बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

प्रसव पीड़ा और काग़ज़ी औपचारिकताएं

इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं हो सकता कि एक महिला प्रसव पीड़ा से कराहती रहे और सरकारी अस्पताल के कर्मचारी उसे भर्ती करने के बजाए औपचारिकताएं पूरी कराने में समय बिताते रहें और अंतत: उसे रिक्शे पर बच्चे को जन्म देना पड़े। बात तब और भी गंभीर हो जाती है, जब यह वाकया देश के किसी दूरदराज के इलाके में नहीं, बल्कि राजधानी दिल्ली के प्रतिष्ठित सफदरजंग अस्पताल में हुआ हो। सोमवार दोपहर घटी इस घटना ने राजधानी की स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बार फिर प्रश्न उठाया है। किसी सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों की इतनी संवेदनहीनता और लापरवाही कैसे बर्दाश्त की जा सकती है? पहले तो निजी नर्सिग होम ने अपनी संवेदनहीनता का परिचय देते हुए दंपति को रुपये न होने के कारण बैरंग लौटा दिया और बाद में खासकर गरीब मरीजों के इलाज के लिए खोले गए सरकारी अस्पताल ने उन्हें इस बात का अहसास कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि राजधानी में प्रभावहीन व्यक्ति की कोई कद्र नहीं है। बच्चे के जन्म के बाद भी जच्चा-बच्चा को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। स्वास्थ्य के क्षेत्र में अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस दिल्ली के सरकारी अस्पतालों का क्या लाभ यदि उनके कर्मचारियों में संवेदनशीलता नहीं है। इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि यदि सरकारी अस्पताल के बाहर कोई एक व्यक्ति इलाज के अभाव में दम तोड़ देता है तो वह अस्पताल अपना उद्देश्य पूरा करने में विफल रहा है। उसके कर्मचारी संवेदनाशून्य हैं और उसे अपने डॉक्टरों-कर्मचारियों के इलाज के बारे में सोचना चाहिए। किसी भी अस्पताल में संवेदनाशून्य कर्मचारियों के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। पहले भी ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जब महिलाओं ने अस्पताल के बाहर फुटपाथ या किसी वाहन में बच्चे को जन्म दिया है। हाईकोर्ट ने स्वयं ऐसी घटनाओं का संज्ञान लेकर तल्ख टिप्पणियां की हैं। सरकार को चाहिए कि वह ऐसे प्रबंध करे कि किसी भी सरकारी अस्पताल में ऐसी घटना दोबारा न हो। साथ ही वह सफदरजंग अस्पताल के संबंधित कर्मचारियों तथा उस नर्सिग होम के प्रबंधन के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई करे, जिसने रुपये न होने के कारण महिला को भर्ती करने से इनकार कर दिया। महिलाओं को भविष्य में इस स्थिति से न गुजरना पड़े, इसके लिए दिल्ली में और शेल्टर होम भी बनाए जाने चाहिए(संपादकीय,दैनिक जागरण,दिल्ली,2.2.11)।

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