प्रत्येक पुरुष जब ५० की उम्र पार करता है तो, उसे प्रोस्टेट नाम परेशान करने लगता है और इस समय से वह प्रोस्टेट से संबंधित विभिन्न अनुभवों पर आधारित कहानियाँ सुनता है और उलझन में पड़ जाता है कि इससे छुटकारा कैसे पाया जाए। पहले यह समझना होगा कि प्रोस्टेट क्या है? चिकित्सा विज्ञान के अनुसार प्रोस्टेट शरीर के जननांगों में से एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका निर्माण भ्रूणावस्था में ही हो जाता है। प्रोस्टेट से निकलने वाला पदार्थ उसकी प्रजनन शक्ति के लिए आवश्यक होता है।
पुरुष के शरीर में हर अवस्था में विभिन्न अंगों में परिवर्तन होते हैं। उसी तरह से प्रोस्टेट ग्रंथि में एवं मूत्राशय में भी परिवर्तन होते हैं। इन कारणों से उम्र के साथ-साथ मूत्र विसर्जन की प्रक्रिया में भी बदलाव आता है। इन बदलावों के कुछ दूसरे कारण भी हो सकते हैं- जैसे मूत्राशय की नली में खराबी, पेशाब रोकने की क्षमता में कमजोरी एवं शरीर की अन्य बीमारियाँ जैसे मधुमेह इत्यादि।
मूत्र विसर्जन की प्रक्रिया में हुए परिवर्तन जैसे- बार-बार जाना, रात में बार-बार जाना, मूत्र का अचानक आ जाना, पेशाब एक बार में न हो पाना, मूत्र की धार पतली होना या मूत्रत्याग करने में समय ज्यादा लगना इत्यादि हैं। ऐसी अवस्था में मूत्र रोग विशेषज्ञ से उचित सलाह लेकर पूर्ण जाँच करवाकर इन परिवर्तनों के विभिन्न कारणों को जाना जा सकता है एवं उचित कारण मिलने पर उचित इलाज किया जा सकता है। मूत्र से संबंधित लक्षणों के कारण पुरुष का सामाजिक जीवन प्रभावित होने लगता है जैसे ज्यादा सफर न कर पाना, सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल न हो पाना इत्यादि। अतः इनका निदान आवश्यक हो जाता है। मूत्र प्रक्रिया में आए इन सब परिवर्तनों में प्रोस्टेट का अंग भी शामिल है। प्रोस्टेट में हुए बदलाव कुछ पुरुषों में कोई परेशानी नहीं करते, कुछ में कम और कुछ में ज्यादा परेशानी पैदा करते हैं। इसी कारण से प्रोस्टेट से संबंधित लक्षणों का इलाज भी सामान्य निरीक्षण से लेकर दवाईयाँ एवं शल्यक्रिया सम्मिलित हैं। हर अवस्था में कौन सा विकल्प कब और कहाँ तक उचित है यह मूत्र रोग विशेषज्ञ से सलाह लेकर तय किया जा सकता है।
प्रोस्टेट से संबंधित शल्यक्रिया की बात करें,तो प्रोस्टेट में बढ़ी हुई गठान को मुख्यतया दो प्रकार से निकाला जाता है। चीरा लगाकर उसे एक बार में ही पूरा निकाला जा सकता है। दूरबीन पद्धति से गठान को कई टुकड़ों में करके बाहर निकाला जाता है। दूरबीन पद्धति में गठान को टुकड़ों में बदलने के लिए एवं खून के स्राव को रोकने के लिए दो तरह की ऊर्जा स्रोत का उपयोग किया जाता है। पहली विद्युत ऊर्जा एवं दूसरी लेजर ऊर्जा। विकसित देशों में चिकित्सा विज्ञान में हो रहे कुछ अध्ययनों में लेसर ऊर्जा के उपयोग से होने वाले लाभ विद्युत ऊर्जा के उपयोग से होने वाले लाभों की समानता में आ रहे हैं।
विकसित देशों में अभी भी स्वर्णिक मानदंड विद्युत ऊर्जा ही है। दोनों के उपयोग में होने वाले ख़र्च में काफी अंतर है,पर उससे होने वाले लाभों में ज्यादा अंतर नहीं है। अतः,मूत्र रोग विशेषज्ञ की सलाह पर आप इनमें से उचित तरीक़े से इलाज़ ले सकते हैं(डॉ. राकेश पाराशर,सेहत,नई दुनिया,दिसम्बर पंचमांक 2011)
अच्छी जानकारी ।
जवाब देंहटाएंदवा से भी बढ़ी हुई प्रोस्टेट के लक्षणों को दबाया जा सकता है ।
नियमित सेक्स से प्रोस्टेट में कैंसर होने की सम्भावना कम हो जाती है ।
nice post.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन जानकारी.
जवाब देंहटाएंbehtar jankari.
जवाब देंहटाएं