शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

कैंसर हारेगा तो सिर्फ जागरूकता के हथियार से

कैंसर को पछाड़ने की कवायद इसे शुरुआत में ही पकड़ने से होती है। किसी भी बीमारी का प्रकोप पूरी तरह शरीर को तबाह कर दे और इलाज बाद में शुरु हो तब आशाजनक परिणाम नहीं मिलते। किसी भी बीमारी की पहचान जितनी जल्दी होगी, इलाज भी उतना ही कारगर होगा। कैंसर को जल्दी पकड़ने के दो आयाम है। पहला है जागरूकता, दूसरा है समय पर जाँच। चिकित्सा विज्ञान में डायग्नोसिस यानी बीमारी की पहचान को बहुत महत्व दिया गया है। मरीज़ कैंसर के शुरुआती लक्षणों के साथ जनरल प्रैक्टिशनर के पास पहुंचते हैं, वहीं इन्हें पहचानकर परीक्षणों के लिए रैफर किया जा सकता है। कैंसर की चेतावनी के लक्षणों की जानकारी नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ के साथ आमजन को भी होना चाहिए। शरीर में उभर रही असामान्य गठानों अथवा न भरने वाले घावों पर नज़र रखने की जरूरत है। स्तनकैंसर, गर्भग्रीवा का कैंसर, मुंह अथवा गले के कैंसर के लक्षणों को पहले से पढ़ा जा सकता है। चालीस पार पुरुष-महिलाओं को सालाना कैंसर की जाँचों से गुजरना चाहिए। पुरुषों में प्रोस्टेट का कैंसर तथा महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले आमतौर पर उम्र के चौथे दशक के बाद ही सामने आते हैं। सालाना परीक्षणों के दौरान ही कई बार अपने आपको स्वस्थ समझने वालों में कैंसर पकड़ में आ जाता है। इसलिए जागरूकत रहते हुए सालाना परीक्षणों को पूरी तवज्जो देना उचित होता है। 

कैंसर को पछाड़ने वाले अधिकांश मरीजों की बीमारी पहली स्टेज में ही पकड़ी गई थी। रजोनिवृत्ति की ओर पहुंच रही महिलाओं को हर साल मैमोग्राफी और पैप स्मियर करना ठीक होता है। जहां तक पूरी आबादी के स्क्रीनिंग का सवाल है, इसके लिए काफी धन चाहिए। स्तनकैंसर और गर्भग्रीवा कैंसर इस जानलेवा बीमारी के दो ऐसे प्रकार है जिन्हें बहुत ही कम लागत पर पकड़ा जा सकता है। उदाहरण के लिए मैमोग्राफी को आंशिक अनुदान प्रदान किया जा सकता है। इसी तरह किसी महिला को आगे चलकर गर्भग्रीवा का कैंसर होगा या नहीं इसका पता एसिटिक एसिड टेस्ट से लग सकता है। मैमोग्राफी का विकल्प है स्वयं स्तन परीक्षण। स्वयं स्तन परीक्षण की जानकारी एएनएम अथवा नर्सों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं तक भी पहुंचाई जा सकती है। (संपादकीय,सेहत,नई दुनिया,फरवरी प्रथमांक 2013)।

विश्व कैंसर दिवस एक विश्वव्यापी पहल है, जिसके द्वारा कैंसर, इसकी रोकथाम, पहचान एवं इलाज के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है। २०१२ की थीम है- 'एकजुट प्रयास से जीत संभव है।' 

भारत की आबादी १.२ अरब से अधिक है और यहाँ लाखों लोग विभिन्ना बीमारियों से पीड़ित हैं, जिनमें कैंसर के कारण हर साल लगभग ५.५ लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। भारत ही नहीं दुनियाभर में कैंसर मृत्यु के बड़े कारणों में से है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि यदि इस ओर आवश्यक कदम नहीं उठाए गए तो २००५ से २०१५ के बीच कैंसर से मरने वालों की संख्या साढ़े आठ करोड़ तक पहुँच सकती है। इसीलिए जागरूकता फैलाने के लिए हर साल ४ फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। कैंसर के खिलाफ एकजुट प्रयास किए जाएँ तो जीत संभव है। यदि प्रत्येक व्यक्ति, संगठन, सरकार अपनी-अपनी भूमिका निभाए तो २०२५ तक कैंसर और दूसरी असंक्रामक बीमारियों से होने वाली मौतों में २५ प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है। एक अनुमान के अनुसार भारत में २५ लाख से ज़्यादा लोग कैंसर से पीड़ित हैं और हर साल ८ लाख नए मामले सामने आते हैं। जाँच और इलाज के लिए आने वाले ७० प्रतिशत मरीज़ों में कैंसर काफी विकसित हो चुका होता है, जिससे मरीज़ के बचने की संभावना बहुत कम हो जाती है। इसी कारण कैंसर पीड़ितों की मृत्यु दर बढ़ जाती है।  

