वह ज़माना बीत चुका है जब गर्दन दर्द, पीठ दर्द, कमर दर्द या स्लिप्ड डिस्क जैसी समस्याओं को वृद्घावस्था का लक्षण माना जाता था। अब २५-३० साल के लोग भी कमर पक़ड़े नज़र आ जाते हैं। विभिन्न अध्ययनों से यह सामने आया है कि विश्व में हर आठवां आदमी पीठ दर्द या स्लिप्ड डिस्क के दर्द से त्रस्त है।
स्लिप्ड डिस्क की समस्या का हमारी गतिविधियों से संबंध होता है और उठने, बैठने, झुकने की ग़लत आदतें आमतौर पर इसका कारण होती हैं। एक झटके से उठना-बैठना सही नहीं होता। इससे शरीर में कभी भी समस्याएँ आ सकती हैं। इसके अलावा ऐसी कोई दुर्घटना जिससे री़ढ़ की हड्डी पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दबाव प़ड़ा हो या चोट लगी हो, स्लिप्ड डिस्क का कारण बन जाती है। कभी-कभी ग़लत तरीके से या अपनी क्षमता से बहुत अधिक वज़न उठा लेने से भी यह समस्या उत्पन्न हो जाती है। स्लिप्ड डिस्क से तंत्रिका प्रभावित होती हैं जिससे पीठ, गर्दन और शरीर के निचले हिस्से में बहुत तेज़ दर्द होता है। कुछ मरीज़ प्रभावित अंगों के सुन्न होने की शिकायत भी करते हैं। धीरे-धीरे पक्षाघात की स्थिति आ जाने का खतरा भी रहा करता है। कई बार शरीर का निचला हिस्सा कमज़ोर प़ड़ जाता है, जिससे मरीज़ अपने पैरों पर नहीं ख़ड़ा हो पाता है। खांसते समय, टहलते हुए भयंकर दर्द होता है। कभी-कभी मरीज़ आधी बेहोशी की स्थिति में चला जाता है। कई मरीज़ नियिमित रूप से बेहोशी के दौरे प़ड़ने की भी शिकायत करते हैं।
स्लिप्ड डिस्क का एक ब़ड़ा कारण ब़ढ़ती हुई उम्र भी है। उम्र ब़ढ़ने के साथ ही डिस्क में विकार आने लगते हैं और लचीलापन कम होने लगता है। दुर्घटना में चोट लगने से भी यह समस्या उत्पन्न हो जाती है।
स्लिप्ड डिस्क के २० प्रतिशत मामले ऐसे होते हैं जिनमें मरीज़ को किसी भी तरह के खतरे का संकेत नहीं मिलता और वह जान ही नहीं पाता कि उसे डिस्क संबंधी समस्या है। यह एक खतरनाक स्थिति है क्योंकि रोग का पता चलने तक बहुत देर हो चुकी होती है और जो समस्या हल्के-फुल्के इलाज से ठीक हो सकती थी उसमें बहुत सारी परेशानियाँ उठानी प़ड़ती हैं।
इस बीमारी को स्लिप्ड डिस्क का जो नाम दिया गया है उससे रोग की सही प्रकृति स्पष्ट नहीं होती क्योंकि वास्तव में डिस्क अपनी जगह से खिसकता नहीं है बल्कि री़ढ़ की हड्डी की ओर उभर आता है। अक्सर गले या पीठ दर्द को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। कभी ब़ढ़ती उम्र तो कभी थकावट और कमज़ोरी के नाम पर नज़रंदाज़ कर दिया जाता है।
अगर दर्द इतना बढ़ जाए कि चलना-फिरना मुश्किल हो जाए,तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए। अगर गले या पीठ दर्द या सीने में भी दर्द होने लगे तो बिल्कुल भी देर नहीं करनी चाहिए। किसी दुर्घटना या रीढ़ पर चोट लगे या बहुत ऊंचाई से गिरने के बाद गर्दन या पीठ में दर्द होने लगे तब भी चिकित्सक की सलाह लेने में देर नहीं करनी चाहिए। हो सकता है कि स्लिप्ड डिस्क की समस्या पैदा हो गई हो तो देर होने पर स्थिति और बिगड़ सकती है। चिकित्सक अक्सर बेड रेस्ट की सलाह देते हैं लेकिन इस दौरान सामान्य दिनचर्या से जुड़े वे काम किए जा सकते हैं जिनके अंतर्गत बहुत झुकना न पड़े या वज़न न उठाना पड़े। कुछ सप्ताह बाद,धीरे-धीरे सामान्य दिनचर्या की ओर लौटने की सलाह दी जाती है। अगर चोट लगने के कारण दर्द हो रहा है तो पहले ठंडे पैक से सेंकने के बाद ही गर्म सिंकाई करनी चाहिए। अगर दर्द की वजह चोट नहीं हो तो गर्म सिंकाई से शुरूआत की जा सकती है।
