मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

शराब और लिवर सिरोसिस

महानगरों की बिगड़ती जीवनशैली, जंक फूड पर निर्भरता, तनावभरी जिंदगी और प्रतिस्पर्द्घा नई-नई बीमारियों को बढ़ा रही है। लोगों ने शराब के सेवन को अपने जीवनशैली का हिस्सा बना लिया है। अधिक शराब का सेवन हर तरह से खतरनाक है। इससे लिवर सिरोसिस (जिगर का सिकुड़ना) जैसी जानलेवा बीमारी के शिकार होने की आशंका रहती है। विदेशी सर्वेक्षणों का सहारा लेकर कई डॉक्टर यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि प्रतिदिन ६० एमएल शराब का सेवन किया जा सकता है, लेकिन भारतीय परिस्थितियों में यह अत्यंत हानिकारक है। यहाँ सप्ताह में एक या दो दिन से अधिक शराब का सेवन हानिकारक है। भारत पश्चिम की अपेक्षा अधिक गर्म देश है, इसलिए यहाँ कोशिश करनी चाहिए कि सप्ताह में ६० एमएल से अधिक शराब का सेवन न किया जाए।

शराब आदि के अधिक सेवन की वजह से जिगर क्षतिग्रस्त होने लगता है। बार-बार क्षतिग्रस्त होने के कारण जिगर में रेशा (फाइब्रोसिस) बनने लगता है जिससे जिगर सिकुड़ने लगता है। उसमें छोटी-बड़ी गाँठ पड़ जाती है। यह लिविर सिरोसिस है। यदि लिवर में सिर्फ सूजन आए, लेकिन रेशे में न बदले तो उस अवस्था को हेपेटाइटिस कहा जाता है। सिरोसिस के १५ से २० कारण हैं। परंतु शराब का लगातार सेवन, वायरल हेपेटाइटिस (विशेषकर हेपेटाइटिस बी व सी) नामक बीमारी और फैटी लिवर नामक बीमारी की वजह से लिवर सिरोसिस के मामले सामने आते हैं। पिछले एक दशक में फैटी लिवर के मामले तेशराब आदि के अधिक सेवन की वजह से जिगर क्षतिग्रस्त होने लगता है। बार-बार क्षतिग्रस्त होने के कारण जिगर में रेशा (फाइब्रोसिस) बनने लगता है जिससे जिगर सिकुड़ने लगता है। उसमें छोटी-बड़ी गाँठ पड़ जाती है। यह लिविर सिरोसिस है। यदि लिवर में सिर्फ सूजन आए, लेकिन रेशे में न बदले तो उस अवस्था को हेपेटाइटिस कहा जाता है। सिरोसिस के १५ से २० कारण हैं। परंतु शराब का लगातार सेवन, वायरल हेपेटाइटिस (विशेषकर हेपेटाइटिस बी व सी) नामक बीमारी और फैटी लिवर नामक बीमारी की वजह से लिवर सिरोसिस के मामले सामने आते हैं। पिछले एक दशक में फैटी लिवर के मामले तेजी से बढ़े हैं।

लिवर सिरोसिस बहुत खतरनाक व जानलेवा बीमारी है। इसका पता एक बार में नहीं चलता। माना जाता है कि पहली बार इस बीमारी का पता चलने के बाद अगले पाँच साल में अधिकांश मरीजों की मौत हो जाती है। यदि १०० लोग इस बीमारी के शिकार हैं तो ८० लोग पाँच साल के भीतर कभी भी मौत के मुँह में समा सकते हैं। लिवर सिरोसिस में तबीयत लगातार बिगड़ती चली जाती है, व्यक्ति सुस्त पड़ जाता है, किसी भी काम में वह जल्दी थक जाता है, सारा बदन टूटता रहता है, हड्डियों में तेज दर्द रहता है, जी मिचलाता रहता है, भूख नहीं लगती, वजन कम होता चला जाता है। इसमें लंबे समय तक हल्का बुखार (९९ डिसे) रहता है। यदि बुखार लगातार पाँच से छः महीने तक है तो तत्काल डॉक्टर से मिलने की जरूरत है।



