास-प्रश्वास प्रणाली पर इतना विपरीत प्रभाव पड़ता है कि वे अस्थमा के भी शिकार हो जाते हैं। यदि बच्चे पहले से ही अस्थमा का शिकार हैं तो उसकी स्थिति सिगरेट के धुएं से और बिगड़ सकती है। उसे अस्थमा के अनियंत्रित दौरे भी पड़ सकते हैं। सेकेंड हैंड स्मोकिंग के कारण हर साल अस्थमा के नए बाल रोगियों की संख्या बढ़ जाती है। धूम्रपान का धुआँ बच्चों में निमोनिया या पल्मोनरी ब्रोंकाइटिस अर्थात साँस के साथ उठने वाली खाँसी की समस्या पैदा कर सकता है।
कौन सी समस्याएं पैदा हो सकती हैः
-बच्चों के मध्यकरण में अधिक पानी भर सकता है। उनमें सुनने अथवा बोलने की समस्या पैदा हो सकती है।
-धूम्रपान के धुएँ में पलने वाले बच्चों के फेफड़े कम क्षमता से काम करते हैं। इसी वजह से उनकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली भी कमजोर होती है। वे युवावस्था में दूसरों के मुकाबले कम तगड़े होते हैं।
-बच्चों का सामान्य विकास अवरुद्ध हो जाता है। उनका वजन और ऊँचाई दूसरों के मुकाबले कम होती है।
-जिन्होंने जीवन में कभी भी धूम्रपान नहीं किया हो उन्हें पेसिव स्मोकिंग के कारण फेफड़ों के कैंसर होने का २०-३० प्रतिशत जोखिम होता है।
-बीसवीं सदी के अंत तक सिगरेट पीने के कारण ६ करोड़ २० लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं।
विकसित देशों में हर छठी मौत सिगरेट के कारण होती है। महिलाओं में सिगरेट पीने के बढ़ते चलन के कारण यह आँकड़ा और बढ़ सकता है। धूम्रपान की लत आपके साथ परिवार को भी जहरीले धुएँ का जहर दे देती है। यूं तो हर बुरी आदत का परिणाम पूरे परिवार को सम्मिलित रूप से भुगतना पड़ता है, लेकिन धूम्रपान की सजा आने वाली पीढ़ियाँ तक भुगतती हैं। परिवार के मुखिया या किसी सदस्य के धूम्रपान का असर गर्भस्थ शिशु पर भी पड़ता है। गर्भस्थ शिशु परोक्ष धूम्रपान का शिकार है और इसकी वजह से जन्म के समय उसका वजन कम रह सकता है। उसका मस्तिष्क अविकसित भी रह सकता है। धूम्रपान करने वाला भी जानता है कि शरीर को तंबाकू से कोई फायदा नहीं होता, लेकिन लत हर सवाल का माकूल जवाब ढूँढ लेती है। विकसित देशों में सिगरेट से होने वाले नुकसानों पर शोध हुए हैं, लेकिन हमारे देश में बीड़ी के दुष्प्रभावों पर अब तक कोई गंभीर शोध नहीं हुए हैं। बीड़ी बनाने वालों से लेकर पीने वालों तक सभी के परिवार इसका खामियाजा भुगतते हैं। बीड़ी बनाने का काम परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है, बच्चे इस काम में अहम भूमिका निभाते हैं। बचपन से ही वह वज्रासन की तर्ज पर बैठकर बीड़ी बनाना सीख जाता है। तंबाकू से भरा सूपड़ा उसकी गोदी में रखा रहता है। परिवार भी उसे प्रोत्साहित करता है, क्योंकि छोटी-नाजुक उँगलियों से बीड़ी के धागे की गठान आसानी से और जल्दी लग जाती है। कई बार तो बच्चों का "प्रॉडक्शन" वयस्कों से अधिक निकल आता है। जो परिवार जितनी अधिक बीड़ियाँ बनाकर देगा, उसे भुगतान भी उसी हिसाब से मिलेगा। यही वजह है कि परिवार का हर सदस्य बीड़ी उत्पादन में अपना योगदान देता है। तंबाकू की धाँस पूरे घर में उड़ती रहती है। गर्भवती महिलाएँ भी इसी माहौल में साँस लेती हैं।
हमारे देश में तंबाकू का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। पुर्तगालियों के साथ तंबाकू देश के पश्चिमी तट पर पहुँची थी। आज कोने-कोने में इसके चाहने वाले मौजूद हैं। राजस्व की आवक को देखते हुए केंद्र से लेकर प्रदेश तक की कोई भी सरकार तंबाकू की फसल पर कोई रोक नहीं लगाना चाहतीं। बुंदेलखंड और बघेलखंड में बीड़ी उद्योग बरसों से फल-फूल रहा है। बीड़ी बनाने वालों की आर्थिक स्थिति में पीढ़ियों से कोई सुधार नहीं आया है। बीड़ी निर्माताओं की लॉबी इन इलाकों में आधुनिक उद्योग धंधे नहीं पनपने देना चाहती। लोगों को जीविका के दूसरे विकल्प मिलने लगेंगे तो बीड़ी उद्योग को सस्ते और बंधुआ मजदूर कहाँ से मिलेंगे?
उम्दा और विचारणीय पोस्ट / अब ऐसे महिलाओं के बच्चे तो बेदम होंगें ही साथ साथ देश का भविष्य भी बेदम होगा ,सरकार सो रही है स्वास्थ्य मंत्रालय मलाई चाट रहा है, सत्ता के दलाल अय्याशी कर रहें हैं ,इन सब कारणों की यह परिणति है /
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