बुधवार, 10 अगस्त 2011

अंडमान-निकोबार की आदिवासी दवाओं के पेटेंट की तैयारी

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले दुर्लभ आदिवासियों के संरक्षण के साथ-साथ उनके पारंपरिक ज्ञान और तौर-तरीकों को सहेज कर रखना बहुत जरूरी है। इन द्वीप समूहों की जैव-विविधता दुनिया में सबसे अनूठी है। यहां सैकड़ों किस्म की जड़ी-बूटियां और औषधि गुण वाले पेड़-पौधे पाए जाते हैं। यहां के आदिवासियों ने इन जड़ी-बूटियों के मिश्रण से कई तरह की दवाएं विकसित की हैं और वे सैकड़ों वर्षों से विभिन्न रोगों के उपचार के लिए इन दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। आदिवासियों की इन पारंपरिक चिकित्सा विधियों की तरफ अब सरकार का भी ध्यान गया है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने इन अनोखी चिकित्सा विधियों के पेटेंट हासिल करने की योजना बनाई है। परिषद के क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान ने अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के आदिवासियों के लिए एक "सामुदायिक जैव विविधता रजिस्टर" बनाने का काम शुरू किया है। इसमें पारंपरिक उपचार विधियों का ब्यौरा दर्ज किया जाएगा। रजिस्टर में यह रिकॉर्ड रखा जाएगा कि जड़ी-बूटियों के स्थानीय नाम क्या हैं। जड़ी-बूटियों के मिश्रण से दवाएं किस तरह तैयार की जाती हैं और कितने लोगों का इन विधियों से सफल इलाज किया गया। भारतीय वैज्ञानिकों के एक दल ने हाल ही में कार निकोबार द्वीप के ११ गांवों का दौरा किया था, जहां आदिम निकोबारी आदिवासी रहते हैं। वैज्ञानिकों ने यहां आदिवासियों द्वारा प्रयोग में लाई जा रही १२४ प्रकार की जड़ी-बूटियों का ब्यौरा एकत्र किया। आदिवासी इनका इस्तेमाल ३४ बीमारियों के इलाज के लिए करते हैं। उदाहरण के तौर पर आदिवासियों द्वारा पेट दर्द, जोड़ों के दर्द और फ्रैक्चर के इलाज के लिए विकसित दवाएं बहुत ही कारगर पाई गई हैं। वैज्ञानिकों ने ४२ ऐसे लोगों अथवा ओझाओं के भी इंटरव्यू लिए, जो इन दवाओं से मरीजों का इलाज करते हैं। वैज्ञानिक विभिन्न बीमारियों के इलाज में प्रयुक्तकिए जाने वाले पौधों को संग्रहीत भी कर रहे हैं। उन्होंने अनुसंधान करने के लिए इनका बगीचा भी लगाया है। आदिवासियों की चिकित्सा विधियों का रिकॉर्ड तैयार करने के लिए सभी आदिवासी समूहों तक पहुंचना जरूरी होगा। आदिवासियों द्वारा तैयार की जाने वाली ज्यादातर दवाएं पेड़-पौधों के विभिन्न हिस्सों का मिश्रण होती हैं। हर बीमारी के लिए दवा अलग होती है और इनके प्रयोग की अवधि भी हर बीमारी में अलग-अलग होती है। वैज्ञानिकों को हर चीज को बारीकी से नोट करना पड़ेगा और खुद अनुसंधान करके यह बताना पड़ेगा कि ये पारंपरिक औषधियां कारगर क्यों होती हैं। पूरा विवरण तैयार होने और वैज्ञानिक पुष्टि के बाद ही चिकित्सा अनुसंधान परिषद इन दवाओं के पेटेंट के लिए आवेदन करेगी(मुकुल व्यास,नई दुनिया,10.8.11)।

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