हार्मोन्स का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव होता है। ये न सिर्फ शरीर की वृद्धि और विकास को प्रभावित करते हैं, बल्कि शरीर के सभी तंत्रों की गतिविधियों को नियंत्रित भी करते हैं। लेकिन जब इन हार्मोन्स के स्नव में असंतुलन होता है तो शरीर के पूरे सिस्टम में गड़बड़ी आ जाती है और फिर दिक्कतें शुरू हो जाती हैं।
तंदुरुस्त रहने के लिए जरूरी है कि हमारे शरीर में जरूरी हार्मोन्स का उचित मात्र में स्राव होता रहे। स्वस्थ शरीर में ही हार्मोन्स का स्नव संतुलित मात्र में होता है और हार्मोन्स का संतुलित स्नव ही शरीर को स्वस्थ रखता है।
क्या हैं हार्मोन
हार्मोन किसी कोशिका या ग्रंथि द्वारा स्नवित ऐसे रसायन होते हैं जो शरीर के दूसरे हिस्से में स्थित कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं। शरीर की वृद्धि, मेटाबॉलिज्म और इम्यून सिस्टम पर हार्मोन्स का सीधा प्रभाव होता है।
द अपोलो क्लिनिक की कंसल्टेंट गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ. गुंजन कहती हैं, ‘हमारे शरीर में कुल 230 हार्मोन होते हैं, जो शरीर की अलग-अलग क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। हार्मोन की छोटी-सी मात्रा ही कोशिका के मेटाबॉलिज्म को बदलने के लिए काफी होती है। ये एक कैमिकल मैसेंजर की तरह एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक सिग्नल पहुंचाते हैं। अधिकतर हार्मोन्स का संचरण रक्त के द्वारा होता है। कई हार्मोन दूसरे हार्मोन्स के निर्माण और स्नव को नियंत्रित भी करते हैं।’
द अपोलो क्लिनिक की कंसल्टेंट गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ. गुंजन कहती हैं, ‘हमारे शरीर में कुल 230 हार्मोन होते हैं, जो शरीर की अलग-अलग क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। हार्मोन की छोटी-सी मात्रा ही कोशिका के मेटाबॉलिज्म को बदलने के लिए काफी होती है। ये एक कैमिकल मैसेंजर की तरह एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक सिग्नल पहुंचाते हैं। अधिकतर हार्मोन्स का संचरण रक्त के द्वारा होता है। कई हार्मोन दूसरे हार्मोन्स के निर्माण और स्नव को नियंत्रित भी करते हैं।’
फीमेल हार्मोन्स
हार्मोन्स महिलाओं के शरीर को ही नहीं उनके मस्तिष्क और भावनाओं को भी प्रभावित करते हैं। किसी महिला के शरीर में हार्मोन्स का स्नव लगातार बदलता रहता है। यह कई बातों पर निर्भर करता है जिनमें तनाव, पोषक तत्वों की कमी या अघिकता और व्यायाम की कमी या अधिकता प्रमुख है। प्रसिद्ध गाइनेकोलॉजिस्ट और ऑब्सटेट्रिक्स डॉ. नुपुर गुप्ता कहती हैं, ‘फीमेल हार्मोन यौवनावस्था, मातृत्व और मोनोपॉज के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मासिक धर्म और प्रजनन चक्र को नियंत्रित रखते हैं।
ओवरी (अंडाशय) द्वारा सबसे महत्वपूर्ण जिन हार्मोन का निर्माण होता है वह है फीमेल सेक्स हार्मोन। इन्हें सेक्स स्टेराइड भी कहते हैं। ये केवल दो ही होते हैं एस्ट्रोजन और प्रोनेस्ट्रॉन। ओवरी कुछ मात्र में टेस्टॉस्टशेन और एंड्रोजन भी बनाती है, लेकिन इन्हें मेल हार्मोन माना जाता है।’
डॉ. गुप्ता बताती हैं, ‘यौवनावस्था आरंभ होते ही किशोरियों में जो शारीरिक बदलाव नजर आते हैं, वह एस्ट्रोजन के स्राव के कारण ही आते हैं। इसके बाद नारी जीवन में सबसे बड़ा हार्मोनल बदलाव मासिक धर्म के चक्र के बंद होने के दौरान आता है जिसे चिकित्सकीय भाषा में मोनोपॉज कहते हैं।’
हार्मोन असंतुलन का शरीर पर प्रभाव
