गुरुवार, 25 अगस्त 2011

ये मुंह और मसूर की दाल......

मानव सभ्यता की शुरूआत से ही मसूर दाल के इस्तेमाल के प्रमाण मिलते हैं। मध्य एशिया में प्रागैतिहासिक काल में भी इसे खाए जाने के प्रमाण मिलते हैं। मध्य-पूर्व में हुई एक खुदाई में एक मृद्भांड में यह दाल प्राप्त हुई है। कार्बन डेटिंग से पता चलता है कि यह 8000 वर्ष पुरानी दाल है। मसूर का ज़िक्र बाइबल में भी मिलता है। बेबीलोनकाल में यहूदी दासों द्वारा इसे पकाए जाने का उल्लेख है। इसके अभूतपूर्व चिकित्सकीय गुणों के कारण यह मुंह और मसूर की दाल का मुहावरा प्रचलित हुआ। 
 मसूर गोल,अंडाकार अथवा दिल के आकार की होती है। यह साबुत अथवा दाल के रूप में भी मिलती है । सारी दुनिया में यह काली,पीली,लाल,नारंगी,हरी अथवा भूरे रंग में मिलती है। अत्यंत पौष्टिक और गुणकारी होने के कारण सालों भर खाई जाती है। मसूर शुष्क वातावरण में भी पैदा की जा सकती है,इसलिए देश के हर क्षेत्र में,हर मौसम में आसानी से उगाई जाती है। भारत,तुर्की,कनाडा,चीन और सीरिया मसूर दाल के मुख्य उत्पादक देश हैं। 

कैसे पकाएं मसूर दाल 
मसूर पकाने के लिए इसे पहले से भिगोकर रखने की जरूरत नहीं है। एक कप मसूर के लिए तीन कप पानी पर्याप्त है। इसे किसी भी रेसिपी में डालने से पहले उबालना जरूरी होता है। उबलते पानी में मसूर डालकर पकाना अच्छा होता है। मसूर कभी भी ठंडे पानी में डालकर उबालने के लिए न चढ़ाएँ। उबलते पानी में डालकर पकाई गई मसूर पाचक होती है। हरी मसूर को पकाने में कम से कम तीस मिनट लगते हैं। शेष मसूर की किस्मों को पकाने में २० मिनट लगते हैं।

क्या हैं फायदे 
मसूर की दाल में बहुतायत से डाइटरी फायबर होता है, जो कि घुलनशील और अघुलनशील दोनों तरह का होता है। घुलनशील रेशे पित्त को काबू में रखते हैं और शरीर से बाहर निकालने में मदद करते हैं। इस प्रक्रिया में शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा भी नियंत्रित होती है। मसूर की दाल में मौजूद घुलनशील रेशे रक्त शर्करा को स्थिर रखने में मदद करते हैं। जो लोग इंसुलिन रेजिस्टेंट पर होते हैं उन्हें इससे बहुत फायदा होता है। हायपोग्लायसीमिया या डायबिटीज के मरीजों में दालें शुगर के स्तर को संतुलित रखती हैं। अघुलनशील रेशे कब्ज से राहत दिलाते हैं और को मल एकसाथ शरीर से निष्कासित करने में मदद करते हैं। इनसे हाजमा ठीक रहता है साथ ही बार-बार संडास जाने की समस्या (इरिटेटिंग बॉवेल सिंड्रोम) से भी छुटकारा मिल जाता है। मसूर की दाल के रेशे शरीर में मौजूद कोलेस्ट्रॉल को कम करने में अत्यधिक मददगार साबित होते हैं। इस तरह दिल से संबंधित बीमारियाँ दूर ही रहती हैं। मसूर की दाल से रक्त शर्करा से संबंधित कई समस्याओं का निदान होता है। भोजन करने के बाद जो रक्त शर्करा में उछाल आता है उसे नियंत्रित करने में रेशे मददगार साबित होते हैं। दिल को मजबूती प्रदान करने में मसूर की दाल का कोई सानी नहीं है। इसमें फोलेट और मैग्नीशियम की अच्छी मात्रा होती है, जो हृदय को मज़बूत करती है। फोलेट होमोसिस्टाइन के स्तर को कम करने में मदद करता है। होमोसिस्टाइन से धमनियों की अंदरूनी सतह को ख़तरा रहता है। यह दिल के लिए घातक होता है। मसूर की दाल में मौजूद मैग्नीशियम रक्त प्रवाह के अवरोधों को कम करने में मदद करता है। शरीर में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के प्रवाह को आसान करता है। मसूर की दाल में भरपूर लौह-तत्व होते हैं जिससे मासिक धर्म,गर्भावस्था के दौरान तथा स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए खासतौर पर फायदेमंद होता है क्योंकि इन्हें लौह-तत्व की अधिक ज़रूरत होती है। अधिक लौहतत्व होने के कारण बढ़ते बच्चों और युवाओं को मसूर की दाल बहुत फायदा पहुंचाती है। 

सावधानियाँ... 
 मसूर की दाल खाते समय सावधानियाँ रखना जरूरी है। प्यूरीन नामक रसायन के प्रति संवेदनशील लोगों को मसूर की दाल से स्वास्थ्य संबंधित समस्याएँ हो सकती हैं। प्यूरीन की अधिकता होने पर यूरिक एसिड शरीर में जमा हो सकता है। इससे गठिया और गुर्दे की पथरी जैसी समस्याएँ भी हो सकती हैं। शोध अध्ययनों के मुताबिक पेड़-पौधों से प्राप्त प्यूरीन के मुकाबले मांस और मछलियों से हासिल प्यूरीन अधिक घातक होती है। पहले साबुत मसूर को अच्छे से धो लें और कंकर-पत्थर साफ कर लें। क्षतिग्रस्त हो चुके मसूर को निकाल लें। अब छन्नी में रखकर नल के बहते हुए पानी में साफ कर लें(सेहत,नई दुनिया,अगस्त तृतीयांक 2011)।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीअगस्त 25, 2011

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  2. मसूर की दाल के बहुत सारे गुणों से आपने अवगत करा दिया ........उपयोगी जानकारी

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  3. अच्छी जानकारी दी है ...

    कुछ पंक्तियाँ दो बार पोस्ट हो गयी हैं ..जिससे लेख अनावश्यक रूप से लंबा दिखता है ..

    मसूर गोल, अंडाकार अथवा दिल के आकार की होती है। यह साबुत अथवा दाल के रूप में भी मिलती है। सारी दुनिया में यह काली, पीली, लाल, नारंगी, हरी अथवा भूरे रंग में मिलती है। अत्यंत पौष्टिक और गुणकारी होने के कारण सारे साल खाई जाती है। मसूर शुष्क वातावरण में भी पनप जाती है इसलिए देश के हर क्षेत्र में, हर मौसम में आसानी से उगाई जाती है। भारत, तुर्की, कनाडा, चीन और सीरिया मसूर के मुख्य उत्पादक देश हैं।

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