बुधवार, 11 मई 2011

होमियोपैथी को बनाएँ करिअर

विभिन्न रोगों के इलाज के लिए एलोपैथी के अलावा होमियोपैथी का भी हमारे देश में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। कई ऐसे रोग हैं, जिनमें होमियोपैथी को कहीं ज्यादा असरकारक माना जाता है। फ्लू, वायरस, कफ , सर्दी आदि के अलावा यह पद्धति विभिन्न जटिल एवं असाध्य रोगों, जैसे अर्थराइटिस, दमा आदि में भी प्रभावी ढंग से कारगर है। सबसे खास बात यह है कि इसकी दवाओं में कोई साइड इफेक्ट नहीं होता और न ही शारीरिक ऊर्जा का स्तर प्रभावित होता है। इसका उपचार भले ही कुछ महीनों या वर्षों तक चलता है, पर इलाज स्थायी होता है।

भारत में होमियोपैथी का चलन
होमियोपैथी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक वर्ड ‘होमियो’ और ‘पैथोज’ से मिलकर हुई है। इस पद्धति का प्रयोग सबसे पहले 18वीं शताब्दी में डॉ. सी.एफ. सैम्युएल हैनीमैन द्वारा किया गया था, लेकिन धीरे-धीरे यह भारतीयों के लिए भी उपचार पद्धति का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया। होमियोपैथी की बढ़ती जरूरत को देखते हुए ही धीरे-धीरे इस फील्ड से संबंधित संस्थान खुलने लगे और विभिन्न पाठ्यक्रमों की शुरुआत हुई।

कोर्स एवं संबंधित योग्यता
आज इस फील्ड में कई अंडरग्रेजुएट एवं पोस्टग्रेजुएट लेवल के कोर्स उपलब्ध हैं। इसके बैचलर एवं मास्टर लेवल के कोर्सेज की सबसे अधिक डिमांड है। जो छात्र 12वीं फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी और अंगरेजी से उत्तीर्ण हों, वे बैचलर ऑफ होमियोपैथिक मेडिसिन एंड सर्जरी (बीएचएमएस) में प्रवेश पा सकते हैं। दाखिले का आधार प्रवेश परीक्षा है, जोऑल इंडिया एवं स्टेट दोनों ही लेवल पर आयोजित की जाती है। सेंट्रल काउंसिल ऑफ होमियोपैथी के दिशानिर्देशों के अनुसार ही अभ्यर्थियों को होमियोपैथी की शिक्षा प्रदान की जाती है।

इंस्टीट्यूट का चयन अहम
छात्रों को कॉलेज अथवा इंस्टीट्यूट के चयन में विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है, क्योंकि इसमें जरा सी लापरवाही से पैसा व समय दोनों बर्बाद होता है। चयन करते समय संस्थान एवं उसकी मान्यता, फैकल्टी मेंबर एवं उनकी योग्यता, इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि के बारे में पूरी जानकारी लेना जरूरी हो जाता है।

किस रूप में मिलेंगी संभावनाएं
होमियोपैथी में ग्रेजुएट छात्र प्राइवेट व सरकारी दोनों ही क्षेत्रों में रोजगार पा सकते हैं। कोर्स के पश्चात उन्हें प्राइवेट या सरकारी अस्पतालों, क्लीनिक, चैरिटेबल इंस्टीट्यूट, एनजीओ, रिसर्च इंस्टीट्यूट, मेडिकल कॉलेज, ट्रेनिंग सेंटर आदि में बतौर डॉक्टर, रिसर्चर, मेडिकल ऑफिसर, एडमिनिस्ट्रेटर, टीचर आदि के रूप में सेवा करने का अवसर मिलता है। अनुभव हो जाने के बाद अपना खुद का क्लीनिक खोलकर प्राइवेट प्रैक्टिस भी कर सकते हैं। एमडी करने के पश्चात किसी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने का अवसर मिलता है।

मुख्य संस्थान
-नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ होमियोपैथी, कोलकाता
-डॉ. बी.आर. सुर होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हास्पिटल, नई दिल्ली
-स्टेट नेशनल होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, लखनऊ
-पं. जवाहर लाल नेहरू स्टेट होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, कानपुर
-श्री गुरुनानक देव होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज, लुधियाना
-अहमदाबाद होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज, अहमदाबाद
-आनंद होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, आनंद
-यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस, विजयवाड़ा
-राजीव गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस, बेंगलुरु
-वसुंधरा राजे होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, ग्वालियर
-स्वामी विवेकानंद होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज, भावनगर(नमिता सिंह,अमर उजाला,10.5.11)

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बहुत अच्छी जानकारी दी. मैंने Homoeopathy medicines को खुद अपने ऊपर जादू की तरह असर करते हुए देखा है.
    यह तरीका ए इलाज हिन्दुस्तान में प्राय: गुरु शिष्य परम्परा से फैला है . जिन लोगों ने इंस्टीच्यूट से यह पैथी नहीं सीखी है , उनकी तादाद बहुत ज़्यादा है और वे भी अच्छी सेवाएँ दे रहे हैं . हरेक आमदनी वाला आदमी इस पैथी से इलाज करा सकता है .

    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/solution.html

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  2. अच्छी जानकारी । चिकित्सा में अच्छा विकल्प है ।

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  3. ब्रिटेन मे इसे बस झड फूंक से ज्यादा कुछ नहीं बताया गया है

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  4. जानकारी बढ़िया है, एक और महत्वपूर्ण कॉलेज है - शासकीय स्वशासी होम्योपैथिक चिकित्सा महाविद्यालय, भोपाल, म०प्र०

    दर्शन लाल बवेजा जी, याद दिला रहे हैं कि हमने ब्रिटेन की मानसिक गुलामी छोड़ी नहीं है।

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