शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

डेंगू का वायरस पद-प्रतिष्ठा-पैसा नहीं देखता

शीत ऋतु के आगमन से पूर्व लोगों के डेंगू के चपेट में आने की खबरें बीते वर्षों में भी आती रही हैं लेकिन इस वर्ष डेंगू की मारक-क्षमता का विस्तार हुआ है। देश के चार मुख्य महानगरों के अलावा डेंगू ने अब छोटे-बड़े शहरों के अलावा गांव-कस्बों को भी अपनी चपेट में लिया है। एक तो यह नया रोग है और दूसरे इसके बारे में आम लोगों को कम जानकारी है, वहीं इस रोग के लक्षण अन्य बीमारियों से मिलते-जुलते हैं। मीडिया में डेंगू की खबरें खूब तैर रही हैं लेकिन वह भी सनसनी की तरह। उसमें लक्षणों व इससे बचाव के तौर-तरीकों के बारे में विशेषज्ञों के हवाले से कम ही जानकारी दी जा रही है। पिछले दिनों बॉलीवुड के स्टार निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा की डेंगू से हुई मौत के बाद इसका भय ज्यादा बढ़ा। आम आदमी के मन में सवाल उत्पन्न हुआ कि इतने संपन्न व्यक्ति की मौत तमाम चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होने के बाद भी हो सकती है तो आम आदमी की क्या बिसात है। लेकिन वास्तविकता यह है कि यदि इस रोग का समय रहते पता चल जाये और ठीक समय पर उपचार चालू हो जाये तो अमूल्य जीवन बचाये जा सकते हैं। विडंबना यही है कि सरकारें लोक कल्याणकारी दायित्वों के निर्वहन से बचने की कोशिशों में हैं और चिकित्सा कमाई का पेशा बनता जा रहा है जहां भयादोहन और जेब ढीली करने की प्रवृत्ति नज़र आती है। डेंगू के प्रसार का एक पहलू यह है कि यह साफ पानी में व घरों के भीतर भी पनपता है। दिल्ली में देखने में आया कि यह बीमारी झुग्गी-झोपडिय़ों के बजाय पॉश इलाकों में ज्यादा नज़र आई। हरियाणा में भी नये अमीरों के शहर गुडग़ांव में डेंगू के ज्यादा मामले प्रकाश में आये हैं। वास्तव में संपन्न लोगों के घरों में साफ पानी ठहरने की ज्यादा गुंजाइश होती है। 

वास्तव में डेंगू के मच्छर से बचाव और उपचार के लिए जो ठोस व आवश्यक जानकारी जनसाधारण को दी जानी चाहिए, वह नहीं दी जा रही है। चिकित्सा-तंत्र की लापरवाही व स्टीक इलाज का उपलब्ध न होना मरीजों की कतार बढ़ा रहा है। मरीजों की संख्या इतनी अधिक है कि कई मरीजों के लिए बेड तक उपलब्ध नहीं हैं। प्राइवेट अस्पतालों की तो दीवाली के पहले दीवाली मन रही है। देश में चिकित्सा-तंत्र की जो हालत है उसे देखकर तो यही लगता है कि डेंगू अपना जीवन-चक्र पूरा करके ही जायेगा। ऐसा बढ़ते मरीजों व मरने वालों की संख्या में इजाफे से निष्कर्ष निकाला जा रहा है। वास्तव में सरकारों की तरफ से यदि डेंगू के नियंत्रण के कारगर उपाय किये जाते तो हर साल नियमित रूप से डेंगू का प्रसार न होता। इस रोग से बचने के लिए सरकार के बाद सामाजिक जिम्मेदारी बढ़ जाती है। मौसम में ठंड का असर देखते ही हम एयर कूलरों का उपयोग तो बंद कर देते हैं लेकिन उसके पानी को नहीं हटाते, जो डेंगू मच्छर को पनपने का मौका देता है। इसी तरह अभिजात्य वर्ग के इलाकों में स्वीमिंग पूल, छोटे तालाब, खुली टंकियां, हौज तथा बगीचों में ठहरा साफ पानी डेंगू मच्छरों के लिए उर्वरा भूमि तैयार करता है। विडंबना यह है कि हमारे समाज में व्यक्तिवादी सोच हावी होती चली जा रही है। हम व्यक्तिगत हित के सामने सार्वजनिक हितों की तिलांजलि दे देते हैं। यही सोच डेंगू के मामले में भी है। लेकिन हर व्यक्ति को सोच लेना चाहिए कि उसके आंगन में पला डेंगू का मच्छर उसके घर में भी असर दिखा सकता है। 

