गुरुवार, 25 मार्च 2010

कोल्ड ड्रिंक और स्वास्थ्य

बाबा रामदेव ने जब कोल्डड्रिंक को टॉयलेट क्लीनर कहा था तब इन कंपनियों ने बड़ा हो-हल्ला मचाया था। इस बारे में भी काफी खबरें छप चुकी हैं कि कैसे आयुर्वेदिक दवाओं में धातु की मात्रा कथित रूप से एक सीमा से ज्यादा होने को आधार बनाकर कई आयुर्वेदिक दवाओं को अमरीका में प्रतिबंधित किया गया है। इसी सिलसिले में आज पढिए दिनांक 24 मार्च,2010 के नई दुनिया का संपादकीय जिसमें शीतलपेय कंपनियों की कारगुजारी का हवाला देते हुए प्रश्न किया गया है किजिन पेयों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में विवाद है उन्हें क्यों झेला जाएः
"कोकाकोला और पेप्सी कोला जैसे शीतल पेयों की बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ हमेशा किसी-न-किसी विवाद में फँसी रहती हैं। जिस तरह कोकाकोला देश में दोबारा लौटी और जिस तरह उसने स्थानीय रूप से कोला बनाने वाली कंपनियों को खरीदा तथा उनके लोकप्रिय ब्रांडों का उत्पादन खुद शुरू किया, उस पर ही काफी विवाद रहा है। ये कंपनियाँ इतनी बड़ी हैं कि इनकी पैसे की ताकत इनके बारे में उठे सारे विवादों को ठंडा कर देती हैं। भारत में भी यह बार-बार हुआ है। केरल का एक विवाद जरूर अभी भी कोकाकोला का पीछा कर रहा है, जिसमें उसे २१६.२६ करोड़ रुपए का मुआवजा देने के लिए कहा गया है। भारत में भूमिगत जल का स्तर लगातार गिरते जाने की समस्या लगभग राष्ट्रीय है। उसमें अगर कोला कंपनी का संयंत्र कहीं लग जाए तो उसकी पानी की जरूरत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। यही केरल के पलक्कड़ जिले के प्लाचिमाड़ा स्थित कोकाकोला के संयंत्र बनने पर हुआ। इस संयंत्र ने बड़े पैमाने पर भूमिगत जल का दोहन शुरू किया और पानी के उपयोग के बाद जो कीचड़ पैदा हुआ, उसे किसानों को "खाद" के रूप में दिया। इस तथाकथित खाद से फसल को नुकसान ही हुआ क्योंकि इसमें कैल्शियम तथा सीसे की मात्रा खतरनाक हद तक थी। संयंत्र के कारण गाँव में जल का स्तर घटा, पेयजल प्रदूषित हुआ, खेती को नुकसान हुआ और लोगों का स्वास्थ्य भी बिगड़ा। प्लाचिमाड़ा पंचायत के जागरूक लोगों ने इसे लगभग राष्ट्रीय महत्व का मसला बना दिया तो केरल की सरकार ने एक अतिरिक्त मुख्य सचिव की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय समिति बनाई जिसने अपनी रिपोर्ट में इस कंपनी पर २१६.२६ करोड़ का दावा ठोका है। २००४ से यह संयंत्र बंद है। बहरहाल कोकाकोला कंपनी इन आरोपों को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। इसी तरह पेप्सी कोला का भी पलक्कड़ जिले में स्थित संयंत्र विवादित है। इसे अपना उत्पादन ६० प्रतिशत तक घटा देने को कहा गया है। पेप्सी कंपनी लिमिटेड ने भी इन आरोपों से इंकार किया है। बहरहाल लगता है कि कंपनियाँ लंबी लड़ाई लड़ेंगी। बहरहाल जिन पेयों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में अनेक विवाद हैं, उन्हें किसी किस्म का प्रोत्साहन देकर आखिर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं? देश की युवा पीढ़ी को नुकसान पहुँचाने वाला ऐसा उपभोक्तावाद जाहिर है कि राष्ट्रीय हित में तो किसी भी तरह नहीं है।"

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