रविवार, 25 अप्रैल 2010

दुनिया की आधी आबादी पर मलेरिया का संकट

आज विश्व मलेरिया दिवस है। मलेरिया संक्रमित मादा एनोफिलिस मच्छर(प्लाज्मोडियम) के काटने से होने वाला घातक रोग है। 2008 में,मलेरिया के मामले 108 देशों में सामने आए। टीबी की ही तरह मलेरिया भी भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। पिछले वर्ष ही,भारत में ही, मलेरिया के 10 लाख 53 हजार मामलों का पता चला। वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है क्योंकि अनेक मामले दर्ज ही नहीं हो पाते। पूर्ण समन्वित यह मच्छर केवल रात में ही काटता है। इसका फैलाव कितनी तेजी से होगा यह मच्छर के अतिरिक्त संबंधित व्यक्ति और माहौल पर समग्र रूप से निर्भऱ करता है। 2008 में,दुनिया भर में मलेरिया के 24 करोड़ 70 लाख मामले सामने आए जिनमें से 10 लाख लोग मारे गए । इनमें से अधिकतर मौतें अफ्रीका में हुईं। अफ्रीका में प्रति 45 सेकेंड पर एक मौत मलेरिया से होती है। इसलिए आज का दिन अफ्रीकी मलेरिया दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। दुनिया की लगभग आधी आबादी पर मलेरिया का शिकार होने का ख़तरा है। मलेरिया चार तरह का होता हैः • Plasmodium falciparum • Plasmodium vivax • Plasmodium malariae • Plasmodium ovale Plasmodium falciparum और Plasmodium vivax सबसे कॉमन हैं जिनमें Plasmodium falciparum सबसे घातक है। इसे आपातकालीन मामला माना जाता है तथा मरीज को पूर्णतया स्वस्थ होने तक चिकित्सकीय निगरानी मे रखना अनिवार्य माना जाता है। मलेरिया के लक्षण,संक्रमित मच्छर के काटने से लगभग 10-15 दिन बाद दिखने शुरू होते हैं। बुखार,सिरदर्द,ठंढ लगना और उल्टी इसके सामान्य लक्षण हैं। अगर 24 घंटे के भीतर इलाज न हो,तो खासकर P. falciparum मलेरिया इतनी तेजी से फैलता है कि प्रायः मृत्यु हो जाती है। यदि गर्भवती को मलेरिया हो जाए तो उसके गर्भपात की संभावना 60 प्रतिशत तक बढ जाती है। गर्भावस्था में मलेरिया होने से कम वजन का बच्चा पैदा होने की संभावना रहती है। गर्भावस्था के दौरान मलेरिया के कारण प्रतिवर्ष 2 लाख नवजातों की मौत हो जाती है। प्लैसेंटा में मलेरिया का संक्रमण होने पर नवजात को भई एचआईवी होने का खतरा रहता है। इससे बचाव और इसका इलाज़-दोनो बिल्कुल संभव हैं। प्रारंभ में ही पता चल जाने पर रोग और मौत-दोनो की संभावना तो घटती ही है,किसी और में इसके फैलाव की संभावना भी समाप्त हो जाती है। Artemisinin आधारित combination therapy (ACT)को,खासकर P. falciparum malaria का सर्वोत्तम इलाज माना जाता है। सही जांच के बाद ही मलेरिया की दवा दी जानी चाहिए। सही जांच बस कुछ मिनटों की बात होती है। मलेरिया के लक्षणों में कमी आते ही रोगी दवा लेना बंद कर देता है जबकि मलेरिया के परजीवी खून में मौजूद ही रहते हैं। ऐसे मामलों में दुबारा इलाज शुरू करने के लिए एक और दवा देनी होती है और अगर उस दवा की पूरी खुराक न ली जाए,तो मलेरिया घातक हो जाता है क्योंकि उसकी कोई दवा उपलब्ध नहीं है। घर में कीटनाशी का छिड़काव 3 से 6 माह तक प्रभावी रहता है।डीडीटी का छिड़काव 9से 12 महीनों तक असरकारक रहता है। दवा से भी मलेरिया का बचाव संभव है। यात्रियों को कीमोप्रोफिलैक्सिस लेने की सलाह दी जाती है। Plasmodium falciparum के मामले में, अब पारंपरिक दवाओं का असर नहीं होता। क्लोरोक्विन,सल्फाडोक्सिन-पाइपीमिथामाइ या अन्य मलेरिया रोधी दवाओं का असर कम हो गया है। मलेरियारोधी दवाओं के बेअसर होने के मामले तेजी से बढ रहे हैं जिससे मलेरिया नियंत्रण के प्रयासों को झटका लगा है। भारत में,पूरे पूर्वोत्तर और आँध्रप्रदेश,छत्तीसगढ,झारखंड,मध्यप्रदेश और उड़ीसा में मलेरिया-बहुल 117 जिलों में मलेरिया के एक खास प्रकार पर क्लोरोक्विन का असर काफी कम हो जाने की रिपोर्टें आई हैं। लिहाजा,विश्व स्वास्थ्य संगठन का सुझाव है कि एक से अधिक मलेरिया-रोधी दवाओं, का एक साथ इसतेमाल किया जाए। मसलन, artemisinin का उपयोग अन्य मलेरियारोधी दवा के साथ। फिलहाल,यही मलेरिया का सबसे कारगर इलाज है। यह falciparum malaria के 95 प्रतिशत मामलों का समाधान कर देता है। रोगी का शरीर इस दवा को आसानी से पचा लेता है और यह दवा मलेरिया संक्रमण के फैलाव को रोकने में भी कारगर होती है। दूसरे सबसे कॉमन मलेरिया Plasmodium vivax malaria के मामले में भी यह विधि बहुत उपयोगी है। फिर भी कई देशों में,अब भी क्लोरोक्विन का इस्तेमाल किया जा रहा है क्योंकि अधिकतर मामलों में क्लोरोक्विन अब भी प्रभावी है। होम्योपैथी में मलेरिया के उपचार के लिए मलेरिया ऑफ़िशिनलिस, मलेरिया नोसोड, चाइना सल्फ़ और नैट्रियम म्युरियाटिकम जैसी औषधियाँ उपलब्ध हैं। अनेक चिकित्सकों का मानना है कि मलेरिया जैसी गंभीर बीमारी का इलाज एलोपैथिक दवाओं से ही किया जाना चाहिये, क्योंकि ये वैज्ञानिक शोध पर आधारित हैं। यहाँ तक कि ब्रिटिश होमियोपैथिक एसोसिएशन भी सलाह देता है कि मलेरिया के उपचार के लिए होम्योपैथी पर निर्भर नहीं करना चाहिए। आयुर्वेद में मलेरिया को विषम ज्वर माना गया है। मलेरिया के उपचार के लिए आयुर्वेद में अफ्संथिन, आंवला, नीम, कुटकी एवं शिकाकाई देने का प्रावधान है। इन औषधियों के मेलजोल से बने अनेक चूर्ण, वटी इत्यादि उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त मरीज को हल्का खाना खाने, हरी पत्तेदार सब्जियाँ खाने और दूध पीने के साथ-साथ ठंडी तासीर की वस्तुओं, मेवों और मसालेदार भोज-पदार्थों से परहेज रखने की सलाह दी जाती है।

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