रविवार, 19 फ़रवरी 2012

कई रोगों में लाभकारी है सूर्यभेदन प्राणायाम

इसमें पूरक दाईं नासिका से करते हैं। दाईं नासिका सूर्य नाड़ी से जुड़ी मानी गई है। इसे ही सूर्य स्वर कहते हैं। इस कारण इसका नाम सूर्य भेदन प्राणायाम है। 

विधि : 
किसी भी सुखासन में बैठकर मेरुदंड सीधा रखते हुए दाएँ से प्रणव मुद्रा बनाते हैं और अँगुली को रखते हैं दाईं नासिका पर, फिर बाईं नासिका बंद दाईं नासिका से पेट और सीना फुलाते हुई पूरक क्रिया करते हैं। यथाशक्ति कुम्भक करने के बाद बंद हटाकर बाईं नासिका से रेचक करते हैं। 

इसमें प्रारम्भ में पूरक, रेचक और कुम्भक एक, चार, और दो रशों में करते हैं। बाद में धीरे-धीरे बढ़ाकर पूरक-15, कुम्भक-60 और रेचक-30 रशों में करें। रशों अर्थात जीतनी भी देर भी आप पूरक करते हैं उससे दो रेचक और चार गुना कुम्भक करें। 

सावधा‍नी :
पूरक करते समय पेट और सीने को ज्यादा न फुलाएँ। श्वास पर नियंत्रण रखकर ही पूरक क्रिया करें। पूरक-रेचक करते समय श्वास-प्रश्वास की आवाज नहीं आनी चाहिए। प्राणायाम बंद कमरे में न करें और न ही पंखे में। प्राणायाम के लिए साफ-सुथरे वातावरण की जगह हो। 

लाभ : 
सूर्यभेदन प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर के अंदर गर्मी उत्पन्न होती है। यदि सर्दियों के दिनों में इस प्राणायाम का अभ्यास किया जाए जो कफ संबंधी रोगों के होने की संभावना नहीं रहती। नजला, खाँसी, दमा, साइनस, लंग्स, हृदय और पाइल्स में यह लाभदायक है। यह प्राणायाम मन को शांत कर मस्तिष्क से तंद्रा हटाकर सकारात्मक विचारों का संचार करता है(अनिरुद्ध जोशी 'शतायु',वेबदुनिया डॉट कॉम,15.2.12)। 


सूर्यभेदन प्राणायाम संबंधी एक आलेख यहां और दूसरा ज्यादा बड़ा आलेख यहां है।

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