समाजचिंतक इस बात को लेकर बेहद चिंतित है कि न्यायालय के आदेशों के बावजूद देश के हर कोने में सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध नियमों का उल्लंघन हो रहा है। उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार, सार्वजनिक स्थल जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, अस्पताल और कोई भी सार्वजनिक जगह पर धूम्रपान नहीं किया जाएगा। ऐसा करने वाले के खिलाफ न केवल कानूनी कार्रवाई की जाएगी बल्कि उसे सजा के रूप में जुर्माना व जेल का भी प्रावधान है। लेकिन इस आदेश पर अमल करवाने में प्रशासन पूरी तरह नाकाम सिद्ध हुआ है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान की ओर से देश के २९ राज्यों में किए गए वैश्विक वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण २००९-१० की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत के एक तिहाई वयस्क यानी २७.५ करोड़ की आबादी तंबाकू की लत की गिरफ्त में है। रिपोर्ट कहती है कि इनमें से ६.९ करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं।
विश्वभर में धूम्रपान करने वालों में से १२ फीसदी भारतीय हैं। ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं कि धूम्रपान करने के संदर्भ में अगर वैश्विक स्तर की बात की जाए तो भारतीय महिलाओं का स्थान तीसरे पायदान पर है। भारत में धूम्रपान करने वाली ६२ फीसदी महिलाओं की मृत्यु ३० से ४९ वर्ष की आयु में होने की आशंका व्यक्त की गई है। जबकि धूम्रपान नहीं करने वाली महिलाओं में इस आंकड़े का प्रतिशत महज ३८ है। "भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद" के अनुसार भारत में २५-६९ वर्ष आयु वर्ग के लगभग ६ लाख मनुष्य प्रतिवर्ष धूम्रपान के कारण मृत्यु का शिकार होते हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लैनसेट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक २००४ से अब तक १९२ देशों के आंकड़ों का अध्ययन करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि ४० प्रतिशत बच्चे और ३० प्रतिशत से अधिक धूम्रपान नहीं करने वाले पुरुष और महिलाएं सैकेंड हैंड या निष्क्रिय धूम्रपान के प्रभाव में आते हैं। धूम्रपान के घातक परिणामों को देखते हुए विश्वभर में धूम्रपान प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया पिछले कुछ दशकों के अनवरत जारी है। २००३ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के सभी सदस्य देशों ने पूरी दुनिया में तंबाकू निषेध के लिए सर्वसम्मति से फ्रेमवर्क कन्वेंशन (संधि) को स्वीकार किया।
इसके तहत एक छह सूत्रीय एम-पावर पैकेज की घोषणा की गई। इस एम-पावर पैकेज में वैश्विक और देशों के स्तर पर धूम्रपान और उसके दुष्प्रभावों के संबंध में प्रभावी निगरानी तंत्र विकसित करने, कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थलों में धूम्रपान करने वालों पर पाबंदी तो लगा दी है, पर यह कितनी कारगर सिद्ध हुई है वह जगजाहिर है। यह माना कि तंबाकू उद्योग से सरकार को भारी मात्रा में राजस्व मिलता है, परंतु देश की युवा पीढ़ी की कीमत पर आर्थिक मुनाफा क्या उचित है?(ऋतु सारस्वत,नई दुनिया,21.7.11)
ऋतु जी को अपनी जानकारी अपडेट करना चाहिये, जितना बीड़ी-सिगरेट - तम्बाकू से राजस्व मिलता है उससे अधिक इन बीमारियो के इलाज पर खर्च करना पड़ता है सरकार को.
जवाब देंहटाएंहम भी यदि लगता है की मना करना चाहिए तो किसी धुम्रपान करते व्यक्ति को मना कर देते है. लेकिन हर समय ऐसा नहीं हो पाता है. सार्थक लेख के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंइससे देश का नुकसान ही हो रहा है।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। चिताजनक है यह हालत।
जवाब देंहटाएं------
बेहतर लेखन की ‘अनवरत’ प्रस्तुति।
वैचारिक बहस: क्या अंधविश्वास गरीबी का रोग है?
जितना बीड़ी-सिगरेट - तम्बाकू से राजस्व मिलता है उससे अधिक इन बीमारियो के इलाज पर खर्च करना पड़ता है सरकार को
जवाब देंहटाएंशत-प्रतिशत सत्य
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
चौंकाने वाले तथ्य ... लगता है अपना देश हर बुराई में सबसे आगे होने वाला है ...
जवाब देंहटाएं