तंत्रिका के दबने पर शल्य चिकित्सा अनिवार्य हो जाती है। अन्य इलाज़ों से अगर हालत न सुधरे,तो ऑपरेशन का विकल्प ही रह जाता है। सर्जरी का उद्देश्य डिस्क के बाहर आए हिस्से को अलग करना होता है। इसे डिस्काइडेक्टमी कहते हैं जिसे विभिन्न तरीक़ों से किया जा सकता हैः
ओपन प्रक्रिया में स्लिप्ड डिस्क के एक भाग अथवा खिसक गए संपूर्ण डिस्क को भी हटा दिया जाता है। इसमें स्पाइन में चीरा लगाकर डिस्क को हटाया जाता है।
प्रोस्थेटिक इंटरवर्टिब्रल डिस्क स्थानांतरण में,स्लिप्ड डिस्क की जगह लेने के लिए मरीज़ के पीठ में कृत्रिम डिस्क डाली जाती है। यह प्रक्रिया जनरल एनेस्थिसिया देकर पूरी की जाती है। बेहोशी की स्थिति में होने के कारण,मरीज़ को दर्द महसूस नहीं होता।
सर्जरी की बेहतरीन और न्यूनतम परेशानी पैदा करने वाली प्रक्रिया है इंडोस्कोपिक लेज़र डिस्काइटेक्टमी। इस शल्य चिकित्सा के अंतर्गत स्पाइन तक पहुँच कायम करने के लिए एक बहुत ही छोटा चीरा लगाया जाता है। डिस्क को देखने के लिए इंडोस्कोप की सहायता ली जाती है। यह एक पतली, लंबी और लचीली नली होती है जिसके एक किनारे पर प्रकाश स्रोत और कैमरा लगा होता है।
एनेस्थिसिया लोकल हो या जनरल यह इस बात पर निर्भर करेगा कि स्लिप्ड डिस्क स्पाइन में कहाँ है। चीरा लगाकर इंडोस्कोप से देखते हुए उस तंत्रिका को हटा दिया जाता है जिसके कारण दर्द हो रहा था। इसके बाद ल़ेजर द्वारा खिसकी हुई डिस्क को हटा दिया जाता है। भयंकर दर्द से आराम दिलाने वाली इस प्रक्रिया के साथ सबसे सुविधाजनक बात है कि इसमें मरीज़ को बिल्कुल भी दर्द का एहसास नहीं होता और रोग का अंत हो जाता है।
एक अध्ययन के अनुसार इंडोस्कोपिक ल़ेजर सर्जरी करवाने के ६ महीने बाद ही ६७ प्रतिशत लोग पहले की तरह आराम से चलने-फिरने में लगे। लगभग ३० प्रतिशत लोगों को उसके बाद दवा की ज़रूरत नहीं प़ड़ी। सिर्फ २-४ प्रतिशत को ही फिर से ऑपरेशन करवाना प़ड़ा। एक अन्य अध्ययन के अनुसार औसतन सात सप्ताह बाद लोग अपनी स्वाभाविक दिनचर्या फिर से शुरू करने लायक हो गए और उन्हें स्लिप्ड डिस्क से संबंधित परेशानी फिर कभी भी नहीं हुई। हाँ, एक बार यह समस्या पैदा हो जाने के बाद अपने चिकित्सक के नियमित संपर्क में रहना बहुत ज़रूरी होता है।
धूम्रपान, नियिमित व्यायाम न करना तथा पर्याप्त पोषण न मिलने से स्लिप्ड डिस्क का खतरा ब़ढ़ जाता है। ज़रूरत से ज़्यादा शारीरिक श्रम से भी कई बार री़ढ़ की हड्डी पर दबाव प़ड़ता है। जो भी व्यायाम करें वह बहुत जटिल न हो और पीठ पर बहुत दबाव न डाले। बहुत लंबे समय तक बैठे रहने से भी यह दर्द ब़ढ़ सकता है(सतमान सिंह छाबड़ा,सेहत,नई दुनिया,जनवरी द्वितीयांक 2012)।
सचेत करती पोस्ट.....
जवाब देंहटाएंजागरूक करती हुई पोस्ट के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंआवश्यक जानकारी देती अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज चर्चा मंच पर देखी |
बहुत बहुत बधाई ||
Aap ke sabhi lekh bahut hi upyogi hei.es prakar ki jankari dene ke liye hardya se dhanyavad
जवाब देंहटाएं@अगर गले या पीठ दर्द या सीने में भी दर्द होने लगे....
जवाब देंहटाएंसंभवत: यहाँ गले के बजाये गर्दन शब्द का प्रयोग होना चाहिए था क्योंकि गला THROAT की हिंदी है जबकि गर्दन NECK की हिंदी है.
मेरे विचार में यहाँ बात गर्दन के दर्द की हो रही है.
आशा है इस बात पर गौर करेंगे.