जीवन में अनेक प्रकार के तनावों के कारण हम जाने-अनजाने ऐसा व्यवहार कर बैठते हैं जिससे दूसरों की भावनाएं आहत होती हैं। भीड़ वाली जगहों पर अक्सर,कंधे या हाथ टकरा जाते हैं,पर कई लोग इसकी फ़िक्र नहीं करते। कुछ कदम चलने के बाद एक-दूसरे को टेढ़ी नज़रों से देखा और फिर चलते बने। ग़लती करने में कुछ भी ग़लत नहीं है। वस्तुतः,हमेशा कोई सही नहीं होता। मगर हममें से अधिकतर के लिए इसे स्वीकारना मुश्किल होता है कि हमने ग़लती की। कई बार,हम जानते हैं कि हमने जो किया,सही नहीं था। मगर मन खुद को सही ठहराने के सौ बहाने ढूंढ लेता है क्योंकि अगर अपने किसी व्यवहार से हमने बुरा महसूस किया,तो फिर सॉरी कहना होगा। सॉरी कहने का अर्थ ही इस बात को स्वीकारना है कि हमने ग़लती की। लेकिन अगर आप सॉरी चलताऊ अंदाज़ में कहते हैं जिसका मक़सद ख़ुद को अगली बार सुधारने से क़तई न हो(जिसकी ओर इस पोस्ट में संकेत किया गया है),तो हम न सिर्फ दूसरे का विश्वास खो देंगे,आत्म-विकास भी अवरूद्ध होगा।
आस्ट्रेलिया में तो बच्चों की शिक्षा पर दिए जाने वाले समय का एक बड़ा हिस्सा सॉरी का महत्व सिखाने में बीतता है। वहां अच्छी आदतों के लिए भी सॉरी कहने का चलन है। मसलन,यदि कोई बिल्कुल समय पर पहुंचे,तो कहेगाःI am sorry to be so punctual.सॉरी कहने से ज़्यादा ज़रूरी है उसे महसूस करना। किंतु,अगर आपने ग़लती की है तो सॉरी कहना ही चाहिए- अगर आप दिल से इसे न कहना चाहें,तब भी कहें क्योंकि आपके इस एक शब्द से तुरंत ही सामने वाले के घाव पर मरहम लग जाता है। सॉरी कहने का मतलब है कि आप अहं का त्याग कर रहे हैं और आपके लिए संबंधों की अहमियत है। सॉरी कहना अगर लोग जानते तो कितनी ही शादियां बचाई जा सकती थीं। इन्हीं तमाम पहलुओं पर,नई दुनिया के नायिका परिशिष्ट में 29 अगस्त,2012 को प्रकाशित संध्या रायचौधरी का आलेख(आशोधित रूप में) देखिएः
"सॉरी या माफ कीजिएगा, कहने के लिए बहुत आसान और सहज शब्द/ वाक्याँश हैं। हम कहना चाहते हैं, लेकिन कह नहीं पाते, क्योंकि जितना आसान इन्हें उच्चारना होता है, "कहना" उतना ही मुश्किल होता है । अपना सारा अहं भूलकर, मिटाकर ही इन्हें कहा जा सकता है, पर कह देने के बाद बहुत तरल और हल्का महसूस हुआ करता है। कहने को ये शब्द बहुत छोटे हैं, लेकिन माफी, सॉरी या प्लीज़ जैसे शब्द घावों को भरने का काम करते हैं। "अवर जर्नी टू वि़ज़्डम" जैसी किताब की लेखिका कैरोल आर्सबोर्न के अनुसार शर्म, बेइज्जती, माफी आदि पर सालों से शोध चल रहा है कि इन शब्दों में आखिर ऐसा कौन सा राज छुपा है जो अद्भुत तरीके से दूरियों को मिटा देता है।" कई बार इसके चमत्कारिक परिणाम देखे गए हैं क्योंकि यही वह शब्द है जिससे घृणा-चक्र टूटता है और जिसकी बदौलत कुछ एकदम ब्रांड-न्यू सामने आ सकता है।
प्लीज़ शब्द में है जादुई शक्ति
