केस-१
आठ वर्षीय अंकित शर्मा का रुटीन अचानक तितर-बितर हो गया। वो खाने की टेबल पर शिकायत करने लगा कि सब इतनी आवाज करते हुए क्यों खा रहे हैं। यहां तक कि किसी के गहरी सांस लेने या टूथब्रश की आवाज़ पर भी अंकित को गुस्सा आने लगा। अब वो अपने साथियों के साथ हो-हल्ले में शामिल होना तो दूर, ऐसा होने पर रुंआसा होने लगा। कुछ खास आवाजों पर अंकित की प्रतिक्रिया इसी तरह की होने लगी।
केस-२
सभ्य-सुसंस्कृत ५२ वर्षीय अनिल देशमुख का परिवार सकते में आ गया कि क्या ये वही इंसान है, जिसे वे बरसों से जानते हैं, वरना ज़रा से शोर पर कोई किसी को इतनी बेरहमी से कैसे पीट सकता है। हुआ यूं कि ट्रेन में सफर के दौरान किसी सहयात्री के पानी की बॉटल स्कवीज करने पर अनिल ने उससे बहस की और बात बढ़कर यहां तक पहुंच गई। अनिल को भी चुनिंदा आवाज़ों से परहेज है।
कुछ खास तरह की आवाजों के प्रति किसी का इतना आक्रामण रिएक्शन पहली नज़र में "एक्सट्रीम" लगता है लेकिन ये मीजोफोनिया का लक्षण भी हो सकता है। साउंड सेंसिटिविटी से संबंधित यह डिसऑर्डर आसानी से पकड़ में नहीं आता और इसी वजह से मरीज को कई तरह की सामाजिक-मानसिक परेशानियां उठानी पड़ती हैं।
मीजोफोनिया के लक्षण
१. चबाना, निगलना, चुसकी लेना, होठों से चपचप की आवाज़, मुंह में खाना भरे हुए बातें करना, डकार, बॉटल मसलना, चम्मच और फॉइल की आवाज़, थूकना, दांत कुतरना, टूथब्रश करना, प्लास्टिक बैग खोलना-बंद करना आदि।
२. गहरी या हल्की सांस, जम्हाई, खर्राटे, सीटी बजाना, गला साफ करना, हिचकी, सूंघना, सिसकी, नाक से बोलना, हमिंग, बुदबुदाहट, हम्म, अह जैसे ओवरयूज्ड शब्द, टेलीविजन पर हंसी की आवाज आदि।
३. जूतों की हल्की-ऊंची आवाज, फर्श पर कोई आवाज, हाथों का फर्श पर रगड़ा जाना, जोड़ों का चटकना, आंखों को मसलना और पलकें झपकना।
४. पैरों और पूरे शरीर की रिपिटेटिव हरकत, बालों से खेलना, मुंह के पास हाथ, जलती-बुझती रोशनी, वेब एनिमेशन्स आदि।
५. गैजेट्स से परेशानी, मोबाइल पर टेक्सट या कीबोर्ड-माउस की आवाज, बर्तनों की खड़खड़, पेपर और प्लास्टिक बैग्स, ट्रैफिक, कंसट्रक्शन साइट की आवाज, कुत्तों का भौंकना, चिड़िया की चहचहाहट, बच्चों का रोना और पानी की बूंदों की आवाज आदि।
ये है मर्ज
मीजोफोनिया का अर्थ है "आवाज से नफरत"। यानी इस डिसऑर्डर का शिकार व्यक्ति कुछ "खास" आवाजों के लिए इतना सेंसिटिव हो जाता है कि आक्रामक रिएक्शन देने लगता है। इस तरह की आवाजों को ट्रिगर कहते हैं, जो कई तरह के हो सकते हैं। कई बार इसमें कुछ खास भंगिमाएं भी हो सकती हैं। इसके लक्षण हायपरएक्युसिस से मिलते-जुलते से हैं, जिसमें व्यक्ति सारी आवाजों के प्रति संवेदनशील हो जाता है। कई बार इसमें किसी खास व्यक्ति की आवाज़ भी किसी के लिए ट्रिगर का काम करती है, जिससे आपस में बातचीत भी कठिन हो जाती है। हालांकि अभी इसके कारणों पर शोध हो ही रहे हैं लेकिन सेंट्रल नर्वस सिस्टम से इसका संबंध माना जा रहा है। ऐसे कई केसेज भी देखने में आ रहे हैं, जिसमें व्यक्ति किसी खास आवाज़ पर हिंसक हो गया। मिसाल के तौर पर कई बार ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं, जिसमें किसी आवाज पर शांत व्यक्ति भी स्वभाव के विपरीत प्रतिक्रिया देता है। ऐसे में मामले को गंभीरता से लेना चाहिए।
यह होता है इसमें
