मंगलवार, 17 जनवरी 2012

कान है कुछ ख़ास,बनाए रखिए संजीदा

सभी इंद्रियों में कान की स्थिति विशिष्ट है। शेष सभी इंद्रियों को कम या ज्यादा समय के लिए नियंत्रित किया जा सकता है,किंतु कान को आप नियंत्रित नहीं कर सकते। यदि कोई ध्वनि आ रही है,तो वह आपके कानों में जाती ही है। उम्र ब़ढ़ने के साथ ही अक्सर लोगों की सुनने की क्षमता कमज़ोर होने लगती है, लेकिन शुरू से ध्यान दिया जाए तो सुनने की आपकी यह विशेष शक्ति हमेशा बरकरार रह सकती है -

कम कर दें आवा़ज़
स़ड़क पर होने वाला ट्रैफिक का शोर, ट्रैफिक जाम होने पर लगातार बजने वाले हॉर्न, ये तो कम करना अकेले आपके बस में नहीं है, लेकिन घर में टीवी या स्टीरियो की वॉल्यूम तो आप कम कर ही सकते हैं। घर में बजने वाले साउंड सिस्टम की वॉल्यूम इतनी ही होना चाहिए कि दरवा़ज़ा बंद करने पर आवाज़ बाहर तक सुनाई न दे। अगर आवाज बाहर के लोग भी आसानी से सुन सकते हैं तो इसका मतलब है यह बहुत ज़्यादा है। कार के स्टीरियो सिस्टम के साथ भी यही बात लागू होती है। हेडफोन पर रेडियो या गाने सुनते हों तो यह केवल आपको ही सुनाई देना चाहिए। अगर आपके पास ख़ड़ा व्यक्ति यह बता दे कि आप कौनसा संगीत सुन रहे हैं तो इसका मतलब है कि ये वॉल्यूम कानों के लिए हानिकारक है। अगर आप भी इतनी ऊँची आवा़ज़ में सुनने के आदि हैं तो जान लें कि आवा़ज़ कम कर लेने में ही भलाई है।

यदि अपने से एक या दो फुट की दूरी पर ख़ड़े व्यक्ति से बात करने के लिए आपको चिल्लाना प़ड़ रहा हो तो इसका मतलब है कि उस स्थान पर शोर बहुत ज़्यादा हो रहा है। ऐसी स्थिति में वहाँ से दूर हो जाएँ, यह संभव न हो सके तो इयर प्रोटेक्शन पहन लें।

ईयर प्लग रखें साथ 
शोरगुल वाली जगहों पर परेशान होकर कानों में रुई लगा लेने से बहुत फर्क नहीं पड़ता। शोर से बचने के लिए अपने साथ ईयरप्लग रखने की आदत डालें, ताकि भी़ड़ भा़ड़ या भारी शोर वाले स्थानों पर फँसने पर कानों को बचाया जा सके। ईयरप्लग काफी छोटे होते हैं और आसानी से बैग या फिर जेब में इन्हें रखा जा सकता है। ये शोर से बचने में बहुत असरकारी होते हैं। खरीदने से पहले शोर कम करने की रेटिंग जरूर देख लें, इससे यह पता चलता है कि यह किस हद तक शोर को कम कर सकता है। ईयरप्लग की रेटिंग कम से कम १५ डेसिबल होना चाहिए। 

कई उपकरण एक साथ? 
क्या आप टीवी और रेडियो एकसाथ चलाकर रखते हैं? या फिर कोई आवाज करने वाले उपकरण और टीवी को एक ही कमरे में चलाकर काम करते हैं? अगर हाँ, तो यह जल्द से जल्द बंद कर दें। एक बार में या तो रेडियो चला लें या फिर टीवी देख लें। दो आवाज़ करने वाले उपकरण एक साथ चलाने से आवाज़ों को शोर में बदलते देर नहीं लगती। 

दवाएं भी कर सकती हैं परेशान 
दिन में 6-8 एस्प्रिन लेने वालों को कान में सीटियां सुनाई देने लगती हैं या फिर अस्थायी बहरेपन की समस्या भी हो सती है। कई तरह की एंटीबायोटिक दवाएं कानों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। कोई दवा लेने के बाद यदि कम सुनाई देने लगे तो डाक्टर को इस समस्या के बारे में बताएं। हो सकता है कि वे उस दवा का डोज कम करें या दवा बदल दें। 

