घुटनों के दर्द से परेशान रोगियों के लिए एक अच्छी खबर है। अब उन्हें असहनीय स्थिति में घुटना बदलवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कानपुर के सरकारी मेडिकल कालेज के प्राचार्य और हड्डी रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर आनंद स्वरूप ने एक ऐसी एचटीओ (हाई टीवियल आस्टियोटामी) विधि विकसित की है जिससे रोगी को न तो घुटना प्रत्यारोपण कराकर लाखों रूपये खर्च करने पड़ेंगे और न ही हफ्तों तक अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा।
इस छोटे से आपरेशन के लिए रोगी को अस्पताल में तीन चार दिन ही रहना पड़ेगा और उसके बाद वह आराम से टहल सकता है। इससे घुटना प्रत्यारोपण में होने वाला लाखों रूपये का खर्च भी बचेगा। नयी तकनीक के जरिए होने वाले इलाज पर मात्र दस हजार रूपये ही खर्च होंगे।
गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कालेज के प्राचार्य और हड्डी रोग विभाग के प्रमुख प्रोफेसर आनंद स्वरूप अब तक इस एचटीओ तकनीक से करीब 150 रोगियों का सफल आपरेशन कर चुके हैं। अमेरिका की एक पत्रिका ने उनकी कामयाबी को पहचाना है और वह इसे अपने संस्करण में स्थान देने जा रही है।
प्रोफेसर स्वरूप ने बुधवार को कहा कि एचटीओ तकनीक में लगने वाले इंप्लांट और उपकरणों की डिजाइनिंग के लिये वह आईआईटी कानपुर के डिजाइनिंग विभाग के साथ काम कर रहे हैं और शीघ्र ही इसमें लगने वाले स्टील इंप्लांट और उपकरण यहीं पर बनने लगेंगे। अभी तक मेडिकल कालेज में किए गए करीब 150 आपरेशनों में विदेशी इंप्लांट और विदेशी उपकरणों की मदद ली गई।
स्वरूप ने कहा कि जैसे ही मनुष्य बुढ़ापे की ओर बढ़ता है, उसके घुटनों में दर्द शुरू हो जाता है। रोगी को सीढ़ी चढ़ने, उठऩे़-बैठने तथा पैदल चलने में परेशानी शुरू हो जाती है और यह एक सामान्य बीमारी है। महिलाओं और पुरूषों में यह सामान्य रूप से होती है। इस बीमारी का एक मुख्य कारण मोटापा भी है। ऐसे रोगियों को अक्सर डाक्टर घुटना प्रत्यारोपण की सलाह देते हैं।
उन्होंने इसे विस्तार से समझाते हुये कहा कि अमूमन एक मनुष्य के घुटने 60 प्रतिशत अंदर की ओर और 40 प्रतिशत बाहर की ओर होते हैं। अधिक उम्र के कारण अक्सर लोगों का घुटना चार इंच अंदर की ओर घुस जाता है। इसे मेडिकल भाषा में बो लेग कहते हैं। इससे शरीर का 90 फीसदी वजन अंदर की ओर जाने लगता है और रोगी को घुटने में भयंकर दर्द होने लगता है।
स्वरूप के अनुसार ऐसे मामलों में डाक्टर रोगी को घुटना प्रत्यारोपण की सलाह देते हैं जिसमें दो से तीन लाख रूपये तक का खर्च आता है तथा रोगी को काफी दिन तक अस्पताल में भर्ती भी रहना होता है। धातु का कत्रिम घुटना होने के कारण उसमें किसी भी तरह की संवेदना भी नहीं होती।
उन्होंने बताया कि ईजाद की गई नई तकनीक में रोगी के घुटने के प्रत्यारोपण की आवश्यकता नहीं होती है। इस विधि में घुटने के जोड़ों के हिस्सों को नाप कर उसका एलाइनमेंट ठीक किया जाता है फिर कत्रिम इंप्लांट लगाकर उसे सीधा कर दिया जाता है।
स्वरूप के अनुसार एक छोटा सा चीरा लगाकर यह आपरेशन किया जाता है और रोगी को तीन से चार दिन तक अस्पताल में रहना पड़ता है। उसके बाद उसे घर भेज दिया जाता है जहां एक हफ्ते बाद वह आराम से चल फिर सकता है और अपने रोजमर्रा के कामों को अंजाम दे सकता है।
(हिंदुस्तान,कानपुर,24.3.11)
अच्छी आवश्यक जानकारी दी आपने.
जवाब देंहटाएंआवश्यक जानकारी देने के लिए आभार !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर जानकारी दी हैं आपने, मैं आज कल इसी तरह कि जानकारी इकठ्ठा कर रहा हूँ, क्योंकि मेरी माता जी भी काफी परेशान हैं, फ़िलहाल तो वो आजमगढ़ में अपना इलाज करवा रही हैं, अगर सही नहीं हुआ तो , ये जानकारी मेरे लिए अच्छी रहेगी.
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