शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

सर्द हवाओं से ज़रा संभलकर

इन दिनों पूरे उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। सर्दी का मौसम अपने साथ गरमागरम पकवान और रज़ाई की गर्माहट तो लाता है,मगर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी इसके साथ होती हैं। सर्दियों की शुरूआत में ही लोग सबसे ज्यादा बीमार पड़ते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण बदलते मौसम के प्रति अनदेखी है। इसी बदलते वातावरण की वजह से वायरल संक्रमण,गला ख़राब होना,जोड़ों में दर्द,डेंगू,मलेरिया,निमोनिया आदि की समस्या काफी बढ़ जाती है। इस मौसम का यदि लुत्फ लेना है,तो अपनी दिनचर्या को मौसम के अनुरूप ढालना बेहद ज़रूरी है। इस मौसम में असाध्य बीमारियाँ जैसे अस्थमा, ऑर्थ्राइटिस, दिल व त्वचा संबंधित समस्याएँ अधिक बढ़ जाती हैं। बदलते मौसम का असर सबसे ज़्यादा बच्चों और बुजुर्गों पर होता है। वे सभी लोग इसकी चपेट में आसानी से आ जाते हैं जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है। इसलिए इन्हें ठंड से बचने और सेहतमंद बने रहने के लिए ख़ास देखभाल भी करनी चाहिए। जब मौसम बदल रहा हो तो ऐसे में किसी भी तरह के बुखार को अनदेखा न करें। छाती का संक्रमण हो या टायफॉइड, चिकित्सक को जरूर दिखाएँ। बीमारी के निदान के लिए चिकित्सक यदि टेस्ट करने की सलाह दें तो यह ज़रूर कराएँ ताकि पुष्टि की जा सके।  

सर्दी आते ही ऑर्थ्राइटिस यानी जोड़ों के दर्द की समस्या काफी बढ़ जाती है। इससे त्रस्त मरीज़ गुनगुने पानी से नहाना शुरू कर दें। हाथ-पैरों को ठंड से बचा कर रखें और संभव हो तो सुबह के समय धूप में बैठें। इससे शरीर को विटामिन-डी मिलता है। प्रोटीन और कैल्शियमयुक्त आहार लें और ठंडी चीजों से परहेज़ करें।

एकदम से गर्मी के बाद सर्दी आने से हड्डी, साइनस और दिल संबंधी बीमारियाँ इस समय तेज़ी से बढ़ जाती हैं। उच्च रक्तचाप और दिल के रोगियों के लिए यह मौसम अनुकूल नहीं होता। ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि बाहर के बदलते तापमान के अनुसार शरीर के तापमान को नियंत्रित रखा जाए। साथ ही ज़रूरत से ज़्यादा खाने से भी बचना चाहिए क्योंकि सर्दियों में शारीरिक गतिविधि कम हो जाती है जो वज़न बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होती है। इसलिए खुराक और कसरत के बीच बराबर तालमेल होना ज़रूरी है।  

सादा और संतुलित भोजन लें और नमक का कम प्रयोग करें। तनाव व डिप्रेशन से दूर रहने के लिए अन्य कामों में व्यस्त रहें। छाती में किसी भी कारण से दर्द महसूस हो या जलन बनी रहे तो इसे नज़रअंदाज़ न करें।  

एलर्जी या अस्थमा जैसी साँस से संबंधित बीमारियाँ भी इस मौसम में अधिक दुखदायी हो जाती हैं। एहतियात के तौर पर इन बीमारियों के मरीजों को ब्लोअर या हीटर बंद कमरे में नहीं चलाना चाहिए, इससे हवा में ऑक्सीजन कम हो जाती है और साँस लेने में तकलीफ होने लगती है। तेज़ स्प्रे, कीटनाशक, धुआँ या अन्य कोई गंध जिससे साँस में तकलीफ हो, उससे दूर रहें। परेशानी बढ़ने पर डॉक्टरी सलाह लें। 

बच्चों के कपड़े आदि का पूरा ध्यान रखें। उनके हाथ-पैर और सिर को ढँक कर रखें और गीले कपड़ों मे न रहने दें। न तो ठंडी चीजें खिलाएँ और न ही ठंडी हवा में बाहर जाने दें। बच्चों के लिए थोड़ी सी भी ठंड हानिकारक हो सकती है। अस्थमा पीड़ित और बुजुर्ग धुंध छंटने के बाद ही बाहर निकलें। दवाएं और इन्हेलर लेतेर हें। हाथ-पैर फटने और नाखून टूटने से रोकने के लिए रात में हल्के गर्म-पानी में नमक डालकर धोएं,फिर अच्छे से सुखाकर कोई कोल्ड लगा लें। होठों पर ग्लिसरीन लगाएं। एग्जिमा जैसी त्वचा संबंधी एलर्जी के से पीड़ित लोग साबुन,डिटर्जेंट और ऊनी कपड़ों के सीधे सम्पर्क से बचें(डॉ. वैभव गुप्ता,सेहत,नई दुनिया,दिसम्बर चतुर्थांक 2011)।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीदिसंबर 30, 2011

    बहोत अच्छी जानकारी दे रहे हो आप ।

    बहोत अच्छा लगता है यह पढकर ।

    हिंदी ब्लॉग

    हिन्दी दुनिया ब्लॉग

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  2. सर्दी के इस मौसम में आपकी सलाह पर जरुर अमल करेंगे ....आभार

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  3. कईयों के लिए असहनीय हो सकती है सर्दी ।
    शुक्र है , अब ठण्ड थोड़ी कम हो रही है ।

    नव वर्ष की शुभकामनायें ।

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  4. काफी सारे लोगों के लिए तो गर्मी कहीं अधिक ठीक रहती है.

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  5. बहुत ही एहतियात बरतने की जरूरत होती है इन दिनों में । काम की सलाह

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  6. स्वास्थ्य-सबके लिए.......
    रमण जी, आपका यह ब्लॉग सदैव स्वस्थ रहे ! और हमें इसी प्रकार बिमारियों की जानकारी देता रहे !
    बिना स्वास्थ्य के हम ब्लोगिंग कैसे कर सकते है :-) नववर्ष हार्दिक शुभकामनायें देते हुवे, बहुत बहुत आभार आपका !

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