लिवर विकार के लक्षणः
  • नियमित मद्यपान और खाली पेट मद्यपान
  • क्रोध,भय,तृष्णा और शोक से पीड़ित अवस्था
  • बहुत अधिक जल पीना तथा भूख से अधिक भोजन करना
  • ऊष्णता से त्रस्त रहने पर वेगों को रोकना
मरीज इन लक्षणों को लगातार नजरअंदाज करता चला जाता है। वह डॉक्टरों के पास तभी पहुँचता है, जब इस बीमारी की जटिलता उभरनी शुरू होती है। ज्यों-ज्यों बीमारी बढ़ती है मरीज में बेहोशी के लक्षण, पेट में पानी आना, पेट के पानी में सेप्टिक बनना(एसाइटिस),खून की उल्टी और काला पाखाना आने लगता है। यह स्थिति बेहद ख़तरनाक है। साधारण खून की जांच,लिवर फंक्शन टेस्ट और अल्ट्रासाउंड की जांच से लिवर सिरोसिस का पता चल जाता है।

उपचार
  • इलाज़ से परहेज हमेशा बेहतर उपचार है।
  • शराब का लगातार सेवन बहुत अधिक हानिकारक है।
शराब पिएं भी तो सप्ताह में 60 एमएल से अधिक नहीं।
हैपेटाइटिस-बी और सी से बचें।
फैटी लिवर से बचने के लिए मधुमेह और मोटापे पर नियंत्रण ज़रूरी है।
  • तला भोजन न करें।
  • कसरत नियमित रूप से करें।
  • सुबह-शाम तेज़ कदमों से टहलें।
आयुर्वेद में लिवर का उपचार
आयुर्वेद में लिवर (जिगर) के विकारों का संपूर्ण इलाज संभव है। लिवर हमारा खाना पचाने से लेकर बुनियादी प्रोटीन तक का निर्माण करता है। शरीर के मुख्य प्रोटीन एल्बिमिन का निर्माण यही करता है। वास्तव में लिवर का शरीर के लिए मुख्य रूप से पाँच कार्य होता है। पहला कार्य हमारे शरीर के खून को जमाने के लिए प्रोटीन का निर्माण करना है। यदि लिवर प्रोटीन का निर्माण न करे तो हमारा खून कभी जम ही न पाए। लिवर का दूसरा कार्य खाए हुए भोजन को शरीर के लिए ऊर्जा में परिवर्तित करना है। खाने से यदि ऊर्जा बने ही नहीं तो वह खाना हमारे लिए व्यर्थ है। लिवर का तीसरा कार्य शरीर के जहरीले पदार्थ के जहर को खत्म कर उसे शरीर के लिए उपयुक्त बनाना है। लिवर का चौथा कार्य शरीर के गंदे पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना है। यदि शरीर में विषैला व गंदा पदार्थ रह जाए तो शरीर जहरीला हो जाए। लिवर का पाँचवाँ कार्य पित्त का निर्माण और भोजन के वसा का पाचन है।
लिवर के इन कार्यों और उससे संबंधित बीमारी के आधार पर ही इलाज़ किया जाता है। आयुर्वेद में त्रिदोषों और धातुओं में विकार के आधार पर लिवर की बीमारी का पता चलता है। लिवर की बीमारी में वात-पित्त-कफ तीनों में दोष उत्पन्न हो जाता है। इसके अलावा,रस और रक्त में भी दोष आ जाता है जिससे लिवर अपना मुख्य कार्य करना बंद कर देता है। आयुर्वेद में त्रिदोषों का शमन करते हुए लिवर का इलाज़ किया जाता है।


आयुर्वेद से उपचार
  • शराब के परित्याग के लिए प्रेरित करना
  • जिस दोष(वात,पित्त अथवा कफ) की अधिकता है,पहले उसका उपचार किया जात है। तीनों दोषों में समता होने पर पहले कफ,फिर पित्त और आखिर में वात का इलाज़ किया जाता है।
  • अनुवासन और यापन वास्ति का प्रयोग तथा वातनाशक लैतभ्यंग और उबटन का प्रयोग। वातनाशक पौष्टिक पथ्य देना चाहिए।
  • यदि बल-मांसादि से क्षीण हो गई हो तो संशमन उपचार करें।
  • स्नेहन,स्वेदन,विरेचन कराएं। तत्पश्चात् शमन चिकित्सा करें।
(डॉ. कैलाश सिंघला और डॉ. आकाश परमार,सेहत,नई दुनिया,मार्च तृतीयांक,2011)

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