ऐसे लेखकों,दार्शनिकों,कवियों,वैज्ञानिकों,चित्रकारों,संगीतकारों आदि की फेहरिस्त बहुत लम्बी है जो दुनिया की बड़ी शख्सियत थे मगर टीबी के कारण असमय मौत ने दुनिया को उनकी संपूर्ण प्रतिभा से परिचित होने का अवसर नहीं दिया। एंटन चेखव,हेनरी पंचम और अष्टम,जॉन लॉक,रूसो,जेन ऑस्टिन,जॉर्ज ऑरवेल-कितनों के नाम गिनाएँ। और तो और,स्वयं डाक्टर भी टीबी के मरीज होकर इस दुनिया से चल बसे हैं,जिनमें पॉल एरलिक और जॉन कैनेटी के नाम प्रमुख हैं। आंचलिक उपन्यास को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाने वाले अपने फणीश्वरनाथ रेणु जी की मौत भी टीबी से ही हुई थी। पिछले दिनों एक अखबार ने ऐश्वर्या के पेट में टीबी की ऐसी खबर फैलाई कि अमिताभ को सपरिवार फिल्मफेअर समारोह का बहिष्कार करना पड़ा। वैसे,तथ्य यही बताते हैं कि तमाम शानोशौकत और राजसी ठाटबाट में जीने वाले भी खूब टीबी के शिकार हुए हैं। कहते हैं कि जब राजे-महराजे यौनसुख के लिए कई कई रानियां रखने लगे और उत्तेजक दवाइयों का सेवन करने लगे तब उसका प्रभाव उनके हृदय पर हुआ जिसके कारण वे भी टीबी के शिकार होने लगे और उनके इस रोग से पीड़ित होने के बाद ही राजयक्ष्मा शब्द प्रचलन में आया। कई अन्य बड़ी हस्तियों की मौत भी टीबी से हुई होगी जिसका रहस्य उनके निजी वैद्य तक सीमित रह गया होगा। कई सदियों तक यह रोग असाध्य बना रहा मगर आज इसका इलाज़ उपलब्ध है-वह भी बिल्कुल मुफ्त फिर भी त्रासदी देखिए कि दुनिया का हर पांचवा टीबी मरीज़ भारत का है। जब तक आप यह ख़बर पढेंगे,दुनिया के किसी न किसी कोने से टीबी के कई मरीज़ दम तोड़ चुके होंगे। ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि विश्व में,हर 20 मिनट पर टीबी के एक मरीज़ की मौत हो जाती है । आज ही नई दुनिया में छपी एक खबर कहती है कि"केंद्रीय क्षय रोग विभाग ने उत्तरप्रदेश के क्षय रोग कार्यक्रम पर चिंता व्यक्त की है । विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष २००८ में टीबी के नए मरीजों को चिन्हित करने की दर १६६ प्रति लाख थी जो इस वर्ष घटकर १५९ प्रति लाख हो गई है । नए रोगियों की पहचान ७५ फीसदी से घटकर ७३ फीसदी रह गई है । दोबारा इलाज कराने वाले मरीजों की संख्या में कोई इजाफा नहीं हुआ है । ५३ जिलों में कार्यक्रम ठीक से नहीं चल रहा है । कार्यक्रम से संबद्घ कुल ३७७५ पैरिफेरल स्वास्थ्य संस्थानों में से ७६ प्रतिशत संस्थान अपनी प्रगति रिपोर्ट विभाग को नहीं उपलब्ध कराते हैं जिससे कार्यक्रम की स्थिति का पता नहीं चल पाता है । टीबी की जांच के लिए प्रदेश में १९४४ माइक्रोस्कोपी सेंटर होने चाहिए लेकिन वर्तमान में मात्र १७७४ माइक्रोस्कोपी सेंटर हैं । इनमें से २० केंद्रों पर मेडिकल अफसर नहीं हैं।"
इन्हीं सच्चाइयों के कारण,भारत में प्रतिवर्ष तीन लाख लोग इस रोग से मर जाते हैं और प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख लोग इस रोग के शिकार हो रहे हैं। अब इस भीड़भाड़,कुपोषण और दवा न लेने की प्रवृत्ति का क्या किया जाए। इस रोग के प्रति जागरुकता के लिहाज से ही प्रतिवर्ष आज का दिन विश्व तपेदिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में इस रोग के निदान की दिशा में अच्छी प्रगति भी हुई है मगर ऐसा प्रतीत होता है कि इस दिशा में सरकारी के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी की ज़रूरत है।
