थायरॉइड गले में स्थित एक छोटी सी ग्रंथि होती है। यह ग्रंथि संतुलित मात्रा में थायरॉइड हार्मोन्स उत्पन्न करके मेटाबॉलिज्म को सही बनाए रखती है। जब इस ग्रंथि में कोई गड़बड़ी होती है तो इसमें से बहुत अधिक मात्रा में या कुछ कम मात्रा में हारमोन्स निकलने लगते हैं, जिसकी वजह से थायरॉइड की समस्या शुरू होती है। थायरॉइड हार्मोन्स जब शरीर में कम काम करें तो उस स्थिति में हाइपोथायरॉइडिज्म की समस्या उत्पन्न होती है।
बाल ज्यादा झड़ रहे हैं और दर्द भी है..
-हाइपोथायरॉइड की शिकायत होने पर मरीज की कार्यक्षमता कम हो जाती है। मेटाबॉलिक रेट कम हो जाता है।
-रोगी को डिप्रेशन महसूस होता है। वह बात-बात में भावुक हो उठती है, कमजोरी, काम में अरुचि, थकान महसूस होने लगती है।
-जोड़ों में पानी आ जाता है जिससे दर्द होता है और चलने में भी दिक्कत होती है।
-मांसपेशियों में हल्का सा पानी भर जाता है, जिसे मालेनजिया कहते हैं।
-चलते-फिरते हल्का दर्द होता है।
-बालों का झड़ना और पतला होना, चेहरा सूजा हुआ लगना, रूखी आवाज, बहुत धीरे-धीरे और वक्त लगाकर बात करना।
-कब्ज की शिकायत, नींद अधिक आना, लो ब्लड प्रेशर होना भी इसके कारण हैं।
-हृदय की झिल्ली में पानी जमा होने लगता है जिससे हृदय की क्रिया पर भी फर्क पड़ता है। इसे पैरीकॉर्डियल इन्फ्यूजन कहा जाता है।
-धड़कन की गति धीमी पड़ जाती है। प्रजनन क्षमता पर फर्क पड़ता है। मासिक धर्म के दौरान अधिक खून जाता है। खून के थक्के अधिक आते हैं। मासिक चक्र नियमित नहीं रहता है। जब भी ऐसे लक्षण 20 से 40 उम्र की महिलाओं को महसूस हो तो तुरंत डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
थायरॉइड में अधिक वजन संबंधी एक मामला
उन्नीस साल की नेहा का वजन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था। वह खासी परेशान थी। पिछले कुछ दिनों से उसे जल्दी थकान होने लगती थी और किसी काम में उसका मन नहीं लगता था। यही नहीं, बाल झड़ने की शिकायत भी शुरू हो गई थी। शुरुआत में घरवालों ने नजरअंदाज किया, लेकिन दिक्कत बढ़ती रही।
एक समय ऐसा आया जब उसकी आवाज में ही फर्क आने लगा। आनन-फानन में चेकअप कराया गया। जांच से पता चला कि उसे थायरायड की शिकायत है। मोटापे से पीड़ित लड़कियों को मालूम नहीं होता कि बहुत हद तक उनके मोटापे का जिम्मेदार थाइरॉइड हारमोन असंतुलन है। वक्त पर इसका इलाज करा लिया जाए तो मोटापे और कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण किया जा सकता है और शरीर को बाकी दुष्प्रभावों से भी बचाया जा सकता है।
हाइपरथायरॉइडिज्म
जब थायरॉइड हार्मोन्स ज्यादा सक्रिय हों तो उसे हाइपर थायरॉइडिज्म कहा जाता है। थायरॉइड एक बहुत छोटी स्त्रव ग्रंथि है जो ग्रीवा में होती है। थायरॉइड ग्रंथि से थायरॉइड नामक हार्मोन निकलता है। यह हार्मोन शरीर के रासायनिक एवं मेटाबॉलिक क्रिया की गति को नियंत्रित करता है।
हार्मोनों को एक रासायनिक संदेशवाहक के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है जो रक्त से उतकों व अंगों तक पहुंचते हैं और शरीर के क्रियाकलाप पर प्रभाव डालते हैं। इसी तरह से थायरॉइड हार्मोन कई शारीरिक क्रियाओं को प्रभावित करते हैं जैसे दिल की धड़कन की दर, श्वसनतंत्र की दर, कैलोरी खर्च होने, वृद्धि, फर्टिलिटी व पाचन की दर। थायरॉयड ग्रंथी दो हारमोन उत्पादित करती है जिनके नाम हैं थायरॉक्सीन (टी4) और ट्रियोडोथायरोनीन (टी3)। शरीर की एक रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा टी4 बदल कर टी3 हो जाता है।
