यह एक मज़ेदार अनुभव है कि दुपहिए वाहन पर पीछे बैठे किसी व्यक्ति का हैल्मेट शायद ही वैसा हो जैसा चालक का होता है। नई गाड़ी खरीदने वाला व्यक्ति जब दो हेल्मेट खरीदने जाता है,तो वह पिछली सीट के लिए कमतर क्वालिटी वाला हैल्मेट ही खरीदता है। अमूमन तो फुटपाथ पर बिक रहे 25-50 रूपए के हैल्मेट से ही लोग महीनों काम चलाते रहते हैं। महिलाओं को तो मानो उसकी भी जरूरत नहीं है। बाजार में चेहरा सबको नजर आना चाहिए। यह अफवाह भी खूब फैलाया गया है कि धीमी गति के ट्रैफिक में हैल्मेट की जरूरत नहीं होती और हैल्मेट से गर्दन की रीढ की ह्ड्डी पर बोझ पड़ने से सर्वाइकल स्पांडलाइटिस हो जाता है। जब तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहता है तब तक इस लापरवाही की ओर ध्यान नहीं जाता। ध्यान जाता है तब जब हैड इंजरी हो जाती है। अच्छै हैल्मेट की अनदेखी से होने वाली मौतों का ही नतीजा है कि 20 मार्च को वर्ल्ड हैल्मेट अवेयरनेस दिवस मनाया जाता है। एम्स के सर्जरी विभाग और एपेक्स ट्रामा सेंटर के प्रमुख डॉ. एम.सी.मिश्रा का नई दुनिया के सेहत परिशिष्ट(मार्च द्वितीय) में छपा यह आलेख देखिएः
भारत में प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटना में तीन फीसद की वृद्घि हो रही है। इसकी चपेट में आने वाले ७८ फीसद लोग २०-४४ आयु वर्ग के हैं। दो पहिया वाहन चलाते हुए दुर्घटना की चपेट में आने वाले सैकड़ों युवा हर साल सिर की गंभीर चोटों से जान से हाथ धो बैठते हैं। इन्हें सिर की गंभीर चोटों से केवल हेल्मेट ही बचा सकता है।
प्रति वर्ष करीब १ लाख १० हजार लोग सड़क हादसे का शिकार होकर काल के ग्रास बन रहे हैं जबकि इससे छः गुना (करीब छः लाख) लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं। सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इनमें ७० फीसद ऐसे लोग होते हैं जो हेल्मेट नहीं पहनने और कार का सीट बेल्ट नहीं लगाने की वजह से दुर्घटना के शिकार होते हैं। ९० फीसद सिर की गंभीर चोट को हेल्मेट पहनकर रोका जा सकता है। एम्स ट्रामा सेंटर में आने वाले अधिकांश दुर्घटनाग्रस्त लोगों के सिर में गंभीर चोटें होती हैं और ऐसा हेल्मेट नहीं पहनने की वजह से होता है।
सिर में चोट के शिकार होने वालों में बड़ी संख्या महिलाओं की है। दिल्ली में मोटरसाइकल पर पुヒषों के लिए हेल्मेट पहनना जहाँ अनिवार्य है, वहीं महिलाओं के लिए ऐसा कानून न होने की वजह से महिलाएँ बेफिक्र होकर मोटरसाइकल पर बैठती हैं। दुर्घटना होने पर पीछे बैठी महिलाएँ सिर की गंभीर चोट की शिकार होती हैं। काफी सारी महिलाएँ मौत के मुँह में समा जाती हैं और जो बचती भी हैं वे लंबे समय तक कोमा में रहती हैं। यदि महिलाएँ यानी पत्नी, गर्ल फ्रेंड, माँ, बहन जागरूक हो जाएँ तो वे खुद को तो चोट से बचा ही सकती हैं, पुरुषों को भी रैश ड्राइविंग से मना कर सकती हैं। महिलाएँ पुヒषों को यातायात नियमों के उल्लंघन से मना कर सकती हैं और उन्हें हर हालत में बिना हेल्मेट पहने या कार का बेल्ट लगाए बाहर निकलने से रोक सकती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आँकड़े दर्शाते हैं कि २०२० तक भारत में होने वाली मौतों में सड़क दुर्घटना एक बड़ा कारक होगा। अनुमान के मुताबिक तब प्रति वर्ष पाँच लाख ४६ हजारप्रति वर्ष करीब १ लाख १० हजार लोग सड़क हादसे का शिकार होकर काल के ग्रास बन रहे हैं जबकि इससे छः गुना (करीब छः लाख) लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं। सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इनमें ७० फीसद ऐसे लोग होते हैं जो हेल्मेट नहीं पहनने और कार का सीट बेल्ट नहीं लगाने की वजह से दुर्घटना के शिकार होते हैं। ९० फीसद सिर की गंभीर चोट को हेल्मेट पहनकर रोका जा सकता है। एम्स ट्रामा सेंटर में आने वाले अधिकांश दुर्घटनाग्रस्त लोगों के सिर में गंभीर चोटें होती हैं और ऐसा हेल्मेट नहीं पहनने की वजह से होता है।
इसी आलेख को आगे बढाता डॉ. अपूर्व पौराणिक(इन्दौर मे एमजीएम मेडिकल कॉलेज में न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख) का यह आलेख भी इसी अंक से-
