बुधवार, 2 मई 2012

मासिक चक्र की समस्या का यौगिक उपचार

यह आवश्यक है कि कभी भी अत्यधिक ज़ोर पड़ने वाला कार्य न किया जाए, परंतु सावधानी को छोड़कर अन्य कोई कारण नहीं है कि महिलाएँ मासिक धर्म के दौरान अभ्यास बंद कर दें। 

सूर्य नमस्कार 
इससे प्राणशक्ति का स्तर ऊपर उठेगा और स्नायविक अंतःस्रावी क्रियाओं में संतुलन आएगा। अपनी क्षमतानुसार धीरे-धीरे बढ़ाकर बारह चक्रों तक अभ्यास कीजिए।

आसन 
श्रोणि प्रदेश से ऊर्जा अवरोधों को दूर करने का सबसे प्रभावी उपाय है शक्ति बंध समूह के आसन, इसके अलावा वज्रासन समूह से वज्रासन, उष्ट्रासन, मार्जारि आसन, व्याघ्रासन, शशांकासन, सुप्त वज्रासन, शशांक भुजंगासन। पीछे झुकने वाले आसन जैसे-भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन, चक्रासन, कंधरासन, ग्रीवासन।

अन्य अभ्यास
-पश्चिमोत्तासन, मत्स्यासन, ताड़ासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, उत्थानासन, पाद हस्तासन, हनुमानासन। सिर नीचे करके किए जाने वाले आसन करना विशेष लाभदायी है, क्योंकि उनसे प्रजनन अंगों से रक्त का प्रवाह उल्टी दिशा में होता है एवं अवरोधक मलों का निष्कासन होता है। साथ ही पीयूष ग्रंथि पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। परंतु इन आसनों को मासिक धर्म के दौरान नहीं करना चाहिए।

प्राणायाम 
नाड़ी शोधन, उज्जायी एवं भ्रामरी प्राणासन रजःकाल के साथ जुड़े सरदर्द, माइग्रेन तथा तनावपूर्ण परिस्थितियों को दूर करने के लिए प्रभावकारी हैं। प्राणायाम द्वारा अतीन्द्रिय स्तरों तक से तनाव दूर हो जाते हैं और मानसिक शांति मिलती है। अंग उतरने एवं गर्भाशय मुखशोथ (सरविसाइटिस) के लिए नाड़ी शोधन प्राणायाम की तृतीय अवस्था, जिसमें मूलबंध एवं जालंधर बंध का अभ्यास किया जाता है, सर्वाधिक प्रभावकारी है। भस्त्रिका प्राणायाम द्वारा जीवनीशक्ति बढ़ती है एवं विषाक्त तत्व साफ होते हैं। इसको अनार्तव (एम्नोरोह्य) एवं कष्टार्तव (डिसमेनोरोह्य) के लिए अनुशंसित किया जाता है। 

मुद्रा एवं बंध 
विपरीतकरणी मुद्रा, पाशिनी मुद्रा एवं योग मुद्रा का अभ्यास यहाँ पर उचित होगा। अश्विनी मुद्रा, मूलबंध एवं सहजोली मुद्रा द्वारा निचले अंगों में से ऊर्जा उत्पन्ना होती है। वे संबंधित तंत्रिकाओं को उत्तेजित करती हैं तथा प्रजनन-निष्कासन प्रणाली के अंगों को सुचारू बनाती है। मासिक धर्म के पूर्व के तनाव को कम करने के लिए महामुद्रा एवं महाबेध मुद्रा विशेष लाभकारी हैं क्योंकि उनसे शरीर में प्राणशक्ति का संचार एवं वितरण नियंत्रित होता है और शारीरिक-मानसिक और भावनात्मक स्थिरता आती है।  

षट्क्रिया 
जल नेति का अभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए। कुंजल एवं लघु शंखप्रक्षालन हफ्ते में दो बार या जैसी आवश्यकता हो। याद रखिए, कब्ज़ से श्रोणिप्रदेश में संकुलता (कंजेशन) बढ़ती है, जिससे दर्द एवं ऐंठन बदतर हो जाते हैं। इस प्रदेश के अंगों से संबंधित रोगों में कब्ज़ को दूर करना इलाज का आवश्यक एवं प्राथमिक अवयव है। 

शिथिलीकरण 
योग निद्रा एक अति महत्वपूर्ण अभ्यास है। विशेषतः मासिक धर्म शुरू होने के पहले बढ़ती हुई तनाव की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए। इससे मानसिक तनाव, निराशा, चिड़चिड़ापन एवं भारीपन दूर होते हैं। यदि संपूर्ण अभ्यास के लिए पर्याप्त समय न हो तो श्वासन में लेटकर पेट में श्वास गिनने का अभ्यास किया जा सकता है।

ध्यान 
सिद्धयोनि आसन में बैठकर ध्यान का कोई भी अभ्यास यथा-अजपाजप, अन्तमौन, चिदाकाश धारणा, मंत्र जाप या नाद योग।  

सम्पूर्ण संतुलित शाकाहारी भोजन 
रसंपूर्ण संतुलित शाकाहारी भोजन सभी महिलाओं के लिए उपयुक्त होता है। मासिक धर्म से पूर्व के दिनों में अत्यंत हल्का भोजन, जिसमें मसाले, तेल, एवं दूध न्यूनतम मात्रा में हों लेने की विशेष अनुशंसा की जाती है। कई स्त्रियों का अनुभव है कि उनकी पीड़ा और अतिस्राव की मात्रा में पचास प्रतिशत से भी अधिक लाभ मात्र भोजन में परिवर्तन कर देने से महसूस हुआ है। भोजन हल्का, शुद्ध, सात्विक, शाकाहारी हो, जिसमें फल, अनाज एवं हल्की उबाली हुई सब्जियाँ प्रचुरता में होनी चाहिए। मासिकधर्म के पूर्व दिनों में यह अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। चाय, कॉफी, उत्तेजक मादक पदार्थ, अप्राकृतिक रूप से प्रोसेस्ड फूड बिलकुल बंद कर दें।यह आवश्यक है कि कभी भी अत्यधिक ज़ोर पड़ने वाला कार्य न किया जाए, परंतु सावधानी को छोड़कर अन्य कोई कारण नहीं है कि महिलाएँ मासिक धर्म के दौरान अभ्यास बंद कर दें(स्वामी सत्यानंद सरस्वती,सेहत,नई दुनिया,अप्रैल 2012 तृतीयांक)।

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