बुधवार, 12 मई 2010

गर्भनिरोधक गोलियां और नारी मुक्ति

इस वर्ष मार्च में,लंदन के शोधकर्ताओं ने दावा किया कि गर्भनिरोधक गोलियां टीनएज गर्ल्स पर प्रभावी असर नहीं छोड़ पा रही हैं। उनके मुताबिक इन गोलियों के इस्तेमाल के बावजूद टीनएज गर्ल्स में होने वाले गर्भधारण की दर में कोई कमी नहीं आई है। फिर भी,इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि गर्भनिरोधक गोलियाँ नसबंदी या कंडोम का विकल्प भले न हों, महिलाओं को उनसे सुरक्षा तो मिली ही है-चाहे शत-प्रतिशत न सही। शत-प्रतिशत सफलता न होने की वजह भी यही है कि इसे खाने से लेकर इसे छोड़ने तक -महिलाएं अनियमितता बरतती हैं। बात मनचाहे समय पर गर्भधारण की हो या दो बच्चों के बीच का अंतराल बढ़ाने की हो, गर्भनिरोधक गोलियाँ बहुत कारगर साबित हुई हैं। गौरतलब है कि ७२ घंटे वाली आई-पिल भी गर्भनिरोधक नहीं होती,बल्कि अनचाहे गर्भधारण से बचने का विकल्प मात्र होती है। गर्भ निरोधक गोलियों के संबंध में कई तरह की भ्रांतियां फैलाई गई हैं ,जैसे- उल्टी होना,35 वर्ष के बाद सूट न करना,वजन बढना,स्तन का दूध कम होना,दिल का दौरा पड़ना,बांझपन बढना,यौन संबंधों पर विपरीत असर पड़ना आदि-आदि। मगर दस मई के संपादकीय में,हिंदुस्तान ने इन गोलियों को नारीमुक्ति से जोड़ा हैः

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