आयुर्वेद ग्रंथ 'भावप्रकाश' कहता है कि 'लहसुन वृष्य स्निग्ध, ऊष्णवीर्य, पाचक, सारक, रस विपाक में कटु तथा मधुर रस युक्त, तीक्ष्ण भग्नसंधानक (टूटी हड्डी जोड़ने वाला), पित्त एवं रक्तवर्धक, शरीर में बल, मेधाशक्ति तथा आँखों के लिए हितकर रसायन है। यह हृदय रोग, जीर्ण रोग (ज्वरादि), कटिशूल, मल एवं वातादिक की विबंधता, अरुचि, काम, क्रोध, अर्श, कुष्ठ, वायु, श्वांस की तकलीफ तथा कफ नष्टकारी है।'
इसमें वाष्पशील तेल 0.06 प्र.श., प्रोटीन - 6.03 प्र.श., वसा (चर्बी) 1.00 प्र.श., कार्बोहाइड्रेट्स 29.00 प्र.श., खनिज पदार्थ 1.00 प्र.श., चूना 0.03 प्रतिशत, स्फुर तत्व 31.00 प्र.श. तथा प्रति 100 ग्राम 1.3 मिलीग्राम लोहा होता है। मेहनतकश किसान-मजदूर तो लहसुन की चटनी, रोटी खाकर स्वस्थ और कर्मठ बने रहते हैं। यह कैंसर से लड़ने में खास उपयोगी है क्योंकि यह खाने -पीने की चीजों या प्रदूषण से शरीर में बनने वाले नाइट्रोसेमाइन के असर को कम करता है। हृदय रोग समेत कई अन्य रोगों में भी यह सुरक्षा कवच बन सकता है। इसे पूरे शरीर के लिए एक शक्तिशाली टॉनिक बताया गया है।
पिछले महीने एनालिटिकल बायोकेमिस्ट्री पत्रिका में छपी रिपोर्ट में कहा गया कि नाइट्रोसेमाइन का संबंध कैंसर से होता है। ज्यादातर सब्जियों, डब्बाबंद आहार और उद्योग से निकलने वाले कचरे में नाइट्रेट की मात्रा होती है। करीब 20 प्रतिशत नाइट्रेट शरीर में जाकर नाइट्रोसेमाइन में बदल जाता है। इस अध्ययन में शामिल लोगों को, एक हफ्ते तब बिना नाइट्रेट और लहसुन वाला भोजन दिया गया। इसके बाद उन्हें सोडियम नाइट्रेट की खुराक इस प्रकार दी गई जिससे वह टॉक्सिक में न बदले। इसके बावजूद, पेशाब की जांच में, इसके टॉक्सिक में बदलने की प्रक्रिया का पता लगा। इसके बाद स्टडी में शामिल लोगों के एक ग्रुप का इलाज लहसुन के डोज से किया गया। उन्हें एक, तीन या पांच ग्राम ताजा लहसुन या तीन ग्राम लहसुन का रस दिया गया। दूसरे ग्रुप को 500 मिली ग्राम एस्कॉर्बिक एसिड या विटामिन-सी दिया गया। दोनों समूहों को सात दिन तक ये खुराक दी गई और हर दूसरे दिन उनके पेशाब के नमूने लिए गए। जांच से स्पष्ट हुआ कि लहसुन का सेवन करने वालों में नाइट्रोसेमाइन की मात्रा कम थी। 'एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन' और 'जर्नल ऑफ न्यूट्रीशन' के अध्ययन का भी निष्कर्ष है कि लहसुन सेवन से कोलेस्ट्रॉल में 10 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है और हर हफ्ते सप्ताह लहसुन के पाँच दाने खाने से कैंसर का खतरा 30 से 40 फीसदी कम हो जाता है।
वस्तुतः,षडरस अर्थात् भोजन के 6 रसों में, "अम्ल रस" को छोड़,शेष पाँच रस लहसुन में सदैव विद्यमान रहते हैं। आज षडरस आहार दुर्लभ हो चला है। लहसुन उसकी पूर्ति के लिए बहुत सस्ता, सुलभ विकल्प है। इसीलिए,लहसुन को गरीबों का 'मकरध्वज' कहा जाता है क्योंकि इसके लगातार प्रयोग से मनुष्य का स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
औषधीय गुणः
