मंगलवार, 7 जून 2011

योग से जुड़ी ग़लतफ़हमियां

इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए कि योग इस वक्त दुनिया की सबसे लोकप्रिय व्यायाम पद्धति है। भारत में योग हमेशा से लोकप्रिय था, लेकिन इन दिनों जीवनशैली से जुड़े रोगों के माहौल में उसकी लोकप्रियता कई गुना बढ़ गई है। इसका उदाहरण देखने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है, टीवी खोलिए और बाबा रामदेव के समर्थकों को देखिए। बाबा रामदेव का योग को नए सिरे से लोकप्रिय बनाने में बड़ा योगदान है और उन्हें यह श्रेय तो देना ही होगा कि उन्होंने भारत में और भारत के बाहर काफी लोगों की जीवनशैली को स्वास्थ्य के नजरिये से बेहतर बनाया। भ्रष्टाचार का वह क्या बिगाड़ पाते हैं यह तो आगे चलकर देखा जाएगा। योग की लोकप्रियता ने योग के कई नए-नए रूप भी तैयार किए हैं, जिनमें से ज्यादातर मार्केटिंग के नुस्खे ज्यादा लगते हैं। पॉवर योग, पाइलट्स योग वगैरा योग और कुछ दूसरी व्यायाम पद्धतियों को मिलाकर बनाए गए हैं।

अमेरिका के एक सज्जन बिक्रम चौधरी ने अपने ही नाम से एक ‘बिक्रम योग’ शुरू किया है। चौधरी का दावा है कि उन्होंने बड़े-बड़े फिल्मी सितारों, नेताओं वगैरा को योग सिखाया है। अमेरिका में योग के आसनों को पेटेंट करवाने की भी कोशिश कुछ लोगों ने की, जिसका काफी विरोध हुआ। योग की लोकप्रियता की वजह यह है कि यह ऐसी व्यायाम पद्धति है, जो आधुनिक जीवनशैली की कई स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में काफी हद तक मददगार है। दूसरे, योग का सिद्धांत यह है कि इसे शरीर को बिना कष्ट दिए किया जाना चाहिए, इसलिए इसे वे लोग भी कर सकते हैं, जो दूसरे व्यायाम नहीं कर सकते। हालांकि कुछ लोग अति उत्साह में कुछ ज्यादा कठिन आसन करके चोट खा चुके हैं और कुछ हृदय रोगियों को भस्त्रिका या कपालभाति जैसे प्राणायाम करने से लेने के देने पड़ गए हैं। इतनी लोकप्रियता के बावजूद योग को लेकर कई गलतफहमियां हैं।

पहला भ्रम योगासनों और योग दर्शन को लेकर है, लोग इन्हें एक ही समझते हैं। दरअसल योगदर्शन भारतीय षड् दर्शनों में से एक दर्शन है और इसका उद्देश्य मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति और ईश्वर से एकत्व की प्राप्ति है। योग को सामान्यत: सांख्य दर्शन के साथ जोड़कर देखा जाता है, जिसके आचार्य कपिल मुनि थे। योग का आधार महर्षि पतंजलि के योग सूत्र हैं। आसन, योग के आठ अंगों में से एक है, और वह भी बहुत महत्वपूर्ण अंग नहीं है। योग सूत्र में भी आसनों का महत्व यही माना गया है कि चूंकि आध्यात्मिक साधना के लिए शरीर का स्वस्थ होना जरूरी है, इसलिए आसन करने चाहिए। जितने सारे योगासन आज प्रचलित हैं, वे धीरे-धीरे और बाद में विकसित हुए हैं, योग सूत्रों में उनका जिक्र नहीं है। दसवीं शताब्दी के महान तत्ववेत्ता अभिनवगुप्त तो यम, नियम और आसन को योग का अंग ही नहीं मानते। उनका मानना है कि योग दर्शन का संबंध मन से है और ये तीनों शरीर से संबंधित हैं। इनकी जगह वे सत् तर्क यानी सही चिंतन को योग में शामिल करते हैं। प्राणायाम का महत्व अलबत्ता वह स्वीकार करते हैं। हठयोग कुछ अलग और विशिष्ट साधना है, जिसका संबंध नाथपंथियों से है। इसके बावजूद यह मानना होगा कि भले ही बाद का विकास हो, लेकिन योगासनों की पद्धति एक असाधारण और विशिष्ट पद्धति है और वह शरीर के ऐसे विकारों को दूर करने में सहायक होती है, जिनमें दूसरी व्यायाम पद्धतियां कारगर नहीं होतीं। लेकिन योग किसी अनुभवी और योग्य शिक्षक की देखरेख में किया जाना चाहिए, और बहुत ऊंचे-ऊंचे दावों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। योग पर काफी शोध हुआ है और हो रहा है, उससे यह साबित होता है कि योग वाकई बहुत उपयोगी है, बशर्ते उसे समझदारी, अनुशासन और पाबंदी से किया जाए(संपादकीय,हिंदुस्तान,6.6.11)।

6 टिप्‍पणियां:

  1. योग नहीं योगा कहिये आज कल इसी नाम से इसे ज्यादा जाना जाता है | विक्रम जी के योग संस्थान पर एक बार अमेरिकी सरकार ने बैन लगाने का प्रयास किया कहना था की वहा पर काफी कड़ा अभ्यास कराया जाता है और वहा काफी गर्मी होती है जो लोगो के लिए ठीक नहीं है | एक बार गायत्री समाज के लोगो ने भी रामदेव जी के योग सिखाने के तरीके का विरोध किया था उनका कहना था योग करते समय सास लेने और छोड़ने का भी नियम है जो भीड़ में सिखाना संभव नहीं है और बिना इसके योग करने का कोई फायदा नहीं है |

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  2. बेनामीजून 07, 2011

    योग वाकई बहुत उपयोगी है, बशर्ते उसे समझदारी, अनुशासन और पाबंदी से किया जाए

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  3. हमारे देश में लोगों ने योग को एक दुर्लभ चीज बना दिया था जिसे रामदेव जी ने घर घर तक पहुंचा दिया....

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  4. यक़ीनन योग को नए सिरे से पहचान रामदेव जी ही दी है...... और सही ढंग से किया जाये तो अनगिनत शारीरिक और मानसिक व्यधियों का हल है यह ........

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  5. Kapil sibbal aur Soniya Gandhi ko Bhi YOG shivir main aana chachiye....

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