इस आठ साल के बच्चे की दोनों आँखें लगभग दो साल से लाल बनी रहती थीं। इस बच्चे को गर्मियों में सामान्य खुजली से यह समस्या शुरु हुई थी। पालकों को लगा कि गर्मियों में तापमान बढ़ने के कारण ऐसा हुआ होगा। कुछ समय बीतने के साथ ही ललाई काफी बढ़ गई। पालकों ने बच्चे को दिन में कई बार ठंडे पानी से आँखे धोने के लिए कहा। इससे ३-४ दिनों तक तो आराम मिला लेकिन बाद में समस्या पहले जैसी हो गई। पारिवारिक चिकित्सक को दिखाने पर उसने एंटी एलर्जिक आई ड्राप डालने की सलाह दी। इससे बच्चे को तुरंत आराम मिल गया। कुछ अर्से तक ठीक रहने के बाद बच्चे की आँखों में पुनः उसी तरह का विकार पैदा हो गया। पालकों ने एंटीएलर्जिक आई ड्राप फिर शुरु कर दिए। इस तरह कई महीनों तक यही सिलसिला चलता रहा लेकिन आँख की समस्या जैसी थी वैसी ही बनी रही । अब यह होता था कि ड्राप डालने पर लाली गायब हो जाती थी और बंद करने पर पुनः हो जाती थी। कुछ अर्से बाद ड्राप का असर भी बंद हो गया और मरीज की तकलीफ लगातार बनी रहने लगी। फीजिशियन से सलाह लेने पर उसने ड्राप बदलकर डालने के लिए कहा। नए ड्राप से कुछ समय तक आराम बना रहा लेकिन बहुत देर तक नहीं। अब लाली के साथ खुजली की तीव्रता भी बढ़ गई थी। मरीज को रात दिन किसी तरह चैन नहीं मिलता था। उसकी पढ़ाई लिखाई पीछे छूटती जा रही थी। उसकी परेशानी पर पूरा परिवार व्यथित था। अब मरीज की खुजली बढ़ने के साथ ही आँख से मवाद भी आने लगा था। पालकों ने नेत्ररोग विशेषज्ञों को दिखाने का फैसला किया। नेत्ररोग विशेषज्ञ ने बताया कि मरीज को आँखों में एलर्जी हुई है। इसके लिए अधिक शक्ति की एंटी एलर्जिक दवाएँ लेने के लिए कहा गया। अधिक ताकतवर ड्राप डालने पर मरीज को आराम मिलने लगा। कुछ समय तक सब कुछ ठीक चलता रहा। एक दिन मरीज धूप में खेलने चला गया। वापस लौट कर आया और पालकों ने देखा कि उसकी आँखों की समस्या फिर खड़ी हो चुकी थी। पालकों ने पुनः नेत्ररोग विशेषज्ञ द्वारा सुझाई अधिक ताकत की एंटी एलर्जिक ड्राप डाले। इससे कुछ आराम तो मिला और रात जैसे तैसे कट गई। सुबह उठा तो मरीज की आँखें सूज गईं थीं। आँखों में अब सूर्य का प्रकाश चुभने लगा था। कमरे में बिजती की तेज रोशनी भी अब उसे तकलीफ देने लगी थी। पालकों ने एक के बाद एक कई नेत्ररोग विशेषज्ञों को दिखाया और उनकी सलाहों पर कई तरह के एंटी एलर्जिक ड्राप्स आँखों में डाले। इन सब तरीकों से मरीज को बहुत लाभ नहीं मिला। दिनों दिन बच्चे की पढ़ाई पिछड़ती जा रही थी। उसमें एक अजीब किस्म का चिढ़-चिडापन तारी होने लगा था। बच्चे की बढ़ती परेशानियों के मद्देनजर पालकों ने होम्योपैथिक इलाज भी कराने का मन बना लिया।
बच्चे का केस हाथ में लेने से पहले पालकों से बच्चे का हाल जान लिया। इसके बाद बच्चे से बात की। बातों में मालूम हुआ कि २ साल पहले बच्चे को सिर में रूसी (डेंड्रफ) हुई थी जिसका इलाज कराया गया था। डेंड्रफ तो दब गया लेकिन उसके स्थान पर नई समस्या ने सिर उठा लिया था। लक्षणों के आधार पर हमने ५० मिलिसिमम "सल्फर" से इलाज शुरु किया। ५ महीनों तक मरीज को यही दवा पोटेंसी बढ़ाकर दी जाती रही। कम पोटेंसी से चल रहे इलाज के दौरान उसे कभी समस्या भी आती थी जिनकी तीव्रता काभी कम होती थी। इलाज के अंतिम तीन महीनों में उसे कोई अटैक नहीं आया। इस तरह यह मरीज ठीक होकर घर पहुंच गया(डॉ. कैलाश चंद्र दीक्षित,सेहत,नई दुनिया,अप्रैल 2011 पंचमांक)।
बच्चे का केस हाथ में लेने से पहले पालकों से बच्चे का हाल जान लिया। इसके बाद बच्चे से बात की। बातों में मालूम हुआ कि २ साल पहले बच्चे को सिर में रूसी (डेंड्रफ) हुई थी जिसका इलाज कराया गया था। डेंड्रफ तो दब गया लेकिन उसके स्थान पर नई समस्या ने सिर उठा लिया था। लक्षणों के आधार पर हमने ५० मिलिसिमम "सल्फर" से इलाज शुरु किया। ५ महीनों तक मरीज को यही दवा पोटेंसी बढ़ाकर दी जाती रही। कम पोटेंसी से चल रहे इलाज के दौरान उसे कभी समस्या भी आती थी जिनकी तीव्रता काभी कम होती थी। इलाज के अंतिम तीन महीनों में उसे कोई अटैक नहीं आया। इस तरह यह मरीज ठीक होकर घर पहुंच गया(डॉ. कैलाश चंद्र दीक्षित,सेहत,नई दुनिया,अप्रैल 2011 पंचमांक)।
बहुत बढ़िया रहा..
जवाब देंहटाएंमेरी नातिम को यही तकलीफ है दिल्ली मे उसे कहाँ दिखायें। अच्छी जानकारी है धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआंखों, दृष्टि को पुष्ट करने वाले घरेलू उपचार कौन-कौन से हैं? किन आम खाद्य पदार्थो या तरल का सेवन करने से नेत्र ज्योतिवर्धन लाभ होते हैं?
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