सामान्यतः बाल ४०-४५ वर्ष की आयु के आस-पास सफेद होना प्रारंभ होते हैं। सफेदी इस आयु से पहले आरंभ हो जाए तो उसे असमय की सफेदी कहा जाता है। आजकल छोटे बच्चों से लेकर युवाओं तक में यह समस्या बहुतायत में पाई जाती है। पहले यह समझना आवश्यक है कि इस समस्या का प्रधान कारण क्या है। इस समस्या के कारण को दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है-
-पोषक तत्वों के अभाव के कारण असमय सफेदी।
-गलत उत्पादों के प्रयोग के कारण असमय सफेदी।
पोषक तत्वों के अभाव के कारण पाई जाने वाली असमय सफेदी वर्तमान समय में बहुतायत में पाई जा रही है। खान-पान संबंधी गलत आदतें, जो कि आधुनिक जीवनशैली की देन है, इसका प्रमुख कारण है। बच्चों में पाई जाने वाली असमय की सफेदी इसी श्रेणी में आती है, जो कि आधुनिक समाज की पिज्जा, बर्गर संस्कृति की देन है। महिलाओं में पाई जाने वाली असमय सफेदी का प्रमुख कारण लौहतत्व की कमी के कारण होने वाला एनीमिया (रक्ताल्पता) रोग है। घरेलू एवं बाहरी कामकाज की व्यस्तताओं में महिलाएँ प्रायः अपने पोषण का ध्यान नहीं रख पातीं, फलस्वरूप असमय सफेदी का शिकार हो जाती हैं।
युवाओं में प्रायः गलत उत्पादों के प्रयोग से होने वाली असमय सफेदी पाई जाती है। हानिकारक केमिकलयुक्त शैंपू, जैल आदि का प्रयोग बालों की असमय सफेदी का प्रमुख कारण बनते जा रहे हैं। बालों में विभिन्ना प्रकार के हेयर कलर्स का प्रयोग भी असमय सफेदी का प्रमुख कारण है। आजकल युवा बिना सफेदी के भी फैशन के उद्देश्य से विभिन्ना प्रकार के हेयर कलर का प्रयोग करते हैं। इन हेयर कलर्स के प्रयोग से इनमें उपस्थित हानिकारक केमिकल्स के कारण असमय सफेदी दस्तक देने लगती है, साथ ही ब्यूटी पार्लर्स में सीधे बालों को घुँघराला करने एवं घुँघराले बालों को सीधा करने के लिए उपयोग किए जाने वाली विभिन्ना विधियों और इनमें उपयोग किए जाने वाले केमिकल्स के कारण भी बालों में शुष्कता आ जाती है, बाल झड़ने लगते हैं और असमय सफेदी प्रारंभ हो जाती है। असमय सफेदी से बचाव हेतु पोषणयुक्त आहार एवं केमिकलरहित स्तरीय आयुर्वेदिक उत्पादों का प्रयोग करें। हमारे देश में प्रचलित जो रोटी,दाल,चावल,सलाद,फल से युक्त आहार है,वह एक सम्पूर्ण आहार है। पश्चिमी संस्कृति से होड़ छोड़कर भारतीय आहार को ही अपनाएं।
हरी सब्जियां और अंकुरित अन्न अवश्य लें। मौसमी फलों का सेवन भी अवश्य करें। दूध एक संपूर्ण आहार है,अतः इसका सेवन अवश्य करें। खासकर महिलाओं को दूध का सेवन अवश्य करना चाहिए क्योंकि प्रायः भारतीय महिलाओं में मैनोपॉज(माहवारी बंद होने की अवस्था) के बाद ऑस्टियोपोरोसिस(कैल्शियम की कमी से हड्डियों का क्षरण) पाया जाता है। जीवन भर दूध के सेवन से इससे बचा जा सकता है।
यदि आपके बालों में असमय सफेदी प्रारंभ हो चुकी है,तो कभी भी हेयर कलर या हेयर डाई का प्रयोग न करें क्योंकि ये उत्पाद हानिकारक केमिकल से युक्त होते हैं। इनके प्रयोग से जो बाल काले हैं उनकी जड़ें भी धीरे-धीरे सफेद होने लगती हैं। बालों का अत्यधिक झड़ना भी प्रारंभ हो जाता है। साथ ही,त्वचा संबंधी गंभीर बीमारी भी पैदा हो जाती है।
मेहदी का प्रयोग नया नहीं है
