शुक्रवार, 11 मार्च 2011

डिप्रेशन और होम्योपैथी

डिप्रेशन यानी अवसाद एक ऐसी मानसिक स्थिति को दर्शाता है जिसमें व्यक्ति दुःख की अनुभूति की वजह से जीवन में समस्याओं का लगातार सामना करता है। इस स्थिति में व्यक्ति अपने दैनिक कार्यों तथा कार्य क्षेत्र से जुड़ी जिम्मेदारियों का सफलतापूर्वक वहन नहीं कर पाता है।

कुछ प्रमुख कारण
डिप्रेशन की समस्या महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अधिक पाई जाती है। इसके अतिरिक्त आज के प्रतिस्पर्धा के युग में डिप्रेशन से ग्रस्त युवाओं की दर भी लगातार बढ़ती जा रही है। डिप्रेशन के अनेक कारण हो सकते हैं, पर उनमें से दो प्रमुख कारण है।

*आनुवांशिक अथवा बायोलॉजिकल कारण।

*वातावरणीय कारण।

अनुवांशिक कारणों के अंतर्गत यह पाया गया है कि जिन लोगों के पारिवारिक सदस्यों को मानसिक रोग (डिप्रेशन) होता है, ऐसे लोगों में अन्य लोगों की तुलना में डिप्रेशन से ग्रसित होने की संभावना अधिक होती है। वातावरणीय कारणों के अंतर्गत जीवन के अनुभव जैसे- परीक्षा में फेल होना, किसी अंतरंग दोस्त, रिश्तेदार की मृत्यु होना, व्यवसाय में नुकसान होना आदि आते हैं।

डिप्रेशन के लक्षण
*भूख तथा नींद में असामान्य बदलाव (बहुत ज्यादा अथवा बहुत कम होना)।

*दैनिक कार्यों के प्रति अरुचि।

*स्वयं के प्रति नकारात्मक विचार तथा हीनभावना से ग्रसित होना।

*कार्य कर पाने की शारीरिक एवं मानसिक क्षमता में कमी महसूस करना।

*व्यक्ति स्वयं को अन्य लोगों से अलग तथा अक्षम महसूस करता है।

*गंभीर मामलों में व्यक्ति आत्महत्या तक का प्रयास कर सकता है।

डिप्रेशन में होता क्या है?

वस्तुतः डिप्रेशन में व्यक्ति यह स्वीकार कर लेता है कि उसके जीवन में सारा कुछ बुरा ही होने वाला है। वह यह मान लेता है कि ये सारी स्थितियाँ उसके हाथ में नहीं हैं तथा वह स्वयं को अक्षम मानने लगता है। परिणामस्वरूप स्वयं के प्रति नकारात्मक सोच लगातार बढ़ती जाती है।



होम्योपैथी किस प्रकार कर सकती है मदद?

होम्योपैथी ऐसे केसेस में अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध हो सकती है। होम्योपैथी में केस का संपूर्णता से अध्ययन किया जाता है तथा चिकित्सक की भूमिका फ्रेंड फिलॉसफर एवं गाइड की होती है। मरीज की स्थिति का विस्तृत अध्ययन करके सही कान्स्टीट्यूशनल दवा तक पहुँचा जा सकता है। ऐसे केसेज में ऑरम मेटालिकल,नेट्रम मूर,ग्रेफाइटिस आदि दवाएं ज्यादा प्रभावशाली पाई गई हैं। इंटरकरेंट के रूप में थूजा,सिफीलिनम आदि दवा दी जा सकती है। सही दवा का चुनाव लक्षणों में समानता के आधार पर प्रशिक्षित होम्योपैथिक-फिजिशियन ही कर सकता है। यहां पर यह समझना बहुत ज़रूरी है कि दवा के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों तथा मित्रों का सहयोग भी बहुत ज़रूरी है। अवसादग्रस्त को हीन समझना,उनका मज़ाक उड़ाना,उनके प्रति दुर्व्यवहार रखना,बात-बात में खीजना,डांटना,अन्य लोगों से उनकी तुलना करना आदि से उनकी समस्या और जटिल हो जाती है जबकि अवसाद के क्षणों में तो उन्हें ज़रूरत होती है प्यार भरे सकारात्मक व्यवहार की। मरीज़ों के सामने कमजोरियों के स्थान पर उनकी ताक़त का बखान करें। उन्हें सकारात्मक सोच के प्रति प्रेरित करें। इन सबके साथ जब सही तरीक़े से चुनी हुई होम्योपैथी दवा दी जाती है,तो अच्छे परिणाम की आशा की जा सकती है।

मानसिक चिकित्सा उचित
अवसाद को तीन तरह से ठीक किया जा सकता है। इनमें औषधियाँ, बिजली के झटके देना और मानसिक चिकित्सा उपलब्ध कराना प्रमुख है। १८ साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सायकोथेरेपी यानी मानसिक चिकित्सा उचित समझी जाती है जबकि बिजली के झटके अंतिम विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं। यदि अवसादग्रस्त रोगी को स्वयं को अथवा दूसरों को खतरा हो तो उन्हें मानसिक चिकित्सालय में भर्ती करने की जरूरत होती है। हमारे जैसे विकसित हो रहे देश में अवसाद अथवा किसी अन्य मानसिक बीमारी के इलाज के लिए बहुत कम विकल्प हैं। मानसिक चिकित्सकों के अलावा प्रशिक्षित स्टाफ की भी बहुत कमी है। मानसिक चिकित्सा प्रदान करना तो और भी मुश्किल होता है क्योंकि मनोरोग विशेषज्ञों की बेहद कमी है। विकासशील देशों में अवसाद को मनोविकार के रूप में नहीं बल्कि "ऊपरी हवा" के रूप में समझा जाता है। 

इस बीमारी में जान का जोखिम कम होता है,लेकिन मरीज से समाज को कोई लाभ नहीं मिल पाता। हल्के अवसाद के मरीजों को शारीरिक कसरतें करने की सलाह दी जाती है । साइकोथैरेपी के नतीज़ों पर किए गए अध्ययन बताते हैं कि जिन्हें एक बार गंभीर अवसाद का दौरा पड़ चुका हो,उन्हें जीवन में एक और बार गंभीर दौरा पड़ता है(डॉ. मिकीन जैन और डॉ. वी.एस. पाल,सेहत,नई दुनिया,मार्च,2011 प्रथमांक)।

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