कौन है जोख़िम पर? 
पुरुषों और स्त्रियों को होने वाले सबसे आम प्रकार के कैंसर पर हुए अध्ययन में देखा गया है कि इसके अधिकांश मामले पर्यावरण एवं जीवनचर्या से जुड़े होते हैं। तम्बाकू और शराब का सेवन,संक्रमण,खानपान की आदतें सबसे बड़े कारण हैं। किसी भी प्रकार के तम्बाकू का सेवन पुरुषों में होने वाले कैंसर के लिए 50 प्रतिशत तक ज़िम्मेदार होता है। कैंसर के 20-30 प्रतिशत मामलों में आहार-व्यवहार एवं यौन आचार की भूमिका होती है। अध्ययन बताते हैं कि जीवनशैली में उचित बदलाव लाने से कैंसर के मामलों में कमी आ सकती है। 

भारत में कैंसर निवारण 
भारत उन देशों में शामिल है जहां कैंसर के प्रभाव का आकलन और इस रोग से मुकाबले के लिए देशव्यापी अभियान आरंभ किया गया है। 1984 में राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम तय किए गए,जिसके चार लक्ष्य थेः 
1. तम्बाकूजनित कैंसर की प्राथमिक रोकथाम 
2. कैंसर का जल्द से जल्द पता लगाना 
3. इलाज़ की सुविधाओं में बढ़ोतरी 
4. पूरे देश में समान दर्द-निवारक और प्रशामक सेवा का जाल बिछाना। 

कैंसर के लक्षणः 
परिवर्तनः 
शौच-पेशाब की नियमित आदतों में बदलाव। किसी गांठ,मस्से या मुंह के छाले के आकार,रंग,रूप या मोटाई में स्पष्ट परिवर्तन। 

असमानता 
असामान्य रक्तस्राव या अन्य द्रवों का स्राव। 

कड़ापन 
स्तन,अंडकोश या किसी अन्य अंग में कड़ापन या गांठ महसूस होना। 

पाचन संबंधी गड़बड़ी 
अपच या निकलने में कठिनाई होना,समस्या बनी रहना। -जल्दी न छूटने वाली खांसी,ठीक न होने वाला घाव या छाला। घबराहट बनी रहना। 

रोकथाम
तम्बाकू से परहेज़
तम्बाकू पुरुषों में कैंसर का एक बड़ा कारण है। अप्रत्यक्ष धूम्रपान समेत किसी भी रूप में तम्बाकू का प्रयोग न करें।

अलग-अलग प्रकार के स्वास्थ्यवर्द्धक आहार लें
शाकाहारी आहार लेना ज़रूरी है, फलों एवं सब्जियों का भरपूर सेवन करें, वसा और शराब कम से कम लें।

शारीरिक श्रम
नियमित रूप से व्यायाम करें, किसी भी गतिविधि के ज़रिए सक्रिय रहें और अपना वज़न नियंत्रित रखें। 

अधिक धूप से बचें
धूप से त्वचा के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचना ज़रूरी है, दिन में १० से ४ बजे के बीच। इस अवधि में बाहर निकलने के पहले सनस्क्रीन लोशन लगाएँ। इसका एसपीएफ कम से कम १५ होना चाहिए। धूप तेज़ होने पर अधिक एसपीएफ वाला लोशन चुनें।

टीकाकरण
हेपेटाइटिस-बी से बचाव के लिए नियमित रूप से टीके लगावाने चाहिए, क्योंकि इससे लिवर का कैंसर हो सकता है।

निरापद आचरण
ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) जनित यौन-संक्रमित रोग, हेपेटाइटिस-बी और एचआईवी से विभिन्ना प्रकार के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। असुरक्षित यौन संबंधों और इंजेक्शन के लिए पहले से इस्तेमाल की हुई सुई का दोबारा इस्तेमाल होने से इस तरह के संक्रमण फैलने की आशंका होती है। यदि नशे के आदी हों और तमाम कोशिशों के बाद भी छुटकारा नहीं मिल रहा हो तो जल्द से जल्द चिकित्सकीय मार्गदर्शन लें।

जाँच करवाएँ
नियमित जाँच और स्वयं-परीक्षण किए जाएँ तो कुछ प्रकार के कैंसर का निदान करना आसान हो जाता है(डॉ. टी.पी. साहू,सेहद,नई दुनिया,फरवरी प्रथमांक 2012)।

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