मंगलवार, 22 मार्च 2011

विश्व डाउंस सिंड्रॉम दिवस विशेषःभारत में भी हैं सारा पालिन जैसी मांएं

जान-बूझकर डाउंस सिंड्रॉम नामक रोग से ग्रसित बच्चे को जन्म देकर उसे पालने की मार्मिक त्रासदी से गुजरने की हिम्मत करना मातृत्व की इंतिहा है। अभी-अभी एक कॉनक्लेव में भाग लेने दिल्ली आई पिछले अमेरिकी चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की उपराष्ट्रपति की उम्मीदवार सारा पालिन ने भी ऐसी ही हिम्मत दिखाई है। उन्होंने भी डाउंस सिंड्रॉम से ग्रसित अपने पांचवें बच्चे को जन्म दिया। भारत में भी ऐसे मांओं की कमी नहीं है जो ऐसे बच्चे को जन्म देकर उन्हें पालने की दुरुह जिम्मेवारी लेने की दरियादिली दिखाती हैं। विश्व डाउंस सिंड्रॉम दिवस के मौके पर कल, ऐसे बच्चों के लिए कई अस्पतालों में कार्यक्रम आयोजित किए गए। मां बनने का जज्बा कितना सशक्त होता है, इसका पता इसी बात से चलता है कि कुछ मांएं इस रोग से ग्रसित टेस्ट ट्यूब बेबी तक को जन्म देती हैं।

दिल्ली के अपोलो अस्पताल ने सोमवार को विशेष जरुरतों वाले ऐसे स्कूलों, नोएडा स्थित शंकरास्पेशल स्कूल एवं ग्रेटर नोएडा स्थित भगवती चड्डा निकेतन के बच्चों के लिए उत्सव भरे माहौल में कार्यक्रम आयोजित किए। डॉक्टरों एवं स्वास्थ्यकर्मियों ने उन बच्चों के साथ प्यार भरे लम्हे बिताए एवं उनके स्वास्थ्य की जांच की। भ्रूण संबंधी चिकित्सा विभाग की वरिष्ठ कंसलटेंट डॉ. अनीता कॉल ने कहा कि गर्भ के १२ सप्ताह होने पर एक अल्ट्रा साउंड एवं खून की मामूली जांच सेयह पता चल जाता है कि बच्चे में यह रोग है या नहीं। डॉ.अनिता कॉल ने बताया कि पता चलने पर ज्यादातर मांएं गर्भपात का रास्ता चुनती हैं। लेकिन कई मांएं बच्चे को जन्म देती हैं। हम उन्हें समझाते हैं कि ऐसे बच्चों के लिए देश में सुविधाएं नही हैं। उनकी देखभाल के लिए विशेष प्रशिक्षित लोग भी नहीं मिलते(धनंजय,नई दुनिया,दिल्ली,22.3.11)।

3 टिप्‍पणियां:

  1. मै इससे सहमत नहीं हूँ ये ठीक है की आप बच्चे की देखभाल कर सकती है किन्तु बच्चो को जो कष्ट सहना पड़ेगा उसका क्या होगा और आप के बाद बच्चे का क्या होगा एक बार बच्चे की नजर से सोचिये की उसे क्या कुछ सहना पड़ रहा है क्या वो इस बात से खुश है की उसे जन्म दे कर उसकी माँ ने एक महान काम किया है |

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  2. सराह पालिन का उदाहरण भारत जैसे देश के लिए उपयुक्त नहीं है ।
    जांच करते ही इसलिए हैं ताकि -----।

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