हाइपरथायरॉइडिज्म के लक्षण हाइपोथायरॉडिज्म से एकदम विपरीत होते हैं। महिला मरीज के शरीर में टी एच एस (थाइरॉइड स्टिम्युलेटिंग हार्मोन्स) थायरॉइड हार्मोन्स ज्यादा बनने लगता है।
-भूख पर कंट्रोल नहीं और नींद गायब
-मेटाबॉलिक रेट बढ़ जाता है। महिला को पसीना अधिक आता है।
-धड़कन तेज हो जाती है। ऐसे लक्षण सामने आते हैं जैसे मरीज डरा हुआ है आंखें फटी-फटी प्रतीत होती हैं।
-भूख अच्छी लगती है, महिला खूब खाती है, लेकिन मोटापे की शिकार नहीं होती।
-इस तरह के रोगी को नींद कम आती है।
-गरमी ज्यादा लगना।
-थोड़े-थोड़े दिनों के अंतराल में दस्त भी आते हैं।
-प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है।
-अनियमित माहवारी और ज्यादा खून आने की शिकायत होती है।
-थायरॉइडिज्म से ग्रस्त लड़कियों में अनेक परेशानियां उभर कर आती हैं जो उनकी दिनचर्या को बुरी तरह प्रभावित करती हैं।
कम वजन संबंधी एक मामला
रूपा की जल्द ही शादी होने वाली है लेकिन पिछले कुछ रोज से उसका चेहरा पीला पड़ता जा रहा था और वजन भी गिरने लगा। घरवाले परेशान थे कि शायद शादी की चिंता की वजह से उसका ब्लडप्रेशर लो हो रहा था, और वजन गिर रहा था। एक दिन नेहा अचानक चक्कर खा कर गिर पड़ी तब घरवालों को लगा कि समस्या शादी नहीं कुछ और ही है।
डॉक्टरों ने तुरंत थाइरॉइड चेक कराने की सलाह दी। तुरत-फुरत टेस्ट कराए गए तो पता चला कि उसे थायरॉइड की शिकायत है। दरअसल, थायरॉइड में मोटा पतला कोई पैमाना नहीं होता, इसमें हारमोन असंतुलन की जांच करानी बेहद जरूरी होती है।
मिथक
1. गॉइटर थायरॉइड से जुड़ी बीमारी है जो दोनों तरह के थायरॉइड के मामलों में देखने को मिलती है। आम धारणा है कि जो हाइपोथायरॉइडिज्म के मरीज होते हैं, उन्हें पत्ता गोभी, फूल गोभी शलगम और पालक जैसी चीजों से परहेज करना चाहिए जबकि ऐसा नहीं होता।
गोभी परिवार की सब्जियों को गॉइटोनेंस कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि जिस क्षेत्र में पानी में आयोडीन नहीं होता वहां के निवासियों को गॉइटर हो सकता है। आमतौर पर यह मानकर चलना गोभी, पालक, शलगम आदि खाने के बाद थाइरॉइडिज्म हो जाएगा, गलत है। हां, यह जरूर है कि आयोडीन रहित पानी व नमक और गॉइटोरेंस युक्त आहार लेना गॉइटर को बढ़ावा देता है। इसी तरह कुछ विशेष दवाएं भी होती हैं जो गॉइटोरेंस उत्पन्न करती हैं।
2. किशोरों में मेटाबॉलिज्म दर अधिक बढ़ जाने से थायरॉइड ग्रंथि के हार्मोन्स में भी परिवर्तन आने लगता है और उन्हें भी थाइराइड की शिकायत हो सकती है।
3.जरूरी नहीं कि महिला थायरॉइड की मरीज हो तो उसके बच्चे को भी थायरॉइड हो, लेकिन किसी गर्भवती महिला को प्रसव के समय बच्चे पर फर्क दिखता है। प्रसव के दौरान शिशु को ऑक्सीजन मिलने में दिक्कत होती है।
जांच
थायरॉइड ग्रंथि से कितने कम या ज्यादा मात्र में हार्मोन्स निकल रहे हैं, यह खून की जांच से पता लगाया जाता है। खून की जांच तीन तरह से की जाती है, टी-3, टी-4 और टीएसएच से। इसमें हार्मोन्स के स्तर का पता लगाया जाता है। मरीज की स्थिति देखकर डॉक्टर तय करते हैं कि उसको कितनी मात्र में दवा की खुराक दी जाए।
