छोटे बच्चों को अक्सर किसी न किसी वजह से स्टीम देने की जरूरत पड़ती है। कई बार इस दौरान बच्चे जल भी जाते हैं, इसलिए खास सावधानियों की दरकार होती है। सुनीता तिवारी की सफदरजंग अस्पताल की असिस्टेंट प्रोफेसर (बर्न) डॉ. दुर्गा कार्की से खास बातचीतः
बहुत छोटे बच्चों को स्टीम देने का सही तरीका क्या है?
आम तौर पर बड़े पतीले में पानी उबालकर उसके ऊपर तौलिया लपेटकर स्टीम ली जाती है। बड़ों की त्वचा परिपक्व होती है। मगर तब भी जल्द से जल्द ही पतीले के पास से मुंह हटा लिया जाता है, त्वचा जलने सी लगती है। स्टीम से दुर्घटनाओं के शिकार कई छोटे बच्चे आते हैं, जिनकी उम्र अक्सर एक साल से कम होती है। बच्चों के अभिभावक या तो तौलिए से ढककर गरम पानी के बर्तन के ऊपर भाप देते हैं और अक्सर बर्तन बिस्तर के ऊपर रखा होता है। बच्चे को नुकसान या तो बहुत गरम भाप से त्वचा जलने से या हाथ मारकर पानी अपने ऊपर गिरा लेने से होता है। कभी-कभी बच्चे का चेहरा ही गरम पानी में चला जाता है, तब बहुत नुकसान हो जाता है। मासूमों के लिए स्टीम का मतलब गरम पानी का बच्चे से काफी दूर होना है। कुर्सी पर बैठकर बच्चे को गोद में लेकर और गरम पानी का पतीला नीचे जमीन पर रखकर भाप देने से भाप भी बच्चे तक पहुंच जाती है और दुर्घटना से भी बचा जा सकता है। वैसे आजकल बाजार में भाप के लिए स्टीमर भी मिलता है।
यदि किसी ने भाप करीब से दे दी है। चेहरा जलने लगे, तो सबसे पहले क्या करना चाहिए?
त्वचा पर बर्फ का ठंडा पानी नहीं, बल्कि साधारण पानी (रूम टेंपरेचर) लगातार डालते रहना चाहिए। तब तक, जब तक कि अच्छी तरह जलन कम न हो जाए। ध्यान रहे, पानी बच्चे के कान, नाक आदि में न जाए। चेहरे को किसी तौलिए या कपड़े से पोंछें नहीं। जितनी जल्दी हो, बर्न एंड प्लास्टिक सजर्री स्पेशलिस्ट से परामर्श लें।
चेहरे के बर्न का क्या इलाज है?
स्टीम के कारण या गरम पानी चेहरे पर गिरने के कारण दो तरह के बर्न प्राय: देखने को मिलते हैं। पहला सुपर फेशियल डर्मल बर्न और दूसरा होता है डीप डर्मल बर्न। सुपर फेशियल बर्न के घाव तीन सप्ताह के अंदर भर जाते हैं। विभिन्न प्रकार की कोलेजन शीट उपलब्ध हैं, जिनके प्रयोग से घाव जल्दी भर जाते हैं और दर्द से भी राहत मिलती है। जितने जल्दी घाव भरते हैं, निशान उतने ही कम होते हैं। डीप डर्मल बर्न के घाव भरने में अक्सर तीन सप्ताह से ज्यादा समय लगता है। इसलिए उनमें सजर्री की जरूरत होती है, जिसे स्किन ग्राफ्ट कहते हैं।
बहुत छोटे बच्चे नासमझ होते हैं, उन्हें अटपटा लगता है। हाथ बार-बार चेहरे पर लाते हैं या अंगूठा चूसने की कोशिश करते हैं, ऐसे में क्या करना चाहिए?
बच्चे को हाथ चेहरे पर नहीं लाने देने चाहिए। त्वचा जलने से घाव हो जाते हैं और हाथ से रगड़कर अवश्य ही नुकसान पहुंचता है। त्वचा पर इंफेक्शन होने का खतरा रहता है। ऐसे में हम बच्चों की दोनों बांहों में आर्म गार्ड (गत्ते के टुकड़ों पर लिपटी पट्टी) बांध देते हैं। बच्चे बांहें नहीं मोड़ पाते, अक्सर बच्चे अंगूठा चूसना चाहते हैं, उन्हें उलझन जरूर महसूस होती है, पर त्वचा संक्रमण से बच जाती है। बच्चे को धूप, धूल आदि से भी बचाकर रखना चाहिए।
चेहरे की त्वचा के साथ क्या आंखों, नाक आदि पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है?
हां, इतना छोटा बच्चा अपना दर्द बता नहीं सकता, इसलिए हम उसे आंखों के व कान, नाक, गला के विशेषज्ञों से चेकअप की सलाह देते हैं। क्योंकि तेज स्टीम से आंखों के कॉर्निया को, गले के अंदर, नाक तक जलन हो सकती है। फिर वे कुछ ड्रॉप्स देते हैं, जिससे बच्चे को राहत मिलती है।
इलाज के साथ-साथ क्या नारियल का तेल या कुछ घरेलू उपाय भी करने चाहिए?
