सोमवार, 28 मार्च 2011

एम्स में दुर्लभ प्लास्टिक सर्जरीःबांह के टिश्यू से जीभ बनाकर लौटाई ज़ुबान

इसे चमत्कार कहें या फिर भारतीय विशेषज्ञों की काबलियत। सर्जरी क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ते हुए अब एम्स के सर्जन्स ने एक 43 वर्षीय कैंसर पीड़ित रोगी को नया जीवनदान दिया। मुंह व जीभ में कैंसर के कारण जीभ को काटकर निकाल दिया गया। फिर जीभ के कुछ बचे हिस्से को बांह के टिश्यू की मदद से दोबारा विकसित किया गया। इस जटिल सर्जरी के बाद बुलंदशहर निवासी गिरीश पाण्डेय अब दोबारा बोलने लगा है। सर्जन डा. विवेक कुमार के अनुसार मरीज की बायीं जीभ के आधे से अधिक भाग में कैंसर था जो मुंह के आसपास के हिस्से को तेजी से क्षतिग्रस्त कर रहा था। कई जरूरी जांचों के बाद जीभ में फैले कैंसर वाले हिस्से को काट कर निकाल दिया गया। इसके बाद उसकी बांह और जीभ के बचे कुछ टिश्यू का मिलान किया जिसे पुन: विकसित कर उसे दोबारा कटी जीभ के ऊपरी भाग में प्रत्यारोपित कर दिया गया। नतीजतन उसकी स्थिति सामान्य हो गई। इस प्रक्रिया में छह माह से अधिक समय जरूर लगा लेकिन सफलता भी मिली।

टीम में शामिल एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि जीभ के साथ उसके मसूड़े भी बुरी तरह से सड़ गए थे, जिसका सर्वाधिक असर उसके आगे वाले (इनसाइजर) ऊपर-नीचे के दो दांतों पर पड़ा जिसे जड़ से निकालना पड़ा। हालांकि उसे भी माइनर सर्जरी के बाद प्रत्यारोपित कर दिया गया। डा. विवेक ने कहा कि उत्तर भारत में अपने किस्म की संभवत: यह पहली जटिल सर्जरी संपन्न की गई है। शनिवार को अस्पताल से रोगी को छुट्टी भी दे दी गई। हालांकि उसे हर तीन माह बाद जरूरी निर्देशों के साथ आब्जरवेशन के लिए यहां आना होगा। उन्होंने कहा कि जीभ के कुछ हिस्से की दोबारा ग्राप्टिंग भी की गई। पांडेय अपनी जीभ के कैंसर के इलाज के लिए यहां आईआरसीएच सेंटर में डा. पीके जुलका की यूनिट में आए थे। उन्हें बुलंदशहर के एक निजी अस्पताल के डॉक्टर ने कीमोथेरेपी कराने की सलाह देते हुए एम्स में रेफर किया था। लंबे समय से वह गुटखा, तम्बाकू व बीड़ी का सेवन करता था। इसकारण उसे बोलने, निगलने, चबाने में बहुत दिक्कतें आ रही थीं। कैंसर इस कदर बढ़ गया था कि आधी जीभ काटना जरूरी हो गया था। आईआरसीएच यूनिट के चार सदस्यीय डॉक्टरों की टीम ने कीमोथेरेपी शुरू करने से पहले उसे सर्जरी आंकोलोजी यूनिट के एक्सपर्ट्स से सलाह लेने की राय दी थी। उनकी इस राय ने पांडेय का जीवन ही बदल दिया। विशेषज्ञों के अनुसार हम रोगी को आधी जीभ के साथ नहीं छोड़ सकते थे। इस कारण उसके लिए अतिरिक्त समस्याएं खड़ी हो जाती। यहां तक कि कैंसर से छुटकारा मिल जाने के बावजूद वह न तो ठीक से कुछ खा पाता और न ही पी पाता। हमें रोगी को भोजन देने के लिए पेट में एक ट्यूब डालनी पड़ती और ताउम्र उसे तरल भोजन पर निर्भर रहना पड़ता। इससे आने वाले दिनों में वह कई अन्य प्रकार के बैक्टिरीयल संक्रमण की गिरफ्त में आ जाता। संभवत: वह अपने परिजनों पर आर्थिक बोझ बन जाता(ज्ञानप्रकाश,राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,27.3.11)।

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