मलेरिया के रोगी को भोजन से पहले तिल के तेल में भुना लहसुन खिलाना चाहिए। लहसुन का तेल सवेरे निराहार पानी के साथ लेने से, कितनी ही पुरानी खाँसी हो, फायदा होता है। बिच्छू के काटे स्थान पर डंक साफकर लहसुन और अमचूर पीसकर लगाने से जहर उतर जाता है। डंक ग्रस्त भाग पर पिसी चटनी भी लगाएँ। इन्फ्लूएंजा में लहसुन का रस पानी में मिलाकर चार-चार घंटे बाद दें। इसके सेवन से रक्त में थक्का बनने की प्रवृत्ति बहुत कम हो जाती है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है। लहसुन की गंध से मच्छर भी दूर भागते हैं।यह उच्च रक्तचाप में भी काफी लाभदायक माना गया है। जी मचलने पर लहसुन की कलियाँ चबाना या लहसुनादि वटी चूसना फायदेमंद होता है। रोगाणुनाशक क्षमता होने के कारण लहसुन के एक भाग रस में तीन भाग पानी मिलाकर इसका इस्तेमाल घाव धोने के लिए किया जाता है। कुनकुने पानी में लहसुन का रस मिलाकर गरारे करने से गले की खरास दूर हो जाती है। लहसुन में पर्याप्त मात्रा में लौह तत्व होता है जो कि रक्त निर्माण में सहायक होता है। विटामिन-सी युक्त होने के कारण यह स्कर्वी रोग से भी बचाता है। लहसुन का रस 25 ग्राम की मात्रा में प्रातः निराहार ही त्रिफला के साथ कुछ दिन लगातार लेने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है। यह कब्जहारी है। इसका इस्तेमाल जोड़ों के दर्द या गठिया में भी होता है तथा यह सूजन का भी नाश करती है। लहसुन के रस की पाँच-पाँच बूंदें सुबह-शाम लेने से काली खाँसी दूर हो जाती है। कान में दर्द होने पर, लहसुन और अदरक को बराबर की मात्रा में कूटकर कुनकुना करके कान में लेने से आराम मिलता है। 10 ग्राम लहसुन का रस मट्ठे में मिलाकर तीन बार लेने से पेचिश का शमन हो जाता है।
लहसुन के सेवन से ट्यूमर को 50 से 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है। गर्भवती महिलाओं को लहसुन का सेवन नियमित तौर पर करना चाहिए। गर्भवती महिला को अगर उच्च रक्तचाप की शिकायत हो तो, उसे पूरी गर्भावस्था के दौरान किसी न किसी रूप में लहसुन का सेवन करना चाहिए। यह रक्तचाप को नियंत्रित रख कर शिशु को नुकसान से बचाता है। उससे भावी शिशु का वजन भी बढ़ता है और समय पूर्व प्रसव का खतरा भी कम होता है।
सावधानीः
लहसुन की तासीर काफी गर्म और खुश्क होने के कारण इसे उचित अनुपात में ही लेना चाहिए। खासकर गर्मी के मौसम में पित्त प्रधान प्रकृति वालों को इसका संतुलित इस्तेमाल ही करना चाहिए। कच्चा लहसुन बहुत तीक्ष्ण होता है इसीलिए इसका ज्यादा उपभोग करने से पाचन क्रिया गड़बड़ा सकती है। कुछ लोगों को लहसुन से एलर्जी भी होती है। ऐसी एलर्जी का लक्षण यह होता है कि कहीं-कहीं त्वचा लाल हो जाती है और सिरदर्द होता है। बुखार भी हो सकता है। सर्जरी से पहले लहसुन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। एड्स के रोगी अगर लहसुन का सेवन करते हैं तो उन्हें साइड-इफेक्ट हो सकता है। अगर लहसुन का कुछ दुष्प्रभाव महसूस हो तो मरीज को गोंद कतीरा, धनिया, बादाम-रोगन, नींबू, पुदीना देते रहने से उसका दुष्प्रभाव दूर हो जाता है। घी में भून कर लेने से भी इसका कुप्रभाव दूर हो जाता है। सूखा लहसुन छीलकर ही इस्तेमाल करना चाहिए।
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