नहीं, डॉक्टर की देख-रेख में बताया गया ट्रीटमेंट पूरा लेना चाहिए। समय-समय पर त्वचा को साफ रुई के फाहे को उबालकर ठंडे किए पानी से साफ करके दवाई लगाते रहना चाहिए। कुछ लोग सुने-सुनाए नुस्खे से नारियल के तेल में रतनज्योत व कपूर आदि मिलाकर लगाने लगते हैं, इससे इलाज में बाधा आती है तथा त्वचा को नुकसान पहुंचता है। जख्म पूरी तरह ठीक होने के बाद विभिन्न प्रकार के मरहम जो निशान कम करते हैं, उनका प्रयोग किया जा सकता है।
बच्चे के चेहरे का मामला है। चेहरे पर गहरे निशान न पड़ें, इसके लिए क्या करते हैं?
घावों के उपचार का वर्तमान लक्ष्य यह है कि घाव जल्दी भरें, त्वचा पर कम से कम निशान पड़ें। निशानों को धोना, मरहम लगाना और उनकी मालिश करना उपचार का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये सब प्रक्रियाएं दिन में 3 से 4 बार करनी चाहिए। यदि आवश्यकता पड़े तो सिलीकॉन जेल शीट और प्रेशर गार्मेट्स का उपयोग भी किया जा सकता है। निशान हटाने के लिए तरह-तरह के मरहम बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन बिना बर्न एंड प्लास्टिक सजर्री स्पेशलिस्ट की सलाह लिए इनका उपयोग नहीं करना चाहिए। इन उपचारों से चेहरे के निशानों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। कुछ निशान तो पूरी तरह से साफ हो जाते हैं। लोग एमरजेंसी में तो अस्पताल आते हैं, बाद में लापरवाही बरतने लगते हैं।
यदि प्लास्टिक सजर्री की जरूरत है तो किस उम्र में की जाती है?
जिन घावों को भरने में बहुत समय लगता है और किन्हीं कारणों से सजर्री (स्किन ग्राफ्ट) नहीं हो पाती। घाव मोटे हो जाते हैं तथा कान्ट्रेक्चर हो जाता है। आंखों की पलक पूरी तरह से बंद नहीं हो पाती, चेहरे पर सिकुड़न पैदा हो जाती है। कभी-कभी स्किन ग्राफ्ट के बाद भी पर्याप्त देखभाल न करने से ये समस्याएं आती हैं। इन बच्चों की दोबारा प्लास्टिक सजर्री करनी पड़ती है। बच्चे के कुछ बड़े होने पर ही सजर्री की जाती है।
केस स्टडी
प्रिशा अभी सिर्फ छह महीने की है। सर्द हवाओं की चपेट में आते ही उसकी छाती में कफ जमा हो गया। उसकी मम्मी ने डॉक्टर से फोन पर उपचार पूछा। डॉक्टर ने स्टीम देने की सलाह दी। प्रिशा अपने माता-पिता की पहली संतान है। वे नहीं जानते थे कि बच्चे को स्टीम कैसे दी जाती है। डॉक्टर भी बताना भूल गईं कि स्टीम देने का सही तरीका क्या है। प्रिशा के माता-पिता एक पतीली में पानी उबालकर बड़ों की तरह स्टीम को चारों ओर से तौलिए से ढककर प्रिशा का चेहरा पतीली के पास लाए। वह रोई तो उसकी मम्मी ने सोचा कि वह तो नहाते वक्त भी रोती है। सो स्टीम दे दी। प्रिशा के चेहरे पर भाप के कारण नमी आ गई और उसके आंसू पोंछने के लिए जैसे ही तौलिए से उसका चेहरा पोंछा गया, मासूम प्रिशा की कोमल त्वचा ही निकल आई। चेहरा एकदम लाल सूर्ख हो गया। देखते ही देखते चेहरा सूजने लगा। उसके मम्मी-पापा घबराकर तुरंत बर्न एंड प्लास्टिक सजर्री डिपार्टमेंट में ले गए। दवाई आदि दी गई, मगर सूजन के कारण बच्ची की आंखें चिपककर बंद हो गईं। अगली सुबह उसे सफदरजंग अस्पताल के बर्न्स डिपार्टमेंट में ले जाया गया। लगभग सत्रह दिन बाद उसके चेहरे के जख्म ठीक हुए, मगर बच्ची के चेहरे पर निशान उभर आए। ऐसा केवल एक बच्ची के साथ नहीं, कई मासूमों के साथ होता है। आए दिन स्टीम से झुलसे बहुत नाजुक, कुछ माह के बच्चों के केस देखकर हर कोई बहुत दुखी होता है। वह मासूम, जिसने अभी शरारत करनी नहीं सीखी, जो बोल नहीं सकता, मगर केवल गलत तरीके से दी गई स्टीम से मिली जलन उसे सहनी पड़ती है(हिंदुस्तान,दिल्ली,14.3.12)।
बिना जानकारी के कोई काम नहीं किया जाना चाहिए .. सही तरीका बतलाने का आभार !!
जवाब देंहटाएंइस बेहद महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आपका आभार .विस्तृत बहु -उपयोगी जानकारी समेटे है यह पोस्ट मय केस स्टडी के .
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्दक लेख के लिए धन्यबाद। आग वा गरम चिज से जलने पर होमियो औषधि cantharis 30 का सेबन करने से जलन मे बहुत जल्द फायदा करता है और त्वचा मे दाग धब्बा रहने का सम्भावना कम रहता है। घाव मे लगाने के लिए 'केन्थरिस मल्हम' भी होता है। कृपया डाक्टर के सल्लाह व रेखदेख मे सेवन करे।
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