सिर की चोट एक घातक, गंभीर और बहुव्याप्त समस्या है। सड़क दुर्घटनाओं व अन्य हादसों में प्रतिवर्ष लाखों लोग इसका शिकार होते हैं, मर जाते हैं या लंबी अवधि के लिए विकलांग हो जाते हैं। युवा पुरुषों में इसके मामले अधिक होते हैं। वे ही दो पहिया वाहन का अधिक इस्तेमाल करते हैं तथा दुर्घटना के भी शिकार होते हैं।
सिर की चोट/हेड इन्ज्युरी के बारे में सुनने या सोचते ही मन में डर लगता है, सिहरन-सी होती है। सिर या खोपड़ी की हड्डी के भीतर शरीर का सबसे महत्वपूर्ण पर नाजुक अंग मस्तिष्क विद्यमान रहता है जो हमारी चेतना (होश), पहचान, स्मृति, बुद्घि, संवेदनाएँ और परिचालन को नियंत्रित करता है। हेड-इन्ज्युरी के कुछ मरीजों में गर्दन की रीढ़ की हड्डी (सर्वाइकल स्पाइन) पर भी चोट आने की आशंका रहती है, जो स्पानइल कार्ड (मेरू तंत्रिका) को नुकसान पहुँचाकर चारों हाथ-पैरों में लकवे/निशक्तता का कारण बन सकती है। मस्तिष्क (दिमाग) की नाजुकता और महत्व के कारण प्रकृति ने उसकी सुरक्षा के खास उपाय किए हैं। खोपड़ी की हड्डियाँ मजबूत और मोटी हैं, दिमाग के चारों तरफ झिल्लियों की तीन परत हैं और दिमाग के भीतर व बाहर पानी भरा होता है, जो छोटे- मोटे धक्कों को सहन करने का, शॉक एब्ज़ार्बर का काम करता है। इस सबके बावजूद जोर की दुर्घटना में ये समस्त दीवारें दरक जाती हैं। सिर में संघातिक चोट पैदा हो सकती है। तेज गति से वाहन चलाते समय जब दुर्घटना के कारण अचानक कुछ पलों में गति एकदम से कम हो जाती है, उन क्षणों में मस्तिष्क अंदर ही अंदर झटका खाता है, हिल जाता है, रगड़ जाता है, मसल जाता है, घिस जाता है, झनझना जाता है, दिमाग के रेशे टूटते हैं, खून की महीन नलिकाएँ फटती हैं, सूजन आती है, मस्तिष्क के विद्युतीय परिपथ थम जाते हैं।
प्राथमिक चिकित्सा
चोट के तत्काल बाद आरंभिक कुछ मिनट व घंटे बहुमूल्य होते हैं। प्राथमिक चिकित्सा मिल जाए तथा एक घंटे में मरीज किसी अच्छे अस्पताल में पहुँच जाए जहाँ न्यूरोसर्जन /न्यूरोफिजिशियन की, गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) की सुविधाएँ मौजूद हों तो बहुत से मरीजों को मरने से और विकलांग होने से बचाया जा सकता है।
घटनास्थल पर मौजूद व्यक्तियों को हिम्मत और सहज बुद्घि से काम लेना चाहिए। मरीज की हालत पर गौर करें। क्या श्वास चल रही है? क्या हृदय की धड़कन या नाड़ी को महसूस किया जा सकता है? हाथ-पाँव ठंडे तो नहीं हो गए हैं? मुँह से मुँह लगाकर कृत्रिम श्वास देने की जरूरत पड़ सकती है। छाती पर प्रति मिनट एक बार दबाकर हृदय की मालिश की जा सकती है। बहुत थोड़े से ही मरीज इतने ज्यादा गंभीर होते हैं। ज्यादातर की हालत बेहतर होती है। पता लगाने की कोशिश करें कि मरीज होश में है या नहीं ? उससे बात करने की कोशिश करें। उसका नाम पूछें।
सिर या हाथ-पाँव पर हल्के से नाखून चुभाकर दर्द का अहसास पता करने की कोशिश करें। शरीर के किसी भी भाग से खून बह रहा हो तो रुमाल या टॉवेल से उस स्थान को जोर से देर तक दबाकर रखें। मरीज के मुँह से कुछ भी खाने या पीने को न दें। जमीन से उठाते व स्थानांतरित करते समय चार लोग मिलकर, पूरे शरीर एक सीधे से ऐसे उठाएँ कि गर्दन की, रीढ़ की हड्डी पर लचक न आने पाए।
यदि मरीज पूर्ण होश में हो तो उसे आराम करने दें। उसका नाम-पता, फोन नंबर आदि नोट करें। कुछ मरीज सिरदर्द, चक्कर व उल्टियों की शिकायत कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में घबराने की बात नहीं है। सिर से, नाक से, कान से, मुँह से खून आ सकता है। चेहरे व आँखों के चारों ओर चमड़ी में खून जम सकता है, प्रायः सूजन आती है। ये समस्याएँ आम हैं और अपने आप दो-चार सप्ताह में ठीक हो जाती हैं। थोड़े से मरीजों को मिर्गीनुमा दौरे आ सकते हैं। कुछ मरीजों के मुँह व गले में थूक व खून जमा हो जाता है। उन्हें श्वास लेने में मुश्किल हो सकती है। थूक, खून, उल्टी आदि श्वास नली में घुसकर न्यूमोनिया पैदा करते हैं जो गंभीर समस्या है।मौके पर मौजूद व्यक्ति को चाहिए कि नरम रूमाल से मुंह और गले को साफ कर दें तथा मरीज को पतले तकिए के साथ करवट से लिटा दें ताकि गले में जमा गंदगी खुद-ब-खुद बहकर बाहर आती रहे।
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