वास्तव में आज सबसे बड़ी जरूरत डेंगू के वायरस के गुण-धर्म की पहचान व उसके तात्कालिक उपचार हेतु शोध किये जाने की है। चिकित्सा विशेषज्ञ बता रहे हैं कि डेंगू के वायरस में बदलाव महसूस किया जा रहा है। पिछले पखवाड़े में दिल्ली के विशेषज्ञों को डेंगू का नया स्ट्रेन दिखा है। इसके चलते शिकार मरीज की त्वचा, आंखों व शरीर के जोड़ अधिक प्रभावित नज़र आ रहे हैं। विशेषज्ञ कयास लगा रहे हैं कि इस वायरस की प्रकृति में बदलाव आया है अथवा इसके साथ कुछ अन्य वायरस मिल चुके हैं। इन लक्षणों ने चिकित्सा विशेषज्ञों को भी हैरत में डाला है। अधिक संख्या में मरीजों के आने तथा डेंगू की पुष्टि होने से बदलते लक्षणों की पुष्टि हो पाई। लेकिन दूसरी ओर मरीज इस रोग के लक्षणों को लेकर भ्रमित रहते हैं। त्वचा में बदलाव के कारण मरीज एलर्जी समझकर त्वचा विशेषज्ञ के पास, आई फ्लू के भ्रम में नेत्र चिकित्सक के पास तथा जोड़ों में दर्द की वजह से हड्डी विशेषज्ञों के पास जाते देखे गये। ऐसा इसलिए भी हुआ कि कई मामलों में जहां बुखार का असर कम देखा गया, वहीं उनके प्लेटलेट भी अधिक गिरे। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इस बार डेंगू ज्यादा मारक नहीं है। मरीज तीन से पांच दिन में ठीक हो रहे हैं। लेकिन पर्याप्त जानकारी व उपचार के बारे में सही सलाह न मिलने से मरीज दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। अत: केंद्र सरकार, राज्य सरकारों व चिकित्सा विशेषज्ञों का दायित्व बनता है कि इस रोग से बचाव व उपचार के बारे आम जनता को पर्याप्त जानकारी समय रहते दी जाये। इसके वायरस की रोकथाम के लिए गहन शोध व अनुसंधान की भी तत्काल आवश्यकता महसूस की जा रही है(संपादकीय,दैनिक ट्रिब्यून,25.10.12)।

 नोटःसंलग्न संपादकीय नेशनल दुनिया,दिल्ली,26.10.12 से।

11 टिप्‍पणियां:

  1. भगवन की भेंगी नजर, डेंगी का उपहार |
    मानव की नित हार है, दिल्ली की सरकार |
    दिल्ली की सरकार, हाथ पर हाथ धरे है |
    बढती भीषण व्याधि, व्यर्थ ही लोग मरे हैं |
    करो सफाई खूब, नहीं जमने दो पानी |
    नहीं तो जाओ डूब, मरे ना उनकी नानी ||

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  2. डेंगू के इस रोग का ,बढ़ता अत्याचार
    ध्यान देय इस रोगका,सोये ना सरकार,,,,

    RECENT POST...: विजयादशमी,,,

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  3. बिल्‍कुल सही ... सार्थकता लिये सटीक प्रस्‍तुति

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  4. आभार इस पोस्ट का...
    मौसम की मार से बचे रहें बस...

    सादर
    अनु

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  5. अच्छी पोस्ट उपयोगी जानकारी लिए ..
    आभार !

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  6. जागरुकता जरूरी है...सार्थक पोस्ट!!

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  7. आपके इस लेख नें हमारी भी जागरूकता बढा दी । आपका बहुत आभार । साफ पानी को भी खुला न रखना हमें बचा सकता है ।

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  8. सचेत रहना ही हल हो सकता है..... अच्छी पोस्ट

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  9. बचाव ही बेहतर उपाय है..पर क्या करें सार्वजिनक तौर पर स्वच्छ रहने की आदत जो नहीं है..कूड़ा घर के बाहर फेंक कर समझते हैं कि हमने अपना काम कर दिया। पर तरीके से उसके निस्तारण की योजना या तो बनती नहीं है औऱ जहां बनती है वहां लोग तबतक सहयोग करने को राजी नहीं होते जबतक कई लोग उस समस्या का सामना न करने लगें।

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  10. डेंगू से बचाव के लिए पपीते के नरम पत्तो का 2 -2चम्मच रस एवं गिलोय का रस 2-2चम्मच 8-8घंटे में दीजिए ब्लड में जो प्लेटलेट की संख्या कम हो जाती है इस से बढ़ जाती है
    साथ ही मलेरिया में भी उपयोगी है

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