वास्तव में क्षमा माँग लेने के लिए भी साहस की जरूरत है। यह ईमानदारी भरा काम है, क्योंकि हमें यह स्वीकारने में कि हम गलत हैं, बहुत समय लगता है, बहुत सोचना पड़ता है और मन का द्वंद्व अनवरत चलता रहता है। लेकिन सॉरी कहने के बाद हमारे आपसी रिश्तों में नई उम्मीद जागती है। यह समर्पण का काम है क्योंकि यह आपको चीजों को बनाए रखने में मदद करता है और संबंधों को मजबूती प्रदान करता है। ब्रिटिश मनोचिकित्सक डेलिस अब्राम के अनुसार सॉरी कहना बेहद मुश्किल है। यह आपके अहम से जुड़ा होता है। आप गलत हैं और अपने व्यवहार के लिए शर्मिंदा हैं, यह अहसास आपको शर्मिंदगी से भर देता है। लेकिन सही मौका, सही समय, साहस और दिल से माँगी गई माफी आपको अपराधबोध से मुक्त कर राहत की साँस लौटाती है। बैंगलुरू के रिलेशनशिप एक्सपर्ट डॉ. बाबूजी राम, सॉरी को लेकर बहुत ही अच्छी व्याख्या करते हैं। उनके अनुसार जश्न के मौके हमेशा लोगों को करीब लाते हैं। माफी और सॉरी बोलने के लिए किसी खास आयोजन का समय सबसे अच्छा होता है। इसके लिए दीपावली, होली या नए साल का विशेष अवसर सबसे अच्छा मौका देता है, क्योंकि त्योहारों की खुशियों में आसानी से मतभेदों को भुलाया जा सकता है, एक-दूसरे के गले मिला जा सकता है । बाकी फिर हमारी संवेदनाएँ अपने आप जुड़ ही जाती हैं।
कनाडाई लेखिका मारग्रेट लॉरेंस के अनुसार विदेशों में प्लीज शब्द को जादुई शब्द के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ब्रिटेन में लोग एक दिन में आठ बार सॉरी बोलते हैं यानी साल में लगभग २९२० बार और जीवन भर में लगभग ३० लाख बार सॉरी बोलते हैं। कई बार तो उनकी गलती नहीं भी होती है फिर भी वे सॉरी कहकर सामने वाले को एक पल में हक्का-बक्का कर देते हैं।
आस्ट्रेलिया में तो बच्चों की शिक्षा पर दिए जाने वाले समय का एक बड़ा हिस्सा सॉरी का महत्व सिखाने में बीतता है। वहां अच्छी आदतों के लिए भी सॉरी कहने का चलन है। मसलन,यदि कोई बिल्कुल समय पर पहुंचे,तो कहेगाःI am sorry to be so punctual.सॉरी कहने से ज़्यादा ज़रूरी है उसे महसूस करना। किंतु,अगर आपने ग़लती की है तो सॉरी कहना ही चाहिए- अगर आप दिल से इसे न कहना चाहें,तब भी कहें क्योंकि आपके इस एक शब्द से तुरंत ही सामने वाले के घाव पर मरहम लग जाता है। सॉरी कहने का मतलब है कि आप अहं का त्याग कर रहे हैं और आपके लिए संबंधों की अहमियत है। सॉरी कहना अगर लोग जानते तो कितनी ही शादियां बचाई जा सकती थीं। इन्हीं तमाम पहलुओं पर,नई दुनिया के नायिका परिशिष्ट में 29 अगस्त,2012 को प्रकाशित संध्या रायचौधरी का आलेख(आशोधित रूप में) देखिएः
"सॉरी या माफ कीजिएगा, कहने के लिए बहुत आसान और सहज शब्द/ वाक्याँश हैं। हम कहना चाहते हैं, लेकिन कह नहीं पाते, क्योंकि जितना आसान इन्हें उच्चारना होता है, "कहना" उतना ही मुश्किल होता है । अपना सारा अहं भूलकर, मिटाकर ही इन्हें कहा जा सकता है, पर कह देने के बाद बहुत तरल और हल्का महसूस हुआ करता है। कहने को ये शब्द बहुत छोटे हैं, लेकिन माफी, सॉरी या प्लीज़ जैसे शब्द घावों को भरने का काम करते हैं। "अवर जर्नी टू वि़ज़्डम" जैसी किताब की लेखिका कैरोल आर्सबोर्न के अनुसार शर्म, बेइज्जती, माफी आदि पर सालों से शोध चल रहा है कि इन शब्दों में आखिर ऐसा कौन सा राज छुपा है जो अद्भुत तरीके से दूरियों को मिटा देता है।" कई बार इसके चमत्कारिक परिणाम देखे गए हैं क्योंकि यही वह शब्द है जिससे घृणा-चक्र टूटता है और जिसकी बदौलत कुछ एकदम ब्रांड-न्यू सामने आ सकता है।
प्लीज़ शब्द में है जादुई शक्ति
