गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

नेचुरोपैथी में करिअर

नेचुरोपैथी उपचार का न केवल सरल और व्यवहारिक तरीका प्रदान करता है , बल्कि यह तरीका स्वास्थ्य की नींव पर ध्यान देने का किफायती ढांचा भी प्रदान करता है। स्वास्थ्य और खुशहाली वापस लाने के कुदरती तरीकों के कारण यह काफी पॉप्युलर हो रहा है। 

नेचुरोपैथी शरीर को ठीक - ठाक रखने के विज्ञान की प्रणाली है , जो शरीर में मौजूद शक्ति को प्रकृति के पांच महान तत्वों की सहायता से फिर से स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए उत्तेजित करती है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो नेचुरोपथी स्वयं , समाज और पर्यावरण के साथ सामंजस्य करके जीने का सरल तरीका अपनाना है। 

नेचुरोपैथी रोग प्रबंधन का न केवल सरल और व्यवहारिक तरीका प्रदान करता है , बल्कि एक मजबूत सैद्धांतिक आधार भी प्रदान करता है। यह तरीका स्वास्थ्य की नींव पर ध्यान देने का किफायती ढांचा भी प्रदान करता है। नेचुरोपथी पश्चिमी दुनिया के बाद दुनिया के अन्य हिस्सों में भी जीवन में खुशहाली वापस लाने के कुदरती तरीकों के कारण लोकप्रिय हो रहा है। 

कुछ लोग इस पद्धति की शुरुआत करने वाले के रूप में फादर ऑफ मेडिसिन हिपोक्रेट्स को मानते हैं। कहा जाता है कि हिपोक्रेट्स ने नेचुरोपथी की वकालत करना तब शुरू कर दिया था , जब यह शब्द भी वजूद में नहीं था। आधुनिक नेचुरोपैथी की शुरुआत यूरोप के नेचर केयर आंदोलन से जुड़ी मानी जाती है। 1880 में स्कॉटलैंड में थॉमस एलिंसन ने हायजेनिक मेडिसिन की वकालत की थी। उनके तरीके में कुदरती खानपान और व्यायाम जैसी चीजें शामिल थीं और वह तंबाकू के इस्तेमाल और ज्यादा काम करने से मना करते थे।

नेचुरोपैथी शब्द ग्रीक और लैटिन भाषा से लिया गया है। नेचुरोपथी शब्द जॉन स्टील (1895) की देन है। इसे बाद में बेनडिक्ट लस्ट ( फादर ऑफ अमेरिकन नेचुरोपथी ) ने लोकप्रिय बनाया। आज इस शब्द और पद्धति की इतनी लोकप्रियता है कि कुछ लोग तो इसे समय की मांग तक कहने लगे हैं। लस्ट का नेचुरोपैथी के क्षेत्र में काफी योगदान रहा। उनका तरीका भी थॉमस एलिंसन की तरह ही था। उन्होंने इसे महज एक तरीके की जगह इसे बड़ा विषय करार दिया और नेचुरोपथी में हर्बल मेडिसिन और हाइड्रोथेरेपी जैसी चीजों को भी शामिल किया। 

क्या है नेचुरोपैथी 
यह कुदरती तरीके से स्वस्थ जिंदगी जीने की कला है। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि इस पद्धति के जरिये व्यक्ति का उपचार बिना दवाइयों के किया जाता है। इसमें स्वास्थ्य और रोग के अपने अलग सिद्धांत हैं और उपचार की अवधारणाएं भी अलग प्रकार की हैं। आधुनिक जमाने में भले इस पद्धति की यूरोप में शुरुआत हुई हो , लेकिन अपने वेदों और प्राचीन शास्त्रों में अनेकों स्थान पर इसका उल्लेख मिलता है। अपने देश में नेचुरोपैथी की एक तरह से फिर से शुरुआत जर्मनी के लुई कुहने की पुस्तक न्यू साइंस ऑफ हीलिंग के अनुवाद के बाद माना जाता है। डी वेंकट चेलापति ने 1894 में इस पुस्तक का अनुवाद तेलुगु में किया था। 20 वीं सदी में इस पुस्तक का अनुवाद हिंदी और उर्दू वगैरह में भी हुआ। इस पद्धति से गांधी जी भी प्रभावित थे। उन पर एडोल्फ जस्ट की पुस्तक रिटर्न टु नेचर का काफी प्रभाव था। 

नेचुरोपथी का स्वरूप 
मनुष्य की जीवन शैली और उसके स्वास्थ्य का अहम जुड़ाव है। चिकित्सा के इस तरीके में प्रकृति के साथ जीवनशैली का सामंजस्य स्थापित करना मुख्य रूप से सिखाया जाता है। इस पद्धति में खानपान की शैली और हावभाव के आधार पर इलाज किया जाता है। रोगी को जड़ी - बूटी आधारित दवाइयां दी जाती हैं। कहने का अर्थ यह है कि दवाइयों में किसी भी प्रकार के रसायन के इस्तेमाल से बचा जाता है। ज्यादातर दवाइयां भी नेचुरोपथी प्रैक्टिशनर खुद तैयार करते हैं। 

कौन - कौन से कोर्स 
इस समय देश में एक दर्जन से ज्यादा कॉलेजों में नेचुरोपैथी की पढ़ाई देश में स्नातक स्तर पर मुहैया कराई जा रही है। इसके तहत बीएनवाईएस ( बैचलर ऑफ नेचुरोपथी एंड योगा साइंस ) की डिग्री दी जाती है। कोर्स की अवधि साढ़े पांच साल की रखी गई है। 

