अब राजधानी में सस्ता इलाज धीरे-धीरे लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है। कहीं यूजर चार्ज के बहाने तो कहीं पैकेज चार्ज के नाम पर इलाज को महंगा किया जा रहा है। राम मनोहर लोहिया अस्पताल में सेरम इंसुलिन (मधुमेह), डीएचईए (इनफर्टिलिटी), पीटीएच (थॉयराइड) और वीआईटीडी-3 (शरीर में विटामिन डी की मात्रा) की जांच की कीमतों में वृद्धि कर दी गई है।
इसी तरह, एम्स में भी निर्जी वार्ड में पैकेज चार्ज लागू करने के लिए प्रशासन कई बार बैठक बुलाकर मंत्रणा कर चुका है और वरिष्ठ डॉक्टरों के विरोध के बावजूद इसे लागू करने की तैयारी की जा रही है। गौरतलब है कि पूरी दिल्ली में गरीबों के पास उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने के लिए इन दोनों अस्पतालों के अलावा कोई खास विकल्प भी नहीं है।
चिंता कि बात यह है कि दोनों अस्पताल केंद्र सरकार के अधीन हैं, इसके बावजूद मरीजों को राहत देने की जगह उनको इलाज से भी वंचित किया जा रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक आला अधिकारी का तो साफ कहना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र का व्यवसायीकरण करना स्वास्थ्य मंत्रालय के एजेंडे में शामिल है।
आरएमएल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. टीएस सिद्धू कहते हैं कि बीते 25 वर्षो में किसी भी जांच या स्वास्थ्य सुविधा की कीमत में वृद्धि नहीं की गई है। ऐसे में कुछ स्वास्थ्य सुविधाओं के दरों में बढ़ोतरी गलत नहीं कही जा सकती है। वह आगे कहते हैं कि जिन जांचों की कीमतों में वृद्धि की गई है, वे केवल निजी वार्डो में ही लागू है। इसके साथ ही वह यह दावा करने से भी नहीं चूकते हैं कि दरों में वृद्धि के बावजूद आरएमएल में अभी भी एम्स से सस्ता इलाज उपलब्ध है। बताते चलें कि दरों में वृद्धि के लिए आरएमएल प्रशासन द्वारा जारी सर्कुलर की कॉपी दैनिक भास्कर के पास उपलब्ध है। दूसरी ओर, निजी अस्पतालों की तर्ज पर एम्स में भी इलाज का पैकेज सिस्टम लागू करने की योजना है।
इसके तहत मरीजों को अस्पताल, इलाज, बिस्तर, जांच समेत तमाम सेवाओं का शुल्क एक साथ जमा करना होगा। पैकेज प्रणाली में तमाम ऐसी जांच या इलाज प्रक्रिया शामिल होगी, जिनकी अमूमन सभी मरीजों को जरूरत ही नहीं पड़ती है। इसके बावजूद सभी मरीजों को पैकेज चार्ज के नाम पूरा पैसा इलाज से पहले ही जमा करना होगा।
गौर करने वाली बात यह है कि कमरों व बिस्तरों के शुल्क के तौर पर संस्थान को सालाना 37 करोड़ रुपए की आमदनी होती है। इसके अलावा, जांच सेवाओं के शुल्क के तौर पर 10 करोड़ रुपए की आय होती है। जबकि हकीकत यह है कि अस्पताल को चलाने के लिए महज 25 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। दूसरी ओर केंद्र सरकार से इस वर्ष के बजट में एक हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि प्राप्त हुई है(धनंजय कुमार,दैनिक भास्कर,दिल्ली,25.4.11)।
इसके तहत मरीजों को अस्पताल, इलाज, बिस्तर, जांच समेत तमाम सेवाओं का शुल्क एक साथ जमा करना होगा। पैकेज प्रणाली में तमाम ऐसी जांच या इलाज प्रक्रिया शामिल होगी, जिनकी अमूमन सभी मरीजों को जरूरत ही नहीं पड़ती है। इसके बावजूद सभी मरीजों को पैकेज चार्ज के नाम पूरा पैसा इलाज से पहले ही जमा करना होगा।
गौर करने वाली बात यह है कि कमरों व बिस्तरों के शुल्क के तौर पर संस्थान को सालाना 37 करोड़ रुपए की आमदनी होती है। इसके अलावा, जांच सेवाओं के शुल्क के तौर पर 10 करोड़ रुपए की आय होती है। जबकि हकीकत यह है कि अस्पताल को चलाने के लिए महज 25 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। दूसरी ओर केंद्र सरकार से इस वर्ष के बजट में एक हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि प्राप्त हुई है(धनंजय कुमार,दैनिक भास्कर,दिल्ली,25.4.11)।
उपचार नाम की लूट है...
जवाब देंहटाएंकेवल आदमी की जान ही सस्ती रह गयी है। आभार इस जानकारी के लिये।
जवाब देंहटाएंआर एम् एल में प्राइवेट वार्ड है , जिसे नर्सिंग होम कहते हैं । यहाँ पेमेंट बेसिस पर इलाज होता है । ज़ाहिर है , यह सुविधा पैसे वालों के लिए है । जनरल वार्ड में गरीबों या आम जनता के लिए सभी सुविधाएँ मुफ्त होती हैं ।
जवाब देंहटाएंआखिर इसमें गलत क्या है ?