हार्मोन असंतुलन के कारण महिलाओं का मूड अक्सर खराब रहता है और वे चिड़चिड़ी हो जाती हैं। यह असंतुलन स्वास्थ्य संबंधी सामान्य परेशानियां जैसे मुहांसे, चेहरे और शरीर पर अधिक बालों का उगना, समय से पहले उम्र बढ़ने के लक्षण नजर आना से लेकर मासिक धर्म संबंधी गड़बड़ियां, सेक्स के प्रति अनिच्छा, गर्भ ठहरने में मुश्किल आना और बांझपन जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।
फीमेल हार्मोन की गड़बड़ी के अलावा कई महिलाओं में पुरुष हार्मोन टेस्टॉस्टेशन का अधिक स्राव हिरसुटिज्म की वजब बन जाता है। इससे सेक्युअल डिस्ट्रीब्युशन (शरीर की त्वचा का वह हिस्सा जहां महिलाओं और पुरुषों में बालों की मात्र अलग-अलग होती है) में बालों का उग आना, कुछ महिलाएं एलोपेसिया (बालों का अत्यधिक झड़ना) की शिकार हो जाती है।
असंतुलन के कारण
महिलाओं के शरीर में हार्मोन असंतुलन कई कारणों से प्रभावित होता है जिसमें जीवनशैली, पोषण, व्यायाम, तनाव, भावनाएं और उम्र प्रमुख हैं। कई लोगों की यह अवधारणा है कि हार्मोनल असंतुलन मोनोपॉज के बाद होती है जबकि यह पूरी तरह गलत है। कई महिलाएं सारी उम्र हार्मोनल असंतुलन से परेशान रहती हैं। आज महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन इसलिए अधिक हो रहा है क्योंकि भोजन में गड़बड़ी आ गई है।
जंक फूड और दूसरे खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की मात्र तो बहुत कम होती है लेकिन कैलोरी बहुत अधिक। इससे शरीर को आवश्यक विटामिन, मिनरल, प्रोटीन और दूसरे आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पाते। कॉफी, चाय, चॉकलेट और सॉफ्ट ड्रिंक आदि का अधिक उपयोग करने के कारण भी कईं महिलाओं की एड्रीनल ग्लैड अत्यधिक सक्रिय हो जाती है जो दूसरे हार्मोन्स के स्राव को प्रभावित करती है।
हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी
डॉ. गुप्ता कहती हैं, ‘मोनोपॉज से गुजर रही महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन दूर करने के लिए सिंथेटिक हार्मोन देने की यह पद्धति कुछ वर्ष पूर्व तक विशेषकर पश्चिमी देशों में बहुत लोकप्रिय थी। वैसे एशियाई देशों में यह उतनी लोकप्रिय नहीं थी। मोनोपॉज के बाद इस तकनीक द्वारा महिलाएं ज्यादा युवा और स्वस्थ नजर आती थीं। लेकिन विश्व स्तर पर किए गए डब्ल्यूएचआई ( वीमन हेल्थ इनीशिएटिव) द्वारा इसे गलत साबित कर दिया गया है। इस तकनीक के फायदे कम और नुकसान बहुत ज्यादा है। इससे हृदय संबंधी रोग, बच्चेदानी का कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और स्ट्रोक के खतरे कई गुना बढ़ जाते हैं। कई देशों में तो इसका उपयोग लगभग बंद हो गया है।’
बचाव के उपाय
हार्मोनल असंतुलन को दूर करने के लिए एलोपैथी के अलावा हर्बल और प्राकृतिक उपचार भी उपलब्ध हैं। कई महिलाएं आयुर्वेद, एक्यूपंचर और अरोमा थेरेपी का सहारा भी लेती हैं। यानी जीवन शैली में थोड़ा बदलाव हार्मोन्स के संतुलित स्नव में काफी मददगार हो सकता है।
ध्यान रखें
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-संतुलित कम वसायुक्त औरअधिक रेशेदार भोजन का सेवन करें।
-ओमेगा-3 और ओमेगा-6 युक्त फैटी एसिड हार्मोन संतुलन में सहायक हैं। यह सनफ्लॉवर के बीजों, अंडों, सूखे मेवों और चिकन में पाया जाता है।
-शरीर में पानी की कमी न होने दें।
-7-8 घंटे की नींद लें।
-तनाव से बचें, सक्रिय रहें।
-चाय, काफी, शराब के सेवन से बचें।
-मासिक धर्म संबंधी गड़बड़ियों को गंभीरता से लें।
-मेडिटेशन और डीप रिलेक्सेशन द्वारा अपने मन और शरीर को शांत रखने की कोशिश करें(शमीम खान,हिंदुस्तान,दिल्ली,30.11.11)।
Nice post .
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी और सुझाव !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ! अच्छी पोस्ट है !
काफी बढ़िया सुझाव दिया है आपने ...धन्यवाद
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