आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्वास्थ्य सुविधाएं न होने और प्रशिक्षित कर्मियों की कमी के कारण,खासकर विभिन्न क्षेत्रों की ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा चरमराई हुई है। सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि देश भर में इस समय 20 हजार 486 उप-केंद्रों,4,477 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और 2,337 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है। कई मौजूदा स्वास्थ्य केंद्र उचित भवन,सफाई,बिजली और जलापूर्ति की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं सो अलग। कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में रोगियों को भर्ती करने,ऑपरेशन थिएटर,प्रसव-कक्ष,पैथोलॉजी जांच,एक्स-रे और आपातकालीन उपचार जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। इन केंद्रों में गैर-हाजिरी एक अन्य बड़ी समस्या है। मौजूदा स्वास्थ्य केंद्रों में से 29 प्रतिशत केंद्र किराए के मकान में चल रहे हैं।
सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि चीन और श्रीलंका जैसे विकासशील देशों की तुलना में,भारत अधिकतर स्वास्थ्य मानकों के लिहाज से पीछे है। देश में इस समय 15.72 लाख नर्सें और 84 हजार 852 एलोपैथिक डॉक्टर हैं। मगर भारत में शिशु जन्म दर प्रति 1000 व्यक्ति पर 22 दशमलव 8 रह गया है जो 1991 में 29.5 था। नौ राज्यों में,गर्भनिरोधक गोलियों और अन्य दवाओं का अनिवार्य स्टॉक भी नहीं पाया गया। लेकिन,इन कमियों के बावजूद,भारत में औसत आयु साढे 63 वर्ष हो गई है जो 189-93 के दौरान 59 वर्ष 4 माह ही थी।
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