देश में शराबखोरी का चलन बीते दो दशकों में काफी बढ़ गया है। पहले शराब की नई दुकानें खुलने पर उस बस्ती के लोग और खासकर महिलाएँ इसका जमकर विरोध करते थे। आज ऐसा नहीं है, आज शराब की दुकानें लगातार बढ़ रही हैं। युवाओं को शराबखोरी के प्रति आकर्षित करने के लिए विदेशी शराब कंपनियाँ मिनरल वाटर से लेकर एपल ज्यूस तक अपने ब्रांड के नाम पर बेचती हैं। युवाओं को टारगेट करने की इसी व्यापारिक कुटिलता का परिणाम है कि शराबखोरी शुरू करने की न्यूनतम उम्र १९ से घटकर १३ तक आ पहुँची है। अब बच्चे किशोरावस्था की शुरुआत शराब से कर रहे हैं।
बीते तीन सालों में शराब बिक्री की दर ८ प्रतिशत हो गई है। शेष दुनिया से तुलना करें तो अभी हम भले ही बहुत पीछे हों लेकिन २१ प्रतिशत वयस्क पुरुष शराबखोरी की ओर प्रवृत्त हो चुके हैं। इसमें से १४० लाख लोग अब भी ऐसे हैं जो शराब पर निर्भर हो चुके हैं और उन्हें चिकित्सकीय सहायता की जरूरत है। अब तक महिलाओं में शराबखोरी केवल निम्न तबके की महिलाओं तक ही सीमित थी लेकिन कमसिन उम्र की युवा लड़कियां भी शराबखोरी में लिप्त पाई जा रही हैं। लड़कियाँ अपने पुरुष दोस्तों के साथ उन होटलों या पब्स में जाने से परहेज नहीं कर रही हैं जहाँ शराब परोसी जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि हमारे देश में शराबखोरी का पैटर्न ही खतरनाक है। आमतौर पर यहाँ लोग थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद जमकर शराबखोरी करते हैं। यही वजह है कि आधे से अधिक शराबखोर खुद को नुकसान पहुँचाने की हद तक शऱाब पीते हैं। सोशल ड्रिंकिंग का चलन तो बढ़ा ही साथ ही अकेले बैठकर पीने वालों की संख्या कम नहीं है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इशारा किया है कि नकली शराब पीने वालों के कारण समाज पर इससे संबंधित बीमारियों के इलाज का आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। इसी अध्ययन के मुताबिक देश भर के अस्पतालों की इमरजेंसी वार्डों में भरती होने वाले ६० प्रतिशत मरीज शराबखोरी के कारण आई चोटों की वजह से यहाँ पहुँचते हैं। इनमें से २० प्रतिशत को मस्तिष्क की संघातिक चोट होती है। यह भी जाहिर हुआ है निम्न तबके के लोग अपनी आय से अधिक की शराबखोरी करते हैं जिससे वे कर्ज के अंधेरे जाल में बिंधते चले जाते हैं।
देश के नेशनल ड्रग डी-एडिक्शन प्रोग्राम के तहत 483 नशामुक्ति केंद्रों और 90 काउंसिलिंग सेंटरों को आर्थिक अनुदान दिया गया है। यह कदम केवल खानापूर्ति के लिए उठाया गया लगता है क्योंकि न तो यहां ट्रेंड स्टाफ है,न नशामुक्ति के लिए ज़रूरी दवाएं हैं। सरकार का इरादा केवल उन लोगों को इलाज़ मुहैया कराने का है जो शऱाबखोरी के चंगुल में गहरे तक उतर गए हैं। शराबखोरी पर नियंत्रण करने का कोई कार्यक्रम उसके हाथ में नहीं है। शराब की दुकानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। शऱाब की कीमतों को वह इतना नहीं बढ़ा रही है कि लोगों की पहुंच से ही दूर हो जाए। इस सामाजिक बुराई पर नकेल कसने की मंशा ही नज़र नहीं आ रही है। प्रादेशिक सरकारों की चिंता अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करने तक सीमित है। स्कूलों,अस्पतालों और इबादतगाहों के नज़दीक शराब की दुकानें बंद कराने की इच्छाशक्ति ही नहीं है। विदेशी शराब माफिया इस क़दर ताक़तवर हो गया है कि वे अपने हक़ में नीतियों में परिवर्तन करा लेते हैं।
नववर्ष के आगमन की शुरुआत ही ख़ूब शऱाब पीकर करने में कोई समझदारी नहीं है। अच्छी सेहत पाने की राह में संयम सबसे ताक़तवर औजार है। 31 दिसम्बर की रात शऱाब के बगैर भी उतने ही जोश से मनाई जा सकती है। खुशी प्रकट करने के लिए शराब के अलावा भी कई जरिए हैं(संपादकीय,सेहत,नई दुनिया,दिसम्बर पंचमांक 2011)
सच लिखा आपने इसमे ।
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
नववर्ष, नवहर्ष की आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
आज शराब की दुकाने सबसे ज्यादा आय का जरिया है !
जवाब देंहटाएंजितना हो सके लोगों को नशेडी बनाने में ही तो माफिया का हित है !
एक अच्छी पोस्ट !
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंAPKO NAV VARSH KE SUBH AWASAR PR HARDIK BADHAI BHEJ RAHA HOON ... MAHATVPOORN JANAKRI KE LIYE ABHAR.
जवाब देंहटाएंशराबखोरी काफ़ी खतरनाक हो सकती है, विशेषकर नासमझ शराबियों द्वारा अपने परिचित कम वय के लोगों को इसका आदी बनाकर समाज की काफ़ी हानि की गयी है। शराब के उत्पादन और इसकी दुकानों पर भी नियन्त्रण की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंनववर्ष का सुन्दर सन्देश!!
जवाब देंहटाएंआपको नववर्ष की अनंत शुभकामनाएँ