अवसर 
संबंधित कोर्स करने के बाद स्टूडेंट्स के पास नौकरी या अपना प्रैक्टिस शुरू करने जैसे मौके होते हैं। सरकारी और निजी अस्पतालों में भी इस पद्धति को पॉप्युलर किया जा रहा है। खासकर सरकारी अस्पतालों में भारत सरकार का आयुष विभाग इसे लोकप्रिय बनाने में लगा है। ऐसे अस्पतालों में नेचुरोपैथी के अलग से डॉक्टर भी रखे जा रहे हैं। अगर आप निजी व्यवसाय करना चाहते हैं तो क्लीनिक भी खोल सकते हैं। अच्छे जानकारों के पास नेचुरोपैथी शिक्षण केन्द्रों में शिक्षक के रूप में भी काम करने के अवसर उपलब्ध हैं। आप चाहें तो दूसरे देशों में जाकर काम करने के अवसर भी पा सकते हैं। 

क्वॉलिफिकेशन 
अगर आप इस फील्ड में जाकर अपना करियर बनाना चाहते हैं तो आपके पास न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 12 वीं है। 12 वीं फिजिक्स , केमिस्ट्री और बायॉलजी विषयों के साथ होनी चाहिए(निर्भय कुमार,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,1.2.12)।

4 टिप्‍पणियां:

  1. ye course kha se karwaya jata hai iski jankari bhi de....
    http://easybookshop.blogspot.com

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    1. aap is course ko AKHIL BHARTIYA PRAKARTIK CHIKTSA
      PARISHAD (A GANDHIAN INSTITUTE) 15 Raj ghat , New Delhi se kar sakte hain .

      See :

      http://www.google.co.in/url?url=http://www.hotfrog.in/Products/Naturopathy/New-Delhi/NEW-DELHI&rct=j&sa=U&ei=O7w8T9HXHsbzmAXAzvnGBw&ved=0CBQQFjAA&q=naturopathy+delhi+rajghat&usg=AFQjCNE9wlV4JpR3EMVf0Ox3tA8alw6KuQ

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  2. नेचुरोपैथी सीखने के लिए हमने औपचारिक रूप से भी डीएनवाईएस किया है। आजकल धनी लोग इस पैथी की तरफ़ रूख़ भी कर रहे हैं। रूपया काफ़ी है इसमें। फ़ाइव स्टारनुमा अस्पताल तक खुल चुके हैं नेचुरोपैथी के और इस तरह एक सादा चीज़ फिर व्यवसायिकता की भेंट चढ़ गई।
    यह ऐसा है जैसे कि भारत में जिस संत ने भी एक ईश्वर की उपासना पर बल दिया, उसे ही जानबूझ कर उपासनीय बना दिया गया।
    शिरडी के साईं बाबा इस की ताज़ा मिसाल हैं। उनसे पहले कबीर थे। यह उन लोगों ने किया जिन लोगों ने धर्म को व्यवसाय बना रखा है और एकेश्वरवाद से उनके धंधा चौपट होता है तो वे ऐसा करते हैं कि उनका धंधा चौपट करने वाले को भी वह देवता घोषित कर देते हैं।
    जिन लोगों ने दवा को सेवा के बजाय बिज़नैस बना लिया है वे कभी नहीं चाह सकते कि उनका धंधा चौपट हो जाए और लोग जान लें कि वे मौसम, खान पान और व्यायाम करके निरोग रह भी सकते हैं और निरोग हो भी सकते हैं।
    ईश्वर ने सेहतमंद रहने का वरदान दिया था लेकिन हमने क़ुदरत के नियमों की अवहेलना की और हम बीमारियों में जकड़ते गए। हमें तौबा की ज़रूरत है। ‘तौबा‘ का अर्थ है ‘पलटना‘ अर्थात हमें पलटकर वहीं आना है जहां हमारे पूर्वज थे जो कि क़ुदरत के नियमों का पालन करते थे। उनकी सेहत अच्छी थी और उनकी उम्र भी हमसे ज़्यादा थी। उनमें इंसानियत और शराफ़त हमसे ज़्यादा थी। हमारे पास बस साधन उनसे ज़्यादा हैं और इन साधनों को पाने के चक्कर में हमने अपनी सेहत भी खो दी है और अपनी ज़मीन की आबो हवा में भी ज़हर घोल दिया है। हमारे कर्म हमारे सामने आ रहे हैं।
    अब तौबा और प्रायश्चित करके ही हम बच सकते हैं।
    यह बात भी हमारे पूर्वज ही हमें सिखा गए हैं।
    हमारे पूर्वज हमें योग भी सिखाकर गए थे लेकिन आज योग को भी व्यापार बना दिया गया है। जो व्यापार कर रहा है लोग उसे बाबा समझ रहे हैं।
    हमारे पूर्वज हमें ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग‘ मुफ़्त में सिखाकर गए थे लेकिन अब यह कला सिखाने की बाक़ायदा फ़ीस वसूल की जाती है।
    कोई भगवा पहनकर धंधा कर रहा है और सफ़ेद कपड़े पहनकर। इनकी आलीशान अट्टालिकाएं ही आपको बता देंगी कि ये ऋषि मुनियों के मार्ग पर हैं या उनसे हटकर चल रहे हैं ?
    http://commentsgarden.blogspot.in/

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