नई दुनिया,दिल्ली संस्करण मे आज प्रकाशित धनंजय जी की खबर के अनुसार,राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने केंद्र सरकार से नकली डॉक्टरों के सफाए के लिए सात साल पहले तैयार कानून के मसौदे को संसद में पेश करने के लिए कहा है। इस मसौदे को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने तैयार किया था। आयोग ने यह भी कहा है कि उत्कृष्ट चिकित्सा सुविधा एक बुनियादी अधिकार है। अगर इस मामले में शहरों और गांवों में रहने वाले लोगों के साथ कोई भी भेदभाव होता है तो वह मानवाधिकार का हनन है।
आयोग ने एक महीने पहले हुई एक बैठक के ब्यौरे में लिखा है कि नकली डॉक्टर गांवों में आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवा़ड़ कर रहे हैं। सरकार को जल्द से जल्द नकली डॉक्टरों के खिलाफ कानून बनाना चाहिए। बैठक में भाग लेने वाले दिल्ली मेडिकल काउंसिल के सदस्य डॉ. अनिल बंसल ने जानकारी दी कि उन्हें दो दिन पहले यह मिनिट्स मिला।
बैठक २९ जनवरी को हुई थी, जिसमें तमाम राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों सहित विशेषज्ञों ने भाग लिया था। बैठक में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अधिकारी डॉ. वेद प्रकाश मिश्र ने कहा था कि २००३ में ही एमसीआई ने मसौदा तैयार कर दिया था, लेकिन सरकार ने इस पर आगे कोई कार्वाई नहीं की। डॉ. अनिल बंसल ने कहा कि गांवों का क्या कहें, दिल्ली जैसे महानगरों में भी नकली डॉक्टर बेखैफ प्रैक्टिस कर रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने नकली दवा के खिलाफ रोक ह्वीस्ल ब्लोअर स्कीम की घोषणा की है, लेकिन नकली दवाओं का अधिकतर प्रयोग नकली डॉक्टर ही करते हैं। ह्वीस्ल ब्लोअर स्कीम में नकली दवा को पक़ड़ाने वाले लोगों को २० लाख रुपए तक के इनाम की घोषणा की गई है।
दरअसल, नकली डॉक्टरों के हाथ वोटरों की नब्ज पर होते हैं, इसलिए यह मसला राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है। अपना वोट बैंक बिग़ड़ने के डर से कोई भी नेता उनके खिलाफ बोलने की जुर्रत नहीं करता। यही वजह है कि नकली डॉक्टरों के खिलाफ कानून का मसौदा इतने दिनों से ठंडे बस्ते में प़ड़ा है। आजाद कह रहे हैं कि सा़ढ़े तीन साल के पाठ्यक्रम से बने ग्रामीण डॉक्टरों की तैनाती के बाद नकली डॉक्टरों का सफाया हो जाएगा।
(चित्र साहित्य शिल्पी डॉट कॉम से साभार)
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