शनिवार, 5 मई 2012

स्लिप डिस्क से छुटकारे के लिए आसन

आजकल पीठ दर्द एवं कमर दर्द को बहुत ही सामान्य बीमारी माना जाने लगा है। लेकिन एक समय बाद यह दर्द बढ़ता जाता है और स्लिप डिस्क की बीमारी में बदल जाता है। योगासन इस बीमारी से पूरी तरह मुक्ति दिलाता है। 

जब कमर की रीढ़ की हड्डी के चारों ओर सहारा देने वाली मांसपेशियां लंबे समय तक कठोर एवं असुविधाजनक स्थिति के कारण संकुचित हो जाती हैं, तब उस स्थान में ऐंठन और दर्द प्रारम्भ हो जाता है। कभी अचानक ज्यादा भार पड़ने के कारण रीढ़ की हड्डी के बीच की गद्दी (डिस्क) में दरार पड़ जाती है या वह टूट जाती है तो उसे स्लिप डिस्क की बीमारी कहते हैं। यह बीमारी उन्हीं लोगों को होती है जो परिश्रम नहीं करते और कुर्सी पर बैठने वाला कार्य ही करते हैं। इस रोग का प्रमुख कारण रीढ़ की हड्डियों, नसों एवं लिगमेंट में अपर्याप्त लचीलापन तथा तनाव को माना गया है। 

योग में इलाज 
इस बीमारी का योग में बहुत ही सरल, प्रभावशाली तथा स्थायी इलाज है। ऐसे रोगी भी कुछ सप्ताह के सरल यौगिक अभ्यास से इस रोग से पूर्णतया मुक्त हो गए जिन्हें डॉक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दे दी थी। 

दर्द तेज हो तो 
यदि स्लिप डिस्क का दर्द तीव्र हो, तो कड़े बिछावन पर लेटकर कमर को कुछ दिनों तक हिलाना-डुलाना बिल्कुल बंद कर देना चाहिए। जब तक हड्डी की डिस्क ठीक न हो जाए और सूजन कम न हो जाए, बिस्तर पर पूर्ण विश्रम करना चाहिए। दर्द और सूजन वाली जगह पर बारी-बारी से गर्म और ठंडी पट्टी देते रहने से जल्दी आराम मिल जाता है। कुछ समय तक फिजियोथिरेपी का अभ्यास करना भी लाभकारी होता है। 

क्रियाएं और आसन 
जब चलने-फिरने लायक हो जाए तो इन यौगिक क्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए। प्रारम्भ में ज्योतिष्टकासन और मत्स्य क्रीड़ासन में विश्रम करना सीखना चाहिए। इसके पश्चात् मकरासन का अभ्यास करना चाहिए। मकरासन का अभ्यास पांच-सात बार करें। जब यह आसन अच्छी तरह होने लगे तो क्रमश: अर्धशलभासन, सरल भुजंगासन, सरल धनुरासन, भुजंगासन, शलभासन, वज्रासन तथा अर्धमत्स्येन्द्रासन का अभ्यास करना चाहिए। प्रत्येक आसन को पांच-पांच बार करने के पश्चात् अद्दासन में आराम करना चाहिए। 

अर्धशलभासन की अभ्यास विधि 
पेट के बल जमीन पर लेट जाएं। सिर को ठुड्डी के बल जमीन पर रखें। दोनों हथेलियों को जांघों के नीचे जमीन पर रखें। अब दाएं पैर को जमीन से ऊपर उठाएं। पैर बिल्कुल सीधा ही ऊपर उठाएं। लगभग 5 सेकेंड तक इस स्थिति में रुकने के बाद वापस पूर्व स्थिति में आएं। यही क्रिया बाएं पैर से भी करें। प्रारम्भ में इसकी तीन आवृत्तियों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे आवृत्तियों को 25 से 30 बार तक बढ़ाएं। जब आप इसकी 25 से 30 आवृत्तियों के अभ्यास करने की स्थिति पार कर लेते हैं तो आपको दोनों पैरों को एक साथ उठाने का अभ्यास प्रारम्भ कर देना चाहिए। 

शिथिलीकरण 
इस रोग में आपको सामान्यतया कुछ दिन बिस्तर पर बिताना पड़ता है। इसलिए यदि इस समय शिथिलीकरण का अभ्यास कर लिया जाए तो रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाता है। यह दर्द से ध्यान हटाता है तथा मानसिक तनाव को कम करता है। यह नाड़ियों को बहुत शांत एवं शिथिल कर आत्मविश्वास भी बढ़ाता है। 

भोजन 
प्रारम्भ में हल्का भोजन लेना चाहिए। सब्जियों का रस या सूप सर्वोत्तम है। इसके बाद खिचड़ी लेनी चाहिए। बिस्तर पर पड़े रहने से रोगी को कब्ज हो जाया करता है। ये आहार कब्ज दूर करते हैं। जैसे-जैसे रोग अच्छा होता जाए, चावल, दाल, सब्जी एवं रोटी खायी जा सकती है। ऐसे भोजन जिससे कब्ज होती है या जो गरिष्ठ होते हैं, नहीं लेने चाहिए। इनमें मांस, पनीर, तेल में तली वस्तुएं आदि शामिल हैं। अण्डा, दूध, घी आदि प्रोटीनयुक्त चीजें भी नहीं लेनी चाहिए। 

ध्यान दें 
इस रोग में केवल पीठ को पीछे झुकाने वाले आसन करने चाहिए। आगे झुकने वाले आसनों का अभ्यास तब तक नहीं करना चाहिए जब तक योग विशेषज्ञ इसके लिए अनुमति न दे दे। कुर्सी पर ज्यादा देर तक बैठने वाले लोग योगासनों का अभ्यास आज से ही शुरू कर दें। वजनी चीजें घुटनों को मोड़कर सावधानी से ही उठाएं। 

शिथिलीकरण अभ्यास की विधि 
पेट के बल (मकरासन) में या पीठ के बल (शवासन) में लेट जाएं। चेहरे को पूर्णतया शिथिल कर दें तथा शरीर के सभी अंगों को पूरी तरह ढीला छोड़ दें। अब अपने दाएं पैर पर मन को एकाग्र कर उसे नितंब से लेकर अंगुलियों तक पूरी तरह से ढीला करें। ठीक इसी प्रकार बाएं पैर को भी ढीला करें। इसके बाद दाएं हाथ को कंधों से लेकर अंगुलियों तक खूब ढीला करें। फिर, यही क्रिया बाएं हाथ से भी करें। इसके पश्चात् पीठ, पेट, सीना, गला तथा चेहरे पर मन को बारी-बारी से एकाग्र करते हुए ढीला करें। यह क्रिया आरामदायक अवधि तक की जा सकती है(कौशल कुमार,हिंदुस्तान,दिल्ली,25.4.12)।

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