हायपरथायरॉइड के मरीजों को थायरॉइड हार्मोन्स को ब्लॉक करने के लिए अलग किस्म की दवा दी जाती है। हाइपोथायरॉयडिज्म का इलाज करने के लिए आरंभ में ऐल-थायरॉक्सीन सोडियम का इस्तेमाल किया जाता है, जो थायरॉइड हार्मोन्स के स्त्रव को नियंत्रित करता है।
तकरीबन 90 प्रतिशत मामलों में दवा ताउम्र खानी पड़ती है। पहली ही स्टेज पर इस बीमारी का इलाज करा लिया जाए तो रोगी की दिनचर्या आसान हो जाती है।
रोग से जुड़े तथ्य
विश्व की 2 से 5 प्रतिशत महिलाएं थायरॉइड की बीमारी से ग्रस्त हैं।
केवल भारत में ही 2 करोड़ थायरॉइडिज्म के मरीज हैं।
थायरॉइड के हर 10 मरीजों में से 8 मरीज महिलाएं ही होती हैं।
करीब 4 करोड़ भारतीय थायरॉइड से ग्रस्त हैं। मधुमेह के बाद इसकी सबसे बड़ी संख्या है।
हर साल 3.5 से 4 लाख नए मरीज सामने आते हैं। थायरॉइड संबंधी गड़बड़ियां भी उतनी ही व्यापक हैं, जितना मधुमेह लेकिन इनका पता नहीं लगता।
थायरॉइड को ’खामोश’ मर्ज कहा जाता है क्योंकि इनके शुरुआती लक्षण इतने हल्के होते हैं कि मरीज को पता ही नहीं लगता कि कुछ गड़बड़ है। जब तक इन लक्षणों का पता चलता है वे अधिक गंभीर हो जाते हैं।
थॉयराइड में परहेज़
हाइपोथायरॉइड में हारमोन का बहुत कम स्राव होता है जिसकी वजह से रोगी को कमजोरी, सुस्ती, मोटापा, कब्ज, थकावट, भूख न लगना आदि की शिकायत शुरू हो जाती है पर कुछ बातों का ध्यान रखकर आप इस बीमारी से निजात पा सकती हैं। आइए जानें विशेषज्ञों की राय-
- मिर्च-मसालेदार, तली-भुनी, डिब्बाबंद चीज, मैदे की बनी चीजें, फास्ट फूड आदि का कड़ाई से परित्याग करें।
- मद्यपान, धूम्रपान, गुटका, तम्बाकू, चाय, काफी, चॉकलेट आदि चीजों को छोड़कर ही इस रोग से स्थाई छुटकारा मिल सकता है।
- गेहूं, चना, सोयाबीन तथा जौ की मिश्रित आटे की रोटी का सेवन करें। इस रोग में बहुत प्रोटीनयुक्त आहार न लें। छिल्के वाली दालों का सेवन भी बहुत लाभकारी रहेगा।
- सभी फल (केला छोड़कर), हरी सब्जी, तथा थोड़ा सा ड्राई फ्रूट को अपने खाने में शामिल करें। अनाजों का सेवन भोजन की मात्र में कम करें।
- अंकुरित अनाज, मट्ठा या छाछ, सलाद रोजाना लें। दिन में अधिक बार कुछ न कुछ खाते रहने की आदत से बचें।
- निठल्ले बैठने रहने की आदत को छोड़ कर काम में व्यस्त रहने की आदत बनाएं।
- इस रोग में तनाव, कुंठा, क्रोध को अपने सिर पर लादे नहीं बल्कि इनका सूझबूझ तथा सामान्य बुद्धि से हल निकालें। अपनी जीवन शैली को बदलने का प्रयास करें।
- अपनी दिनचर्या में योग को शामिल करें। इस रोग में भस्त्रिका, कपालभाति एवं अग्निसार प्राणायाम काफी कारगर है। इनसे चयापचय गति बढ़ती है तथा सुस्ती, आलस्य तथा थकावट को दूर करने में उपयोगी सिद्ध होता है।
- चिंता, तनाव, भय, असुरक्षा, संवेदनशीलता तथा निराशा आदि जैसे कारण जो इस रोग के लिए प्रमुख उत्तरदायी है, को ध्यान, योगनिद्रा एवं शिथिलीकरण से स्थायी रूप से दूर किया जा सकता है। इनका प्रतिदिन आधे घंटे है।
- इस रोग को छुप-छुप कर शरीर में घर बनाने से रोकने का सबसे जरूरी उपाय यह है कि इसके लक्षणों का जरा सा भी संदेह होने पर अपने चिकित्सक से परामर्श कर इसकी जांच कराएं। इस रोग की पुष्टि होने पर हरमोन संतुलन के यथासंभव उपाय अपनाएं, समयानुसार व्यायाम और परहेज जरूर करें(हिंदुस्तान,दिल्ली,25.5.2010)
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