एपिलेप्सी यानी मिर्गी लंबे समय तक बने रहने वाला रोग है। इस में समय-समय पर बार-बार दौरे होते रहते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों में बौद्धिक और शारीरिक क्षमता पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता। चुनांचे यदि एपिलेप्सी या मिर्गी से घिरा व्यक्ति मेहनती और लगनशील है तो वह जीवन के हर शिखर को चूम सकता है। मिर्गी के होते हुए भी जीवन में सफल हो सकते हैं। इसके लिए दौरा पड़ने पर फर्स्ट एड की एबीसी जानना जितना जरूरी है, उतना ही दौरों पर रोक लगाने के लिए उपचार संबंधी बुनियादी नियमों की समझ रखना भी आवश्यक है।
किसी को आपके सामने मिर्गी का दौरा पड़े तो घबराएँ नहीं, बल्कि उसकी मदद करें। लक्ष्य यह कि उसे दौरे के समय कम से कम नुकसान हो। दौरा दो-तीन मिनट में खुद ठंडा पड़ जाता है। उसे गिरता देखें तो जहाँ तक हो सके उसे बचाने की कोशिश करें। आसपास कोई तेज धार वाली चीज है तो उससे उसे बचाएँ। पास में नदी, तलाब या स्वीमिंग पुल हो, कहीं आग जल रही हो या दूसरा कोई संकट नजर आए तो उसकी रक्षा करें। दौरे के दौरान जीभ न कटे, इस उद्देश्य से कोई साफ कपड़ा जैसे कि रूमाल को गोल लपेट कर उसके दाँतों के बीच में रख दें, मगर उसका मुँह खोलने के लिए जोर-जबरदस्ती न करें। न ही चमड़ा सूँघाने की कोशिश करें। उससे कोई लाभ नहीं होता।
दौरा ठंडा पड़ जाए तो व्यक्ति को एक करवट लिटा दें ताकि भीतर से निकली लार, रेशा, खून आदि अंदर साँस की नली में न जाने पाए। दौरे के दौरान उसके मुँह में पानी या कोई चीज न डालें। न उसे हिलाएँ-डुलाएँ, न ही पक़डकर दौरा रोकने की कोशिश करें। उसके आसपास भीड़ न लगाएँ। उस तक ताजा हवा पहुँचती रहे, यह जरूरी है। पर जब तक उसकी हालत में सुधर न आए, उसे अकेला न छोड़ें। दो-तीन मिनट में दौरा ठंडा न पड़े और झटके बार-बार आते दिखें तो तुरंत डॉक्टर की मदद लें।
उपचार
मिर्गी का उपचार कई बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है। पह१ली कोशिश यही होती है कि यदि कोई भौतिक कारण है तो उसे दूर किया जाए। जैसे कि, यदि मस्तिष्क में टीबी या कोई दूसरा संक्रमण (इन्फेक्शन) है, तो उसका इलाज किया जाए, ट्यूमर है तो उसका ऑपरेशन किया जाए, मस्तिष्क की कोई धमनी या शिरा फूल गई है तो उसे ठीक किया जाए। कई लोगों में इसी से दौरे पड़ने बंद हो जाते हैं। जिन लोगों में कोई निश्चित भौतिक कारण नहीं मिलता, उन्हें मिर्गी-रोधक दवाएँ दी जाती हैं ताकि दौरे रूक सकें। दौरों को रोकने के लिए कई प्रभावशाली दवाएँ हैं। रोग की किस्म, उग्रता और उसके वजन के मुताबिक एक या अधिक दवाएँ उपयुक्त मात्रा में देने से ७५ प्रतिशत मामलों में दौरे पड़ने बंद हो जाते हैं। कुल प्रयास यह होता है कि रोगी को उतनी ही दवा दी जाए, जिससे कि दौरे पड़ने बंद हो जाएँ और दवा का कोई दुष्प्राभाव न हो।
यह फैसला एक अनुभवी डॉक्टर ही ले सकता है कि किसे किस दवा से लाभ पहुँचेगा, लेकिन नतीजे दवा शुरू करने के बाद ही स्पष्ट होते हैं। कई रोगियों में बार-बार दवाएँ जोड़नी-घटानी या दवा की मात्रा बढ़ानी-घटानी पड़ती है। दवा का असर बनाए रखने के लिए उसे सालों-साल नियम से लेना पड़ता है। यह सोचकर कि कोई अन्य व्यक्ति किसी दूसरी दवा से अधिक स्वस्थ रह पा रहा है, दवा में परिवर्तन लाना बिलकुल गलत है। दवा से कोई असंतोष हो, कोई साइड-इफैक्ट नजर आए, तो डॉक्टर को बताना चाहिए। डॉक्टर दवा में आवश्यक परिवर्तन सुझा सकता है।
जिन्हें दौरे पड़ने बिलकुल बंद हो जाते हैं, उनमें से ५० प्रतिशत से अधिक रोगियों की दवा बंद हो जाती है और वे आगे भी मिर्गी से मुक्त रहते हैं। जिन रोगियों को पिछले तीन वर्षों में एक बार भी दौरा नहीं पड़ा होता, जिनके दौरे ही दवा से रुक जाते हैं, जिनका ईईजी सामान्य होता है, मस्तिष्क में कोई विकृति नहीं होती, उनमें दवा बंद करने की अच्छी संभावना होती है। मगर दवा बंद करने का फैसला डॉक्टर को ही लेना होता है। किसी भी रोगी की दवा एकदम बंद नहीं की जाती, बल्कि उसे धीरे-धीरे कम किया जाता है और तीन से छह महीनों में पूरी तरह रोका जाता है। जिन रोगियों को दवा लेने के बावजूद कभी-कभार दौरे पड़ते रहते हैं, उन्हें दवा ताउम्र लेनी पड़ सकती है(डॉ. यतीश अग्रवाल,सफदरजंग अस्पताल,दिल्ली का यह आलेख सेहत,नई दुनिया के सितम्बर 2012 प्रथमांक में प्रकाशित है)।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
अछि मालूमात देती हुई पोस्ट है.
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग-हीरे मोती पर टिप्पणी का विकल्प तो है,मगर टिप्पणी की कोशिश करने पर वर्ड वेरिफिकेशन वाला बॉक्स आ जाता है जिसके साथ पब्लिश का टैब नहीं दिखता। कृपया देखें और शब्द सत्यापन तत्काल हटाने का कष्ट करें।
हटाएंआपकी सारी जानकारियां बढिया रहती हैं
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी आभार !
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