23 मार्च,2010 का दैनिक हिंदुस्तान(दिल्ली संस्करण) लिखता है कि टय़ूबरक्लोसिस यानी टीबी माइकोबैक्टीरिया से होने वाला हानिकारक संक्रामक रोग होता है। आमतौर पर टीबी का आक्रमण फेफड़ों पर होता है, लेकिन यह बीमारी शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकती है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति के खांसने, छींकने या थूक से यह बीमारी दूसरों में फैल सकती है। इसके संक्रमण में से दस प्रतिशत खतरनाक साबित होते हैं जिनका यदि उपचार नहीं किया जाए तो उससे ग्रसित पचास प्रतिशत रोगी काल का ग्रास बन जाते हैं।
इन्हीं सच्चाइयों के कारण,भारत में प्रतिवर्ष तीन लाख लोग इस रोग से मर जाते हैं और प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख लोग इस रोग के शिकार हो रहे हैं। अब इस भीड़भाड़,कुपोषण और दवा न लेने की प्रवृत्ति का क्या किया जाए। इस रोग के प्रति जागरुकता के लिहाज से ही प्रतिवर्ष आज का दिन विश्व तपेदिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में इस रोग के निदान की दिशा में अच्छी प्रगति भी हुई है मगर ऐसा प्रतीत होता है कि इस दिशा में सरकारी के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी की ज़रूरत है।
23 मार्च,2010 का दैनिक हिंदुस्तान(दिल्ली संस्करण) लिखता है कि टय़ूबरक्लोसिस यानी टीबी माइकोबैक्टीरिया से होने वाला हानिकारक संक्रामक रोग होता है। आमतौर पर टीबी का आक्रमण फेफड़ों पर होता है, लेकिन यह बीमारी शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकती है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति के खांसने, छींकने या थूक से यह बीमारी दूसरों में फैल सकती है। इसके संक्रमण में से दस प्रतिशत खतरनाक साबित होते हैं जिनका यदि उपचार नहीं किया जाए तो उससे ग्रसित पचास प्रतिशत रोगी काल का ग्रास बन जाते हैं।
इस बीमारी से जुड़े 75 प्रतिशत मामले फेफड़ों से संबंधित होते हैं। ऐसी हालत में सीने में दर्द, खांसी के साथ खून आता है। इसमें तीन हफ्ते तक जुकाम भी रहता है। अन्य लक्षणों में बुखार,ठंड लगना, भूख न लगना, वजन घटना और जल्दी थकान होना भी होते हैं। टीबी के 25 प्रतिशत सक्रिय मामलों में फेफड़ों से संक्रमण अन्य अंगों में पहुंचता है। यह संक्रमण दमित प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों और छोटे बच्चों में अधिक देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त टीबी के कई प्रकार भी हैं। एक अन्य घातक टीबी मिलिट्री टय़ूबरक्लोसिस है।
टीबी के लिए अभी ऐसा कोई टीका नहीं बना जो इसके रोगियों को पुख्ता सुरक्षा कवच दे सके। हालांकि कटिबंधीय क्षेत्रों में जहां माइकोबैक्टीरिया अधिक पाया जाता है,नॉन-टय़ूबरक्लोसिस माइकोबैक्टीरिया टीबी से रक्षा करता है।
टीबी बैक्टीरिया को मारने के लिए एंटीबायोटिक्स इस्तेमाल किए जाते हैं। हालांकि माइकोबैक्टीरिया के विभिन्न आकार-प्रकार के कारण टीबी का इलाज कठिन होता है,लेकिन रिफाम्पिजिन और आइसोनिएजिड नामक एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल उपचार के लिए किया जाता है। सक्रिय टीबी में कई एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1993 में टीबी को वैश्विक आपदा घोषित किया था। उसने 2006 से 2015 तक दुनिया में 1.4 करोड़ जाने बचाने की दिशा में प्रयास भी शुरू किए हैं। इस विषय पर आज के हिंदुस्तान(दिल्ली संस्करण) में प्रकाशित रिपोर्ट भी देखिएः
राजधानी दिल्ली का हाल ही बुरा है. तो देश का क्या कहा जाए....जागरुकता और समाजिक परिवेश में बदलाव लाना भी जरुरी है...,एक कड़वा सच यह भी है कि किसी को टीबी हो जाए तो दवा लेने के दौरान भी उससे लोग दूर ही रहते हैं.....जबकि डॉक्टर के अनुसार दवा के लगातार सेवन शुरु करने के कुछ दिन बाद उसके संक्रमण की संभवाना खत्म हो जाती है....
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