पेरीकार्डियल इफ्यूजन एक ऐसी बीमारी है, जिसमें दिल के चारों तरफ पानी भर जाता है। पंप के रूप में काम करने वाला दिल हमारे शरीर का बेहद महत्वपूर्ण अंग है। पूरे शरीर से खून इसके दाएँ हिस्से में आता है, जिसे पंप करके यह फेफड़ों में भेजता है। फेफड़ों में पहुँचने पर इसमें मिश्रित कार्बनडाइऑक्साइड निकल जाती है व फेफड़ों में आई ऑक्सीजन इसमें घुल जाती है। यह खून वापिस दिल के बायें हिस्से में आता है। फिर यहाँ से पंप करके इसे पूरे शरीर में भेजा जाता है। यह प्रक्रिया जीवनभर सतत चलती रहती है।
दिल के चारों तरफ एक पतली झिल्ली नुमा आवरण होता है, जिसे पेरीकार्डियम कहते हैं। इसका काम होता है हृदय की उसके आसपास मौजूद अन्य अंगों से रक्षा करना। पेरीकार्डियम और हृदय के बीच १०-१५ मिलीलीटर पानी भरा रहता है, लेकिन अगर यहाँ इससे कहीं अधिक मात्रा में पानी भर जाए तो इस स्थिति को पेरीकार्डियल इफ्यूजन कहते हैं। इस बीमारी के तहत पानी इकठ्ठा होने की जो प्रक्रिया है, वो धीरे-धीरे होने पर तो हृदय सुचारू रूप से काम कर लेता है, लेकिन अचानक ही बहुत ज़्यादा मात्रा में पानी भर जाए तो फिर हृदय ठीक से काम नहीं कर पाता। कुछ बीमारियाँ होती हैं, जिनमें हृदय में पानी भर जाने की संभावना बनी रहती है जैसे टी.बी. वायरल बुखार, कैंसर, चोट लगना, रुमेटिक फीवर, खून बहने की बीमारी आदि। ऐसी स्थिति में हृदय के चारों तरफ दबाव होता है, जिसके कारण हृदय के अंदर खून आने में परेशानी होती है। इसके अलावा हृदय पूरी तरह फैल भी नहीं पाता, अतः इसे खून पंप करने में मुश्किल होती है। पेरीकार्डियल इफ्यूजन की स्थिति अचानक बन जाने पर न तो हृदय में खून आ सकता है और न ही यह रक्त पंप करके बाहर भेज सकता है। ऐसी स्थिति को कार्डियक टेंपोनॉड कहते हैं, जो कि एक मेडिकल इमरजेंसी होती है।
इसमें मरीज़ की साँस भरने लगती है, बेचैनी होती है, दिल की धड़कन तेज़ हो जाती हैं, गले की नसें फूल जाती हैं व पैरों में सूजन आ जाती है। बाद में लिवर भी सूज जाता है और पेट में पानी भरने लगता है। कार्डियक टेंपोनॉड का निदान होना अत्यंत ज़रुरी है, नहीं तो मरीज़ की जान को खतरा रहता है। ऐसे में ई.सी.जी. व एक्स-रे जैसी सामान्य जाँचों के अलावा सबसे महत्वपूर्ण होती है ईको की जाँच। इससे तुरंत पता चल जाता है कि हृदय के चारों ओर पानी भरा है व यह कितनी मात्रा में है। इसके उपचार का सबसे कारगर तरीका है हृदय के आसपास जमे अतिरिक्त पानी को बाहर निकालना। छाती के बीचोंबीच निचले हिस्से में यानी पेट के ऊपरी हिस्से से ई.सी.जी. मशीन व ईको की सहायता से एक सुई डाली जाती है और पानी बाहर निकाल लिया जाता है। इस पानी की जाँच करके पानी भरने की वजह का पता लगाया जाता है। मरीज़ को कुछ दिनों के लिए ऑबज़रवेशन में रखा जाता है तथा नियमित जाँच की जाती है।
चूँकि यह एक मेडिकल इमरजेंसी होती है, अतः शंका होने पर जाँच के द्वारा तुरंत ही इसका निदान किया जाना चाहिए। देर होने से मरीज़ की जान को खतरा रहता है। यदि पानी वहीं पर भरा रहे और पूरी तरह न सूख पाए तो पेरीकार्डियम कालांतर में सख्त हो जाता है व सिकुड़ जाता है। ऐसा होने पर हृदय न तो ठीक से फैल सकता है और न ही पंपिंग कर सकता है। यह स्थिति दवाओं से ठीक नहीं की जा सकती तथा धीरे-धीरे मरीज़ की तबियत बिगड़ती ही जाती है। साँस भरना, पैरों में सूजन आना व थकान बनी रहने जैसी समस्या मरीज़ की दिनचर्या का हिस्सा बन जाती हैं। इसे कांस्ट्रिक्टिव पेरीकार्डायटिस कहते हैं। हृदय के चारों तरफ की सख्त पड़ चुकी झिल्ली को काटकर इसका उपचार किया जाता है(डॉ. मनीष वंदिष्टे,सेहत,नई दुनिया,अगस्त द्वितीयांक 2011)।
bahut achchi jankari hai ye...
जवाब देंहटाएंupyogi jaankari hetu abhaar...
जवाब देंहटाएंसच में इसके बारे में तो हमें पता ही नहीं था?
जवाब देंहटाएंहमें अपने परिवेश को साफ़ रखने की जिम्मेदारी निभानी ही चाहिए..... बहुत अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएं30% pumping at a time so best salution
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