धूम्रपान तो नहीं करते 
धूम्रपान करने से कानों तक रक्त का बहाव कम हो जाता है। तेज़ शोर-शराबे से कानों को होने वाली क्षति की प्राकृतिक रूप से जो मरम्मत होती है,वो तंबाकू के दुष्प्रभावों की वजह से नहीं हो पाती। इसलिए,यदि तंबाकू लेने या धूम्रपान के आदी हों तो तुरंत इसे छोड़ दें। 

कैफीन की मात्रा करें नियंत्रित 
कॉफी से मिलने वाला कैफीन निकोटिन की तरह ही कानों तक रक्त के प्रवाह को कम कर देता है जिससे सुनने की क्षमता कम होने की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए,कॉफी या कैफीन के अन्य स्रोतों की मात्रा कम से कम कर दें। अधिक मात्रा में ये नुकसान करते हैं। 

संतुलित आहार 
वसा और कॉलेस्ट्रॉल से भरपूर आहार हृदय के अलावा कानों के लिए भी हानिकारक होता है। धमनियों में वसा का जमावड़ा और उच्च रक्तचाप-दोनों कारणों से रक्त का प्रवाह घट सकता है। इसलिए,रोज़ संतुलित आहार और फल-सब्जियां लेना अन्य अंगो के साथ कानों के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। मौसंमी फल-सब्जियां,अंकुरित व खड़े अनाज,दालें,सूखे मेवे,खमीरीकृत चीज़ें-सभी बहुत जरूरी होती हैं। 

व्यायाम 
पैदल चलना,दौड़ना,तैरना,एरोबिक्स या ऐसे ही अन्य व्यायाम प्रतिदिन कम से कम 20 मिनट के लिए करें। रोज़ न हो सके तो हफ्ते में कम से कम 4 दिन तो ज़रूर ही करें। इससे पूरे शरीर में(कानों समेत)रक्त का संचार होता है जिससे आपकी सुनने की क्षमता भी दुरूस्त रहती है(डॉ. समीर निवसरकर,सेहत,नई दुनिया,जनवरी 2012 प्रथमांक)। 


टिप्पणीःसामान्यतः,ओंकार नाद (सदा-ए-आसमानी) गुरूकृपा से ही सुनना संभव हो पाता है। किंतु,परमात्मा की अनुकम्पा से, हृदय के तल पर जी रहे लगभग 10 प्रतिशत लोग यह नाद स्वयं सुनने लगते हैं। अफ़सोस,कि ऐसे अधिकतर भाग्यशालियों को यह पता ही नहीं होता कि जो वे अनायास ही सुन पा रहे हैं उसे सुनने के लिए औरों को कितना जतन करना पड़ा है। इससे घबराकर लोग ईएनटी विशेषज्ञ के पास पहुंच जाते हैं जिसे खुद इसका कोई पता नहीं होता। कई लोगों के कान ऐसे ही इलाज़ के कारण ख़राब हुए हैं। पहचान के लिए बता दें कि अधिकतर मामलों में,इस नाद की आवाज़ एक साथ कई झींगुरों को बजने जैसी होती है।

9 टिप्‍पणियां:

  1. svaasthvardhak or gyanvardhak jaankari ke liyen shukriya ....akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. अंतिम पैरा में बहुत ही सुन्दर बात कही है..

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  3. बहुत ही प्यारी बात बताई आखिरी मे…………उपयोगी जानकारी।

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  4. बहुत अच्छी पोस्ट है !

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  5. bahut hi achi jankari di aap ne....shukriya.....mere blog par bhi aap ka swaagat hai....

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  6. कानों की देखभाल के लिए बहुत ही अच्छे सुझाव दिए हैं ,आभार ..

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  7. जिस गरीब की फेक्टरी में ही इतना शोर हो...

    खुदा खैर करें.


    वैसे आज के माहौल के हिसाब से खुद को बहरा बनाने में गुरेज नहीं होना चाहिए.
    :)

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  8. अमां आखिर पहरे ने फंसा दिया है.....मेरे कानों में झींगुर जैसी आवाज तेज होती है....कभी मध्यम...कभी तो याद आने पर ध्यान देता हूं तब आती है जैसे अभी आखिरी पहले पढ़ते-पढ़ते....ये कौन सा नाद है....मैं तो डयक्टर के पास जाने की सोच रहा था......जाउं या न जाउं..सोच में पड़ गया हूं....क्या करुं?

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  9. Kripya hamko Ear Mashine ke baare me batayen, hamari nanai G ko uuncha sunane ki samasya hai to unko Ear mashine lagwana kaisa rahega, aur uska daam kya hoga????? Kya ye bahut chota hoga?? (Chota hone se iske khone ke chance jyada ho sakte hain
    ). javab jarur dijiyega.

    Sandeep singh, Allahabad ( @sanialld Twitter)

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