रख कर सोचते हैं कि स्कूल में आधी छुट्टी के समय उनका लाड़ला या लाड़ली शरीर के लिए जरूरी न्यूट्रीशन से भरपूर नाश्ता और लंच कर लेगा, उन्हें तुरंत सावधान हो जाना चाहिए। शहरों के निजी स्कूलों की कैंटीन में धड़ल्ले से बर्गर, पिज्जा, चिप्स व समोसे जैसा जंक फूड बिक रहा है।
छोटी उम्र में मोटापा, ब्लड प्रेशर, ह्दय रोग
यह तथ्य उद्योग संगठन एसोचैम के अध्ययन में सामने आया है। बच्चे अपनी पाकेट मनी से प्रतिमाह न केवल औसतन एक हजार रुपये तक इन पर खर्च करते है और छोटी उम्र में मोटापा, ब्लड प्रेशर, ह्दय रोग, डायबिटीज समेत कई बीमारियां को न्योता दे रहे हैं। प्रमुख उद्योग संगठन एसोसिएशन ऑफ चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एसोचैम) ने बच्चों की खान-पान की आदतों के बारे में अभिभावकों को आगाह करते हुए कहा है कि जंक फूड ऐसी बीमारियों की चपेट में आने की पहला कदम है। संगठन ने इस गंभीर मामले पर हाल में ही दिल्ली व एनसीआर के कुछ निजी स्कूलों पर एक अध्ययन कराया।
विद्यालय प्रशासन को भी सचेत होने की जरूरत
जिसके मुताबिक एक माह में 56 फीसदी छात्र 800 से एक हजार रुपये तक स्कूलों की कैंटीन में खर्च करते हैं। गंगा राम हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ. बी के राव का कहना है कि स्कूलों में बिकने वाले स्नैक्स और कोल्ड ड्रिंक्स स्वास्थ्य मानकों के अनुरूप होना जरूरी है जो बच्चों के स्वास्थ्य विकास में कारगर हों। उन्होंने कहा कि अभिभावकों के अलावा विद्यालय प्रशासन को भी इस बारे में सचेत होने की जरूरत है, ताकि वे जंक फूड की जगह स्वास्थ्य के लिए अच्छा खान-पान ही अपनी कैंटीन में परोसे। सर्वे में यह भी पाया गया कि जिन बच्चों के अभिभावक घर में कम खाना बनाते हैं उनके बच्चों में कैंटीन में खाने की आदत सर्वाधिक है(अमर उजाला,25.4.11)।
very true ....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...
जवाब देंहटाएंकईं बार ये कैंटीन स्कूल मालिक या उसके किसी रिश्तेदार की होती है
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