प्राचीनकाल से ही मेहँदी का प्रयोग बालों को रंगने के लिए किया जाता रहा है। असमय सफेदी में मेहँदी का प्रयोग ही श्रेष्ठ होता है, परंतु इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि मेहँदी में जड़ी-बूटियों का संतुलित मात्रा में उपस्थित होना भी आवश्यक है। यदि मेहँदी का मिश्रण संतुलित नहीं होगा तो बालों में रूखापन आने लगेगा। आइए जानें मेहँदी में कौन-सी जड़ी-बूटियाँ मिलाई जानी चाहिए- जास्वंद, कपूर कचरी, नागरमोथा, भृंगराज, त्रिफला। इनका चूर्ण एक व्यक्ति के लिए एक-एक चम्मच लें। बाजार में उपलब्ध हाथों में लगाई जाने वाली मेहँदी में मिला लें। मेहँदी की मात्रा बालों की लंबाई और घनेपन के अनुसार अंदाज से लें। चायपत्ती को पानी में उबालकर छान लें। इस पानी में मेहँदी का जड़ी-बूटीयुक्त मिश्रण डाल दें। इस पेेस्ट को लोहे के बर्तन में रातभर रखें और सुबह बालों की जड़ से सिरे तक लगा लें। दो से ढाई घंटे बाद बालों को सादे पानी से धोकर सूखा लें। रात में सोने से पहले काले तिल का तेल जो जड़ी-बूटियों से युक्त हो, बालों की जड़ों में लगाएँ। सुबह गर्म पानी में टॉवेल डालकर, निचोड़कर सिर पर बाँधे। टॉवेल ठंडा हो जाने पर हवा दें और उचित आयुर्वेदिक शैंपू को पानी में घोलकर बालों को दो बार धोएँ। मेहँदी के प्रयोग में दो बातों का विशेष ध्यान रखें। कभी भी बाजार में विभिन्न नामों से मिलने वाली बालों की मेहँदी का प्रयोग न करें। ऐसी काली मेहँदी बालों को नुकसान पहुँचाती है। वास्तव में इसमें हेयर कलर ही मिला हुआ होता है। कोई भी शुद्ध मेहँदी बालों को कभी भी काला नहीं कर सकती है। केवल गहरा भूरा कर सकती है। दूसरी ध्यान देने वाली बात यह है कि मेहँदी का प्रयोग २० दिन के पूर्व कभी भी दुबारा न करें। ऐसा करने से बालों का लोच (बाउंस) खत्म होने लगता है। बाल शुष्क हो जाते हैं। इससे आपकी सफेदी बढ़ भी सकती है। अतः सफेदी से निपटने हेतु प्राचीन भारतीय पद्धति ही श्रेष्ठ है। उपरोक्त जड़ी-बूटीयुक्त मेहँदी के प्रयोग से बालों का सफेद होना नियंत्रित भी हो जाता है। पोषण के अभाव से होने वाली असमय सफेदी की स्थिति में सही पोषण के साथ ही पोषक तत्वों से युक्त दवाओं का सेवन भी करना पड़ सकता है(डॉ. प्रीति सिंह,सेहत,नई दुनिया,मार्च प्रथमांक,2011)।
यह जानकारी मेरे लिये इस समय उपयोगी है.
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ आपने बताया.
मेरे दो-एक बाल खुद को अनुभवी बताने लगे हैं. शीशे में देखकर अभी डांटता हूँ.
bade kaam ki jaankari ...
जवाब देंहटाएंआभार इस जानकारी के लिये।
जवाब देंहटाएंjaankaari to bahut upyogi hai.. magar...
जवाब देंहटाएंmere baal bahut saalo se safed ho chuke hain..
mera matlab hai kaafi baalo ki jadein safed hai..
bura na dikhu, is se bachne ke liye, m color lagata hu.. aur color 1 maheena nikaal jata hai
mehendi to 15 din baad hi utarne lagti hai..
aur color laganaa aasaan bhi to hai.. mehendi to 3 ghante laga kar baithna padta hai....color to 1 ghante me hi lag jaata hai..
Jaankaari upyogi hai, mgar mere liye bahut nahi.. :(
Haan hari sabziyaan zaroor koshish karoonga khaau.. :D