कैंसर के इलाज में लिनियर एसीलरेटर का बहुत महत्व है। आज लिनियर एसीलरेटर मशीनों पर अत्याधुनिक तकनीकें जैसे - इमेज मोड्यूलेटेड एवं इमेज गाइडेड रेडियोथेरेपि उपलब्ध है, जो कि हमें त्रिआयामी रेडियोथेरेपि करने में मदद करती है। इससे शरीर के कैंसर वाले दूषित हिस्से में ज्यादा से ज्यादा एवं उसके एकदम नजदीक वाले अच्छे उत्तकों को कम से कम रेडिएशन जाता है।
चूँकि यह इलाज बहुत दिनों तक चलता है, तो मरीज की अवस्था में हल्का-सा बदलाव भी नजर आते ही रेडिएशन की खुराक में बहुत बदलाव किया जा सकता है। कभी-कभी जोखिम में आ रहे अवयवों को ज्यादा एवं ट्यूमर को कम रेडिएशन हो सकता है। हालाँकि इसके लिए इलाज के दौरान न हिलने के लिए कास्ट काम में लिए जाते हैं, ताकि मरीज हर रोज इलाज के दौरान उसी अवस्था में रहे और रेडिएशन उसी जगह जाए, जहाँ टारगेट किया है। इससे मरीज को अधिक फायदा एवं नुकसान कम होता है। इन अत्याधुनिक तकनीकों से मरीज को बाद में आने वाली तकलीफें नहीं होती और कैंसर ठीक होने का प्रमाण भी बढ़ता है। ये तकनीक महँगी होने के बावजूद ज्यादा ज्यादा फायदेमंद होती है।
मरीज का हर रोज उसी अवस्था में इलाज हो इसके लिए इमोबिलाइजेशन कास्ट एवं इमेज गाइडेड रेडियोथेरेपि अति महत्वपूर्ण है। इस सबके बावजूद जब शरीर की सूजन कम हो जाती है, गाँठ छोटी हो जाती है, तब शरीर के अच्छे ऊतक भी रेडिएशन फील्ड में आ जाते हैं, और उन्हें ज्यादा रेडिएशन लगने का खतरा हो जाता है। इसके कारण कैंसर ऊतक को ज्यादा रेडिएशन नहीं दिया जाता है और उसके ठीक होने का प्रमाण थोड़ा कम हो जाता है। इससे बचने के लिए इलाज के दौरान बार-बार सीटी स्कैन कर कैंसर की अवस्था को देखकर,री-प्लानिंग कर उसके बाद मरीज़ का इलाज़ किया जाता है,इसे ही हम एडॉप्टिव रेडियोथैरेपी कहते हैं।
सामान्य तौर पर,इलाज़ शुरू करने से पहले सीटी स्कैन कर प्लानिंग की जाती है,परन्तु एडॉप्टिव रेडियोथैरेपी में यह बार-बार किया जाता है और हर बार कंटूरिंग एवं प्लानिंग की जाती है जिससे हर बार मरीज़ को सही प्रमाण एवं माप में रेडिएशन दिया जा सके। रेडिएशन के ट्यूमर पर प्रभाव को ज्यादा एवं अच्छे ऊतकों के साथ जोखिम पर आ गए अवयवों को बचाया जा सकता है। इसी से कैंसर को ठीक होने का प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है।
इस तकनीक में मरीज़ को मशीन पर ज्यादा समय रहना पड़ता है क्योंकि प्लानिंग में समय लगता है। इन नई इमेज गाइडेड और एडॉप्टिव रेडियोथैरेपी से कैंसर के ठीक होने का प्रमाण बहुत बढ़ा है और उससे खराबी के मामले बहुत कम हुए हैं जो किसी भी अवस्था में मरीज़ के लिए फायदेमंद साबित हो रही है(डॉ. वीरेन्द्र भंडारी,सेहत,मार्च प्रथमांक 2011)।
एक इन्फ़ॉर्मेटिव पोस्ट।
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