वास्तव में क्षमा माँग लेने के लिए भी साहस की जरूरत है। यह ईमानदारी भरा काम है, क्योंकि हमें यह स्वीकारने में कि हम गलत हैं, बहुत समय लगता है, बहुत सोचना पड़ता है और मन का द्वंद्व अनवरत चलता रहता है। लेकिन सॉरी कहने के बाद हमारे आपसी रिश्तों में नई उम्मीद जागती है। यह समर्पण का काम है क्योंकि यह आपको चीजों को बनाए रखने में मदद करता है और संबंधों को मजबूती प्रदान करता है। ब्रिटिश मनोचिकित्सक डेलिस अब्राम के अनुसार सॉरी कहना बेहद मुश्किल है। यह आपके अहम से जुड़ा होता है। आप गलत हैं और अपने व्यवहार के लिए शर्मिंदा हैं, यह अहसास आपको शर्मिंदगी से भर देता है। लेकिन सही मौका, सही समय, साहस और दिल से माँगी गई माफी आपको अपराधबोध से मुक्त कर राहत की साँस लौटाती है। बैंगलुरू के रिलेशनशिप एक्सपर्ट डॉ. बाबूजी राम, सॉरी को लेकर बहुत ही अच्छी व्याख्या करते हैं। उनके अनुसार जश्न के मौके हमेशा लोगों को करीब लाते हैं। माफी और सॉरी बोलने के लिए किसी खास आयोजन का समय सबसे अच्छा होता है। इसके लिए दीपावली, होली या नए साल का विशेष अवसर सबसे अच्छा मौका देता है, क्योंकि त्योहारों की खुशियों में आसानी से मतभेदों को भुलाया जा सकता है, एक-दूसरे के गले मिला जा सकता है । बाकी फिर हमारी संवेदनाएँ अपने आप जुड़ ही जाती हैं।
कनाडाई लेखिका मारग्रेट लॉरेंस के अनुसार विदेशों में प्लीज शब्द को जादुई शब्द के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ब्रिटेन में लोग एक दिन में आठ बार सॉरी बोलते हैं यानी साल में लगभग २९२० बार और जीवन भर में लगभग ३० लाख बार सॉरी बोलते हैं। कई बार तो उनकी गलती नहीं भी होती है फिर भी वे सॉरी कहकर सामने वाले को एक पल में हक्का-बक्का कर देते हैं।
रिश्ते में आ जाती है मिठास
"सॉरी" बोलना भी एक कला है जो हर किसी को नहीं आती। हमें पता ही नहीं होता कि सॉरी बोलें तो कैसे? हम कई बार सॉरी बोलते हुए काफी असहज महसूस करते हैं। लेकिन सॉरी बोलने से आत्मा तो पवित्र होती ही है, साथ ही मन की पीड़ा भी दूर हो जाती है। सॉरी बोलने का सही तरीका आपके जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयों को दूर कर सकता है जिससे काफी हद तक रिश्तों में आई कड़वाहट कम हो सकती है। हम सॉरी बोलने से केवल इसलिए कतराते हैं कि कहीं हम गलत साबित न हो जाएँ, लेकिन ऐसा नहीं है। जब हम सॉरी बोलते हैं तो वास्तव में हम महानता की ओर बढ़ते हैं।
छोटों से माफी माँगने में कैसी शर्म?
कई माता-पिता सोचते हैं कि बच्चों से माफी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे बड़े हैं और इसलिए वे जैसा चाहें,बच्चों के साथ बर्ताव कर सकते हैं। स्थिति का सामना करना तब कठिन हो जाता है जब बड़ों को छोटों के सामने अपनी गलती स्वीकार करना पड़ती है या उन्हें सॉरी बोलना पड़ता है, क्योंकि इसमें अहम आड़े आ जाता है। लेकिन हमारा सॉरी बोलना उन्हें ज़िंदगी में एक बड़ी सीख दे जाता है और भविष्य में उन्हें यह बात हमेशा स्मरण रहती है कि जब हमसे इतना बड़ा व्यक्ति सॉरी कह सकता है तो हम क्यों नहीं? मगर बच्चों से सम्मान पाने के लिए उन्हें सम्मान देना ज़रूरी है।
औषधि की तरह है
