थायरॉइड ग्रंथि आपकी श्वास नली के सामने वाले हिस्से में गले के नीचे स्थित होती है। इसके दो भाग होते हैं और यह तिल्ली के आकार की होती है।थायरॉइड ग्रंथि थायरॉक्सीन (टी-४) हारमोन बनाने का कार्य करती है। थायरॉइड ग्रंथि का नियंत्रण पीयूष ग्रंथि (मस्तिष्क में स्थित एक ग्रंथि) द्वारा होता है।
थायरॉइड संबंधी विकार
कुछ विकारों के कारण थायरॉइड ग्रंथि बहुत ज़्यादा या बहुत कम मात्रा में हारमोन का निर्माण करने लगती है।जिन व्यक्तियों में ऑटो-इम्यून से जुड़ी बीमारियाँ जैसे मधुमेह व गठिया होती हैं, उन्हें ऐसी बीमारी होने का खतरा अधिक होता है।रक्तधारा में पर्याप्त मात्रा में थायरॉइडहारमोन न हो तो चयापचय धीमा हो जाता है, इस स्थिति को हायपोथायरॉइडिज़्म यानी थायरॉइड ग्रंथि की सक्रियता में कमी होना कहा जाता है।
कारण...
हायपोथायरॉइडिज़्म का सबसे आम कारण हैथायरॉइडायटिस, जो थायरॉइड ग्रंथि में एक प्रकार की सूजन होती है। हाशिमोटो रोग थायरॉइडायटिस का सबसे आम प्रकार है। कुछ दवाओं के सेवन से भी हायपोथायरॉइडिज़्म हो सकता है।
उपचार...
विशेषज्ञ बीमारी की गंभीरता के आधार पर उपचार का चयन करते हैं- दवाई, सर्जरी एवं रेडियो आयोडीन द्वारा लगभग ९० प्रतिशत लोगों में दवाईद्वारा थायरॉइड रोग ठीक हो सकता है।गर्भावस्था के दौरान थायरॉइड रोग होने से महिला और शिशु दोनों के लिए ही खतरा होता है। यदि महिला को हायपोथायरॉइडिज़्म हैतो बच्चा मानसिक रूप से विकलांग होता है। हायपोथायरॉइडिज़्म या हाइपरथायरॉइडिज़्म हो तो महिला को गर्भाधान करने में समस्या उत्पन्ना होती है व बार-बार गर्भपात भी हो सकता है।गर्भावस्था के दौरान समस्याओं की संभावनाएँ तब ज़्यादा होती हैं, जब थायरॉइड रोग को उपचारित और नियंत्रित न किया जाए। उचित इलाज के साथ थायरॉइड रोग से ग्रस्त महिलाएँ भी स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं। चिकित्सक कुछ बातों के आधार पर आपकी थायरॉक्सीन की खुराक निर्धारित करते हैं । मरीज़ का वज़न जितना ज़्यादा होगा, खुराक भी उसी के अनुसार ज़्यादा होगी।अधिक उम्र के मरीज़ों को सुररआत में दवाई की कम मात्रा दी जाती है और फिर धीरे-धीरे इसे बढ़ाया जाता है। यदि मरीज़ हृदयरोग से भी ग्रस्त हो,तो दवाई बहुत कम मात्रा में शुरू की जाती है। मरीज़ में हायपोथायरॉईडिज़्म किस कारण से हुआ है,उसे भी ध्यान में रखा जाता है। कारणों में ऑटोइम्यून रोग और थायरॉइड कैंसर आदि प्रमुख हैं। जब थायरॉइड ग्रंथि बहुत ज्यादा मात्रा में थायरॉइड हार्मोन का निर्माण करने लगती है,तो हाईपरथायरॉइजिड्म होता है। इसके कारण मरीज़ की चयापचय दर तेज़ हो जाती है। हाईपरथायरॉइडिज्म का प्रमुख कारण है ग्रेव्स रोग। वैसे तो यह रोग किसी भी व्यक्ति को हो सकता है,परन्तु मुख्यतः यह महिलाओं को 20 से 40 वर्ष की आयु के बीच सर्वाधिक प्रभावित करता है। यह कुछ दवाओं के कारण भी हो सकता है(डॉ. अजय गुप्ता,सेहत,नई दुनिया,अगस्त तृतीयांक 2011)
तनिक लक्षण भी बतायें !
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद'
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी है आपने।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंथ्यरोइड का इलाज , खर्च ओर हस्पताल का ब्योरा जरा विस्तार से देने कष्ट करगे
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