प्लेस्टेशन और कम्प्यूटर के वर्चुअल वर्ल्ड में चल रहे खेल उत्तेजना से भरे हैं, बच्चे घंटों उनके सामने से हटना नहीं चाहते। गैजेट्स की दुनिया इतनी तेज़ी से बदल रही है कि उनके साथ कदम ताल करना आर्थिक रूप से सक्षम पालकों के लिए भी कठिन होता जा रहा है। कम्प्यूटर केंद्रित इस आभासीय दुनिया ने बच्चों को बाहरी दुनिया से काटकर रख दिया है। हर दिन बदलते जा रहे खिलौनों ने बच्चों को घर के अंदर समेट कर रख दिया है। आज के बच्चे एक ऐसी काल्पनिक दुनिया में बस चुके हैं जहाँ से वास्तविक दुनिया धुंधली नज़र आती है। बच्चे अब घर के बाहर खेलने नहीं जाते। माता-पिता की यही ख्वाहिश है कि उनका बच्चा हर क्षेत्र में जीनियस हो सिवाए खेलकूद के। आज के बच्चे माता पिता की इसी नाज़ायज़ ख्वाहिश की भेंट चढ़ रहे हैं। वे बचपन की कच्ची उम्र में शरीर से मोटे और स्वभाव से आक्रामक होते जा रहे हैं।
आज समाजशास्त्रियों की चिंताएं लगतार बढ़ रही हैं क्योंकि आधुनिक बच्चे तेजी से समाज से दूर होते जा रहे हैं। यदि उन्हें फुटबॉल या क्रिकेट और प्लेस्टेशन से कोई गेम खेलने का विकल्प दिया जाए तो वे प्लेस्टेशन पर बैठना अधिक पसंद करेंगे। आधुनिक टैक्नोलॉजी का सामिप्य बच्चों को मोटा बना रहा है। चाहे टेलिविजन की चैनल सर्फिंग हो या नेटसर्फिंग दोनों बच्चों को घंटों तक शारीरिक रूप से बांधे रखते हैं। प्लेस्टेशन पर अधिकांश गेम्स युद्ध जैसे आक्रामक माहौल की सृष्टि करते हैं। जीतने के तनाव से ग्रस्त बच्चा बहुत देर तक उसी मानसिक अवस्था में रहता है। जंक फूड बहुत सम्मानित और "कूल" समझा जाने लगा है। बच्चे आउटडोर गेम्स से दूर होने के साथ ही चिढ़-चिड़े होते जा रहे हैं। शारीरिक मशक्कत कम होने के साथ ही उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति भी क्षीण होती जा रही है। किसी भी
बच्चे के स्वस्थ जीवन की मजबूत नींव रखने की जिम्मेदारी पालकों की होती है। वे आजीविका के तनाव को घर से बाहर रखें और बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं। बच्चों को वर्चुअल वर्ल्ड से दूर खींच कर ले जाने से बच्चों के साथ समाज का भी भला होगा। शारीरिक रूप से स्वस्थ समाज ही विकास की राह पर अग्रसर हो सकता है(संपादकीय,सेहत,नई दुनिया,अप्रैल द्वितीयांक 2012)।
यह बड़ी परेशानी है.
जवाब देंहटाएंइस आभासीय दुनिया ने बच्चों को बाहरी
जवाब देंहटाएंदुनिया से काटकर रख दिया है।
बहुत खतरनाक सा ट्रेंड चल पड़ा है.....
जवाब देंहटाएंबच्चे आउटडोर गेम्स से दूर होने के साथ ही चिढ़-चिड़े होते जा रहे हैं।...............
जवाब देंहटाएंसमस्या घर-घर में देखी जा सकती है...........
बच्चों को वर्चुअल वर्ल्ड से दूर खींच कर ले जाने से बच्चों के साथ समाज का भी भला होगा।
जवाब देंहटाएंसत्य से रूबरू कराती महत्त्वपूर्ण प्रस्तुति...
सादर।
बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 16-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बच्चे वास्तविकतासे दूर कल्पना की दुनिया में रमते जा रहे है !
जवाब देंहटाएंमाता पिता की व्यस्तता बहुत सारे कारण है, बच्चे खेल कसरत से प्रकृति से दूर होते जा रहे है !
यह एक गंभीर समस्या है ! बेहतरीन पोस्ट के लिये आभार !
प्लेस्टेशन का क्या मतलब ?
जवाब देंहटाएंNIce post
जवाब देंहटाएंhttp://hbfint.blogspot.com/2012/04/39-nirmal-baba-ki-tisri-aankh.html
Nice post.
जवाब देंहटाएंhttp://hbfint.blogspot.com/2012/04/39-nirmal-baba-ki-tisri-aankh.html
सही कह रहे हैं आप आपकी बातों से सहमत हूँ।
जवाब देंहटाएंChitan ka vishya to hai lekin aajkar ke bachhe sunte bhi kahan hai.... computer par koi kaam karna ho to mushkil kar dete hai...khud jab baith gaye to uthne ka naam nahi, jab tak achhi daant ya maar na pad jaay...
जवाब देंहटाएंprerak prastuti ke liye aabhar!