टॉन्सिल एवं एडिनॉइड सामान्यतः बच्चों में और कभी-कभी बड़ों में गले में खराश या तेज़ दर्द, बुखार, निगलने में तकलीफ होती है। जाँच में गले के अंदर स्थित दोनों ओर के टॉन्सिल फूले हुए व लाल रंग के दिखाई देते हैं। कभी-कभी उन पर सफेद चकत्ते या पस दिखाई देता है। इस पर एक झिल्ली भी बन सकती है, जो डिप्थीरिया के कारण होती है। कुछ मरीज़ों में टॉन्सिल की समस्या बार-बार हो जाती है।
लंबे समय तक टॉन्सिल की शिकायत हो तो बच्चे के गले में दर्द होता है, मुँह में बदबू आती है और थकान बनी रहती है। अव्यवस्थित खान-पान के कारण उसका वज़न कम होने लगता है। टॉन्सिल फूल जाते हैं और उनके अंदर की खाली जगह में अन्ना के कण फँस जाते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। गले के बाहरी तरफ गठानें नज़र आती हैं और हाथ लगाने पर महसूस किया जा सकता है। इस स्थिति में इसे गंभीर टॉन्सिलाइटिस कहते हैं।
यह संक्रमण एंटीबायटिक दवाओं और उचित देखभाल से ठीक हो जाता है। इसका सबसे अधिक खतरा तब होता है, जब संक्रमण स्ट्रेप्टो कॉकस हीमोलीटिकल नामक बैक्टीरिया से होता है। तब यह संक्रमण हृदय एवं गुर्दों में फैलकर खतरनाक बीमारी का कारण बन सकता है। कभी-कभी टॉन्सिल और आस-पास के ऊतकों में संक्रमण से मवाद हो जाता है, जिससे मरीज़ को अत्यधिक दर्द, बुखार, निगलने में तकलीफ और मुँह खोलने में दर्द होता है। उसकी आवाज़ भी बदल जाती है।
विशेषकर बच्चों में टॉन्सिल अत्यधिक नुकसानदेह होता है। एडिनॉइड्स अर्थात नाक के पीछे होने वाले टॉन्सिल एडिनॉइड्स में संक्रमण होने पर बुखार, सर्दी, नाक एवं गले से कफ आना, खाँसी हो सकती है। ऐसे में मरीज़ रात में नाक से साँस नहीं ले पाते, लिहाज़ा मुँह खुला रहता है। कई बार मरीज़ इसके कारण खर्राटें भी लेते हैं। यह संक्रमण लंबे समय तक हो तो बच्चे के चेहरे का विकास प्रभावित होता है। इससे ऊपर के दाँत बाहर निकल जाते हैं, नाक फैली हुई दिखाई देती है और आँखें खिंची हुई दिखाई देती हैं। इससे बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है। एडिनॉइड से होने वाला संक्रमण बच्चों में कान की बीमारियों की वजह बन सकता है क्योंकि नाक और कान को जोड़ने वाली नली,जो प्रेशऱ को नियमित करती है,इससे बंद हो जाती है। कई बार कान के पर्दे के पीछे पानी जमा हो जाता है।
एक साल में तीन से अधिक बार टॉन्सिल एडिनॉइड में संक्रमण,जो लगातार दो साल तक हो तो ऐसे मरीज़ को शल्य क्रिया की सलाह दी जाती है। इलाज़ के बाद भी गला फिर ख़राब हो सकता है,गले में खराश हो सकती है क्योंकि गले की पिछली दीवार एवं जुबान के पिछले हिस्से पर भी टॉन्सिल के ऊतक होते हैं। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि शल्य क्रिया के दौरान टॉन्सिल पूरी तरह निकाले नहीं गए हों।
एक और संक्रमण जो टॉन्सिल में होता है,वह है गलघोंटू बुखार या डिप्थीरिया। जिन बच्चों में समय पर डीपीटी(जिसमें डिप्थीरिया का टीका शामिल होता है) के टीके लगे हों,उनमें संक्रमण का ख़तरा काफी कम होता है। इस संक्रमण से तेज़ बुखार,कमज़ोरी,गले में दर्द,खाने में तकलीफ व सांस लेने में रुकावट जैसी परेशानियां पैदा हो सकती हैं। यह बीमारी बैक्टीरिया के कारण होती है जिससे निकलने वाले विषैले पदार्थों से बनने वाली झिल्ली टॉन्सिल के साथ श्वास नली में फैलने लगती है। यह संक्रमण इतनी जल्दी होता है कि जानलेवा भी हो सकता है(डा. माधवी पटेल,सेहत,नई दुनिया,अक्टूबर द्वितीयांक 2011)।
ई एन टी विशेज्ञ की यह रिपोर्ट लोगों को लाभ उठाने मे सहायक रहेगी।
जवाब देंहटाएंoh,
जवाब देंहटाएंvery useful information.
बड़ा खतरनाक बीमारी है यह।
जवाब देंहटाएंआभार इस जानकारी को शेयर करने के लिए।
काफी कष्टदायक बीमारी है ... आप की इसके सम्बंध में दी गई जानकारी काफी उपयोगी एवं सार्थक है ...आभार ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी आभार !
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंकल 24/10/2011 को आपकी कोई पोस्ट!
नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद
Mere ladke ko Doctor operation bola h uski umr 4 years h kya karu apni rai zaroor dijiye
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