जरा सोचिये, अगर जिंदगी बचाने वाली दवाईयां ही बेअसर होने लगें तो मरीजों की क्या दशा होगी। शायद इसे आप भयानक सपना समझे लेकिन हकीकत में ऐसा ही हो रहा है। दवाइयों पर बैक्टीरिया अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते जा रहे है और नई पीढ़ी की एंटीबायोटिक्स भी बेअसर साबित होती जा रही हैं।
हाल ही सामने आए एक शोध अध्ययन के मुताबिक दुनियाभर के बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं पर अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते जा रहे है और पिछले १५ सालों में तो एंटीबायोटिक पर बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि तीसरी और चौथी पीढ़ी की दवाईयां बेअसर हो चुकी है। एसचैरीचिशिया कोली, एनटिरोबैक्टीरियाए, सूडोमोनास ऐरू गीनोसा, ऐसीनीटोबेक्टर बोमानी और केल्बसीलेना न्यूमोनिया जैसे परजीवी इंसानों और जानवरों में रोगों के लिये जिम्मेदार होते है, अब तीसरी और चौथी पीढ़ी की दवाइयों पर भी प्रतिरोधक क्षमता बना चुके है।
भारत में एंटीबायोटिक पर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के बहुत मामले सामने आ रहे है जो कि चिंता का विषय है। देश में मरीज और उनके परिजन एंटीबायोटिक दवाओं का गलत इस्तेमाल करते है जिससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जा रही है। मरीज डाक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों को पूरी समय सीमा तक नहीं लेते और इसी कारण बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जा रही है, जो कि आने वाले समय में काफी नुकसानदायक साबित हो सकती है।
विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार चिकित्सक के स्तर पर यदि ५० प्रतिशत गलत एंटीबायोटिक दवाइयों की सलाह दी होती है तो ५० प्रतिशत मरीज भी इसे लेने में कोताई बरतते हैं। ५० प्रतिशत जनसंख्या ऐसी भी है जिन्हें एंटीबायोटिक दवाएं उपलब्ध ही नहीं हो पाती है। हाल ही में ९२ एंटीबायोटिक और तपेदिक की दवाओं को बिना डाक्टरी परामर्श के वितरण पर रोक लगाई है।
भारत में सुपरबग बनने के कई कारण हैं लेकिन सबसे ज़्यादा दिक्कत लोगों के बिना डाक्टरी सलाह के दवाएं लेने से है। सुपरबग एनडीएम1 एक ऐसा सुपरबग है जो काफी घातक है और एंटीबायोटिक दवाओं पर ये इतना ज़्यादा प्रतिरोधक क्षमता बना चुका है कि फिलहाल ऐसी कोई दवा नहीं बन पाई है जो इसे ख़त्म कर सके। सुपरबग के अलावा भी ऐसे कई एंटीबायोटिक प्रतिरोधक बैक्टीरिया हैं जो लोगों की सेहत के लिए ख़तरनाक है।
दवाओं के अलावा,प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के कई और कारक भी शामिल हैं और इसके कई मामले सामने आए हैं। अक्सर लोग गंदे हाथों से खाते हैं या फिर खाने में साफ-सफाई न बरतना और जानवरों व इंसानों के बीच सम्पर्क से भी बैक्टीरिया फैल जाते हैं।
एक तरफ जहां दवाओं का अनियमित इस्तेमाल हो रहा है,वहीं दूसरी ओर नई दवाओं के विकास न होने से स्थिति अनियंत्रित हो गई है। इन बिगड़ते हालत को काबू में करने के लिए ये महत्वपूर्ण है कि लोगों को दवाओं का बेजा इस्तेमाल न करने के बारे में समझाया जाए। कई दवाइयों पर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ना ख़तरनाक है और इसके समाधान के लिए अधिक से अधिक अनुसंधान हो,जिससे नई दवाइयों का विकास हो सके(डॉ. मुफ़्ती सुहेल सैयद,सेहत,नई दुनिया,अक्टूबर द्वितीयांक 2012)।
एंटीबायोटिक के बारे में कुछ बेहद उपयोगी आलेख इस लिंक पर हैं।
बात तो चिंता की है ही......
जवाब देंहटाएंऐसे हालात में दवाओं का बेजा इस्तेमाल पर रोक ही हितकारी होगा,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST:..........सागर
यह तो सच में चिंता का विषय है !
जवाब देंहटाएंkya homiopathik chikitsa me bhi antibiotic dwa haoti hai .
जवाब देंहटाएंACHCHHI JANKARI KE LIYE DHANYVAD
आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (10-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय ||
एलोपैथी की दवाओं की दवाओं के साथ मेरे अनुभव बहुत अच्छे नहीं रहे
जवाब देंहटाएं-मुझे लगता है इन पर जितनी निर्भरता कम हो उतना अच्चा.
आपको दीपावली की तहेदिल से मुबाकर
जवाब देंहटाएंयूनिक ब्लॉग--------- आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाऐं
रौशनी का पर्व दिपावली आपके घर में सुख समृद्धि लाए !
जवाब देंहटाएंयही कामना ....
एलोपेथिक दवा का स्तेमाल उचित नही किया जाता है इस के गलत उपयोग से लोगो की किडनियां लिव्हर ख़राब हो रहे है
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक पेड़ पोधे के माध्यम से स्वस्थ रहा जा सकता है