पाकिस्तानी लेखिका नाजिया ने अपनी किताब "अनसैड वर्ड्स हेल्प यू एंड योर लव" की भूमिका में सर्वप्रथम अपना ही उदाहरण दिया है कि सॉरी शब्द कहना हमें हमारी माँ रोज स्कूल जाने से पहले सिखाती थी। मां का कहना होता था कि अपनी ग़लती हो तो सॉरी कहना बहुत ज़रूरी है लेकिन अपनी ग़लती न भी हो तो सॉरी कहने से तुम्हारी इज्ज़त ही बढ़ेगी। इसलिए,जब कभी असावधानीवश मैं कुर्सी,टेबल या दरवाज़े से टकराती थी तो अपनी कुहनी या घुटने मसलते हुए उन बेज़ुबान चीज़ों को भी सॉरी बोलती थी। एक और उदाहरण नाज़िया ने अपनी क़िताब में दिया है कि जब भी उनकी अंग्रेज़ी की टीचर ब्लॉकबोर्ड पर चॉक से कुछ लिखती थीं और चॉक से घिसटने की आवाज़ होती थी जो बड़ी ख़राब लगती थी और अनायास ध्यान प्रश्न से हट जाता था,तब वो टीचर अपना सिर पीछे घुमाती थीं और चॉक को हमें दिखाकर सॉरी बोलती थीं। हालांकि इसमें गलती उनकी नहीं थी,लेकिन उनकी मिठास भरी सॉरी बहुत असर करती थी। वास्तव में,साहस के साथ माफी मांगने में समय ज़रूर लगता है,लेकिन यह औषधि का काम भी करती है और जीवन-पर्यन्त हमें रिलैक्स किए रहती है"।
ध्यान रहे कि सॉरी कहना आपकी हार नहीं है। उल्टा,यह इस बात का प्रतीक है कि आप ज़िम्मेदारी ले रहे हैं। इसलिए, इसकी पहल करने में भी संकोच नहीं होना चाहिए। करके देखिए,आप तुरंत बेहतर महसूस करने लगेंगे।
अच्छी बात बतायी आपने .
जवाब देंहटाएंek achhee baat yahaan bhi hai-
कुपोषण की वजह शाकाहार है -Narendr Modi
http://aryabhojan.blogspot.in/2012/08/narendr-modi.html
सॉरी... राधारमण जी,
जवाब देंहटाएंपूरा आलेख पढ़ लिया... कुछ नहीं छोड़ा.
प्लीज़ .... इस तरह की चिकित्सा ही किया करें... दर्द नहीं होता.
सॉरी... राधारमण जी !
जवाब देंहटाएंपर ये सब कहना जितना आसान है करना उतना ही मुश्किल है , समाज में कितना विरोधाभास है देखीये अनजान लोगों को हम बड़े आराम से छोटी मोटी गलती होने या ना होने पर भी बड़े आराम से सॉरी बोल देते है , किन्तु जैसे ही बात अपनो की आती है हमें सॉरी कहने में अपमान सा या हार सी लगने लगती है , फिर जो माफ़ी बस शब्द भर बन जाये ऐसी सॉरी का फायदा भी क्या है |
हमारी टिप्पणी कहाँ गयी....??
जवाब देंहटाएंअभी तो राधारमण जी आप मुझे टायफाइड में क्या खाएं क्या न खाएं इसकी जानकारी दें तो आभारी रहूंगी....यहाँ तो जितने मुँह उतनी बातें हैं..डॉक्टर ज्यादा विस्तार से कहते नहीं.(हमारे पतिदेव को हुआ है.)
आपका मेल आई डी नहीं मिला सो यहाँ लिख रही हूँ..
सादर
अनु
टायफाइड जल-मलजनित रोग है। लिहाजा,खाना खाते समय और शौचालय के उपयोग के बाद साबुन से अपने हाथ अच्छी तरह धोयें|दरवाजों और टॉयलेट की हैंडल को दिन में एकाधिक बार साफ करें।
हटाएंहाथ थोड़ी-थोड़ी देर में धोते रहें|एंटीबायोटिक दवाएं सही समय पर लें। अधिक पेय लें। सादा पानी उबालकर लें,तो बेहतर। नल से सीधे आ रहा पानी पीने से बचें|
कच्चे फल और सब्ज़ियाँ न खाएं। खाना गर्म खाएं। फास्टफूड,जंक-फूड,डब्बाबंद खाद्य-पदार्थों से बचें|दालें, ताज़ा फल और हरी सब्ज़ियां खासतौर से उपयोगी हैं। मौसमी का रस दें। यदि आयुर्वेदिक उपचार लेना चाहें तो डॉ. उमेश पुरी के अनुसार, लक्ष्मीविलास रस,त्रिभुवन कीर्तिरस,सूत शेखर रस,गोदन्ती और शंख का मिश्रण उपयोगी है।
सुंदर सकारात्मक पोस्ट.....
जवाब देंहटाएंसॉरी यदि सिर्फ शिष्टाचार वश न होकर
जवाब देंहटाएंदिल से कहा हुआ हो तभी असरदार है
आभार अच्छी पोस्ट ....