ट्रिगर के संपर्क में आना मीजोफोनिक व्यक्ति में एकदम से तेज़ गुस्से का कारण बन सकता है। एड्रेनिलन फ्लडिंग, चेहरा तमतमाना, दिल की धड़कन बढ़ना, कंपकंपी आना और उस आवाज से दूर भाग जाना या आवाज के जिम्मेदार व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने की इच्छा मरीज़ को होती है। किसी का चिप्स खाना या कोई अन्य साधारण सी बात इनके गुस्से का कारण बन सकती है और ट्रिगर के न रहने पर मरीज उतने ही सामान्य हो जाते हैं, जितना कोई अन्य व्यक्ति। लगभग सारे ट्रिगर्स हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में शामिल होने के कारण मरीज खुद को इससे अलग भी नहीं कर पाता और किसी के न समझ सकने की स्थिति में और परेशान हो जाता है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि मरीज ऐसे में धीरे -धीरे लोगों से कटता जाता है। किसी सामाजिक उत्सव या मौके पर जाकर किसी अप्रिय हालत का जिम्मेदार बनने की बजाए ये खुद को अलग-थलग कर लेते हैं। गहरा अपराधबोध भी ऐसे मरीजों में देखा गया है। हर मरीज की ट्रिगर की डिग्री अलग-अलग होती है और कई बार लोग किसी खास भंगिमा के प्रति भी संवेदनशील होते हैं।
ये है इलाज
इसका कोई विशेष इलाज नहीं है, बल्कि कई बार इसकी पहचान में मुश्किल होती है। ऐसे में डायग्नोस होने के बाद सबसे बेहतर यही होता है कि मरीज अपने ट्रिगर्स के संपर्क में आना टाले ताकि वो आक्रामक न हो। उदाहरण के तौर पर मरीज को अगर खाने की आवाज से परेशानी है तो वो अलग बैठकर खा सकता है या फिर टेलीविजन को इस वॉल्यूम पर सेट कर सकता है कि दूसरी आवाजें दब जाएं। साथ बैठकर म्यूजिक सुनते हुए खाना भी एक अच्छा विकल्प है। कुल मिलाकर मरीज को उसके परिवारजन ऐसे विकल्प सुझाएं कि वो पूरी तरह से लोगों से कट न जाए। इस तरह के केसेज में अपराध-बोध से ग्रस्त मरीज का मनोवैज्ञानिक समस्याओं का शिकार हो जाना आम बात है तो परिवार और अन्य करीबी लोगों का सहयोग बहुत जरूरी है(डॉ आरके शुक्ला,सेहत,नई दुनिया,दिसम्बर प्रथमांक,2012)।
ज्ञानवर्धक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ।
लाभदायक पोस्ट्।
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी ...
जवाब देंहटाएंबेहतर लेखन !!
जवाब देंहटाएंकैसी कैसी बीमारियाँ ... अच्छी जानकारी साझा की है आपने ...
जवाब देंहटाएंमीज़ोफ़ोनिया के बारे में पहली बार जाना समझा ,इसे दोस्तों के लिए साझा कर रहा हूं , शुक्रिया
जवाब देंहटाएंयही मेरी भी टीप है.
हटाएंशुक्रिया बंधुवर।
हटाएंबहुत उपयोगी जानकारी..आभार
जवाब देंहटाएंअजब गजब की बीमारियाँ पहली बार इसका नाम सुना,,,
जवाब देंहटाएंrecent post हमको रखवालो ने लूटा
बहुत बढ़िया जानकारी :)
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है बेतुकी खुशियाँ
बहुत अच्छी जानकारी ...बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअत्यंत ही उपयोगी व ज्ञानभरी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13 -12 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं....
अंकों की माया .....बहुतों को भाया ... वाह रे कंप्यूटर ... आज की हलचल में ---- संगीता स्वरूप
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आवाज देखनी पडती है किसकी है कोयल की या काक की
जवाब देंहटाएंयुनिक तकनीकी ब्लाग